अभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी के तीसरे कार्यकाल के चार साल शेष है और उनके समर्थकों द्वारा अभीसे यह कहा भी जा रहा है कि 2029 के बाद भी मोदी ही प्रधानमंत्री रहेंगे और वे नेहरू जी के प्रधानमंत्रित्व काल (सत्रह वर्ष) और इंदिरा जी के प्रधानमंत्रित्व काल (अठारह वर्ष) का कीर्तिमान ध्वस्त करेंगे, किंतु साथ भारतीय राजनीतिक गलियारों में यह सवाल भी मुख्य रूप से तैर रहा है कि ‘‘मोदी के बाद कौन?’’ मुझे अच्छी तरह से याद है कि जवाहरलाल नेहरू के प्रधामंत्रित्व काल के दौरान भी ‘‘उत्तराधिकारी’’ का यह सवाल जोर-शोर से उठाया गया था और उसका उत्तर नेहरू की बेटी ने जोर शोर से दिया था। किंतु अब तो मोदी जी का नेहरू की तरह कोई पारिवारिक वारिस भी नही है, इसलिए यह सवाल अब सामाजिक दायरे से बाहर आकर राजनीतिक दायरे में आ गया है और देश के मौजूदा राजनेताओं के ही आसपास मंडरा रहा है, जिसके दायरे में देश के दूसरे क्रम के बडे़ राजनेता और गृहमंत्री अमित शाह और देश की राजनायिक राजधानी उत्तरप्रदेश के सर्वोच्च नेता और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आ रहे है और इन्ही दोनों शीर्ष नेताओं के समर्थक राजनीति का यह खेल खेल रहे है और अपनी-अपनी लॉबी के विस्तार में व्यस्त है। जहाँ तक विपक्षी दलों का सवाल है वे तो नैराश्य के सागर में गौते लगा रहे है क्योंकि अगले चार साल तो उन्हेें कोई संभावना नजर नही आ रही और आगे का क्या भरोसा? पता नही तब तक ये राजनीति का ‘ऊँट’ किस करवट बैठ जाए? इसलिए देश की राजनीति अब सिर्फ और सिर्फ भाजपा तक ही केन्द्रित होकर रह गई हैै और इसी में पक्ष और विपक्ष दोनों पैदा हो गए है। जहां तक तथाकथित मुख्य प्रतिपक्षी दल कांग्रेस का सवाल है, वह तो अपनी ‘‘मृत्यु शैईया’’ पर अंतिम श्वांस लेने की स्थिति में है, इसलिए मजबूर होकर सत्तारूढ़ भाजपा को ही अपने में से ही ‘प्रतिपक्षी गुट’ को पैदा करना पड़ा। हाँ, तो मुख्य सवाल मोदी जी का यद्यपि उनकी स्वयं की इच्छा प्रधानमंत्री पद के अब तक के सभी कीर्तिमान ध्वस्त करने की है। इसीलिए उनके समर्थकों से ‘‘2029 के बाद भी मोदी ही’’ का नारा लगवाया जा रहा है, किंतु इस नारें के साथ नारेबाजोें का नेतृत्व करने वालों को अपने स्वयं के राजनीतिक भविष्य की भी चिंता सता रही है, इसीलिए उन्हीं में से यह सवाल उठाया गया है कि ‘‘मोदी के बाद शाह या योगी’’? खैर, अब तक स्वयं मोदी जी ने इस नारे को कोई अहमियत इसलिए नही दी है क्योंकि अभी तो उनके तीसरे कार्यकाल का एक वर्ष ही गुजारा है, तीसरा कार्यकाल पूरा होने के बाद भी वे नेहरू-इंदिरा का कीर्तिमान ध्वस्त नही कर पाएगें, उसके लिए 2029 में पुनः प्रधानमंत्री बनना पड़ेगा, किंतु साथ ही यह भी अहम् राजनीतिक चिंता है कि चार साल का अगला समय किसने देखा? कब क्या हो जाए? अभी कैसे कहा जा सकता है। अभी भारतीय जनता पार्टी की राजनीति इन्ही सवालों के समुद्र में डुबकी लगा रही है। लेकिन यह सही है कि ऊपरी तौर पर चाहे जाहिर न किया जा रहा हो किंतु अन्दरूनी तौर पर चार साल बाद का यही राजनीतिक सवाल आज समुद्र मंथन के संकेत दे रहा है। अब देखते है? इस अहम् सवाल का उत्तर कौन, कैसे और कब खोजता है, क्योंकि उत्तर खोजने वाला ही ‘मीर’ होगा। ईएमएस / 11 जून 25