लेख
13-Jun-2025
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विश्व स्तर पर तनाव चरम सीमा पर पहुंच गया है। इजराइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हमला कर दिया है। इससे ईरान का आसमान सफेद, काले, नारंगी और लाल रंग के धुंए से पट गया। इस हमले में 300 से अधिक मिसाइलें दागी गईं। नताज सहित कई न्यूक्लियर साइट्स को इस हमले में निशाना बनाया गया है। इजराइल ने दावा किया है, कई परमाणु वैज्ञानिकों की हमले में मौत हुई और ईरान को भारी नुकसान हुआ है। यह हमला इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की ओर से ऑपरेशन राइजिंग लायन का हिस्सा बताया गया है। यह हमला ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नष्ट करने के लिए किया गया है। इस हमले में अमेरिका की भी मूक सहमति है। खुले तौर पर अमेरिका इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ले रहा है। हमले के बाद ईरान ने कड़ा जवाब देने की चेतावनी देकर ड्रोन से इजरायल पर हमला शुरू कर दिया है। तेहरान ने इसे युद्ध की घोषणा मानते हुये कहा कि ईरान ऐसा जवाब देगा, जिससे इजराइल कांप उठेगा। विदेशी मामलों के जानकार एवं रक्षा विशेषज्ञों का मानना है, कि यह हमला क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। फारस की खाड़ी में तनाव बढ़ने से तेल और गैस की आपूर्ति पर संकट मंडरा रहा है। होर्मुज की खाड़ी, जहां से दुनिया का 40 फीसद से अधिक तेल का परिवहन कई देशों के लिए होता है, उसके ब्लॉक होने से सारी दुनिया के जनजीवन और व्यापार को लेकर बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है। भारत ने फारस की खाड़ी से गुजरने वाली सभी उड़ानों को वापस बुला लिया है। वैश्विक शेयर बाजारों में भारी गिरावट हो रही है। भारतीय शेयर बाजार में निफ्टी और सेंसेक्स 1000 अंक तक लुढ़क गए हैं। कच्चे तेल की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। अमेरिका ने इस हमले को लेकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। सूत्रों का दावा है, नेतन्याहू को अमेरिका के राष्ट्रपति राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन प्राप्त है। ईरान के साथ भारत की बहुत पुरानी दोस्ती है। विश्लेषकों ने इजराइल की इस कार्रवाई को परमाणु अपराध निरूपित किया है। इजराइल ने अभी जो इराक के ऊपर हमला किया है। यह हमला विश्व युद्ध के खतरे को बढ़ाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के 75 वर्षों बाद पहली बार न्यूक्लियर साइट्स पर हमला हुआ है। ईरान के जवाबी हमले से आसपास के देशों की प्रतिक्रिया से स्थिति विस्फोटक होना तय है। विश्व समुदाय ईरान पर हुए हमले के बाद संयम और कूटनीति की अपील कर रहा है। क्या इससे यह संकट टल पाएगा। इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू अपनी सत्ता बचाने के लिए ईरान और गाजा को निशाना बना रखा है। डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिका में भारी विरोध हो रहा है, ऐसी स्थिति में उन्होंने भी इजराइल के कंधे पर सवार होकर सारी दुनिया को भयाक्रांत करने में लगे हुए हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू जिस तरह से आतंक फैला रहे हैं, उससे सारी दुनिया परेशान है। नेतन्याहू ने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की बात नहीं मानी, मानव अधिकारों का लगातार उल्लंघन कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जो नियम युद्ध के लिए बनाए गए थे उनका भी पालन नहीं कर रहे हैं। जिस तरह की मनमानी अमेरिका और इजराइल मिलकर कर रहे हैं उसके बाद अब यह स्पष्ट रूप से दिखने लगा है, इजराइल द्वारा ईरान के ऊपर किए गए हमले के बाद विश्व युद्ध को रोका जाना संभव नहीं है। परमाणु ठिकानों पर हमला करके वैश्विक आबादी के लिए जो खतरा पैदा किया गया है वह इतनी आसानी से निपटने वाला नहीं है। इस हमले के बाद दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्था तथा परमाणु हमले की आशंका के चलते जिस तरह का वातावरण बन गया है उसमें भारी तबाही होना तय माना जा रहा है। वर्तमान स्थिति में कोई भी ऐसा वैश्विक नेता नहीं है जो इस युद्ध की आशंका को रोक सके। सभी बड़ी-बड़ी महाशक्तियां इस विनाशकारी युद्ध की आग में घी डालने का काम करके युद्ध को भड़काने का काम कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अपना वजूद खो चुके हैं। ऐसी हालत में 75 वर्षों से जो नहीं हुआ था अब वह होने जा रहा है। एक बार फिर सारी दुनिया विनाश की ओर आगे बढ़ रही है। समय रहते यदि इसे नहीं रोका गया तो विनाशकारी परिणाम बहुत जल्द देखने को मिल सकते हैं। पिछले तीन दशक में छोटे-छोटे देशों के पास भी नवीन तकनीकी के हथियार जो बड़े विनाशकारी साबित हो रहे हैं ऐसी स्थिति में एक बार युद्ध शुरू हुआ तो इसे रोकना बहुत मुश्किल होगा। भारत को इस स्थिति में पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंध और विदेशनीति में सुधार करने की जरूरत है। गुटनिरपेक्ष देश के रूप में अब भारत की पहचान नहीं रही, जिसके कारण भारत वह भूमिका अदा नहीं कर पा रहा है जो गुटनिरपेक्ष आंदोलन के समय भारत भूमिका अदा करता था। समय रहते भारत को इस विषम स्थिति में बहुत सजग रहने की जरूरत है। भारत और ईरान के हजारों वर्ष पुराने संबंध हैं। भारत और रूस के बीच संबंध चीन और अमेरिका की तुलना में हमेशा मजबूत रहे हैं। ऐसी स्थिति में भारत को बहुत सोच-समझ कर निर्णय लेने होंगे, तभी जाकर हम अपने आप को तृतीय विश्व युद्ध की विभीषिका से बचा कर रख पाएंगे। ईएमएस / 13 जून 25