लेख
12-Jun-2025
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अफ्रीकी देश बुर्किना फासो के युवा सैन्य नेता इब्राहिम त्रारे ने एक ऐसा भाषण दिया है। जिसमे वैश्विक मीडिया और औपनिवेशिक सोच पर तीखा हमला किया गया है। 34 वर्षीय त्रारे ने पश्चिमी देशों पर आरोप लगाया है, उन्होंने अफ्रीका की गरीबी, संघर्ष और पिछड़ेपन की झूठी तस्वीर दुनिया के देशों में सालों तक प्रचारित की हैं। उन्होंने कहा कि अफ्रीका कोई भिखारी महाद्वीप नहीं है, बल्कि दुनिया को दुर्लभ खनिज, ऊर्जा संसाधनों को उपलब्ध कराने वाला विशाल आफ्रिकी महाद्वीप है। अफ्रीका सारी दुनिया को पोषित और विकसित करने वाला महाद्वीप है। सारी दुनिया अफ्रीका के खनिज संसाधनों का दोहन और उपयोग करती है। इसके बदले बड़े-बड़े पूंजीवादी देश अफ्रीका को गरीबी, भ्रष्टाचार और अशांति की ओर ले जाते हैं। त्रारे ने कहा अफ्रीका को मस्जिद नहीं, स्कूल चाहिये। उल्लेखनीय है अफ्रीका की 65 फीसदी मुस्लिम धर्म को मानती है। अफ्रीका को अब धार्मिक कट्टरता नहीं, शिक्षा और विकास चाहिए है। 200 मस्जिदे बनाए जाने के सऊदी अरब के प्रस्ताव को उन्होंने ठुकरा दिया। उन्होंने फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और चीन जैसी ताकतों की उन शोषण की रणनीतियों को उजागर किया।जिनसे अफ्रीका को आर्थिक रूप से लूटा जा रहा है। उन्होंने कोबाल्ट, प्लेटिनम, सोना, यूरेनियम जैसे खनिजों के उत्पादन में अफ्रीका के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा, जिन क्षेत्रों से यह बहुमूल्य संपदा निकली जा रही है, उन क्षेत्रों में आज भी बिजली, शिक्षा और बुनियादी सुविधाएं नदारद हैं। उन स्थानों पर सबसे ज्यादा बदहाली और भुखमरी देखने को मिलती है। त्रारे के यह तेवर केवल एक क्रांतिकारी नेता की आवाज नहीं, बल्कि उस पूरे महाद्वीप की पीड़ा है। जिसे दशकों से जानबूझकर आर्थिक रूप से कमजोर और पश्चिमी देशों ने अपने ऊपर निर्भर बनाकर रखा है। उनका कहना है कि पश्चिमी मीडिया अफ्रीका की सफलताओं और वास्तिवक्ता को कवर नहीं करता। पश्चिमी देशों और पूंजीपतियों के इशारे पर शोषणकारी एजेंडा मीडिया चलाता है। अब इसको बेनकाब करने का समय आ गया है। इब्राहिम त्रारे की यह गर्जना सिर्फ अफ्रीका नहीं, पूरे ग्लोबल साउथ के लिए चेतावनी के रूप में है। त्रारे के यह तेवर उपनिवेशवाद के नए रूपों, मीडिया के दोहरे मानदंडों और वैश्विक आर्थिक अन्याय के खिलाफ एक निर्णायक लड़ाई की शुरुआत है। पश्चिमी देशों की इस लूट में अब चीन भी शामिल हो गया है। सबसे बहुमूल्य खनिज संपदा अफ्रीका महाद्वीप में है। अफ्रीकी देशों के नेताओं के साथ मिलकर अफ्रीका महाद्वीप की जनता का जो शोषण कई दशकों से स्थानीय नेताओं की मदद से हो रहा है। उसके खिलाफ इसे एक बगावत के रूप में देखा जा रहा है। अफ्रीकी देश बुर्किना फासो सैन्य अधिकारी है। उनकी यह बगावत ठीक वैसी ही है, जैसी महात्मा गांधी ने अफ्रीका मैं रहते हुए अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाया था। वही बिगुल अब त्रारे ने अफ्रीकी महाद्वीप में बजा दिया है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सहायता को ठुकराते हुए यहां तक कह दिया है। जब हम दुनिया की सबसे महंगी खनिज संपदा सारी दुनिया के देशों को देते हैं। ऐसी स्थिति में हमें अपनी बहुमूल्य संपदा का भुगतान चाहिए, वैश्विक कर्ज और दया की हमें आवश्यकता नहीं है। निश्चित रूप से अफ्रीका की जनता ने अब अपनी सोच को बदलना शुरू कर दिया है। अफ्रीकी देशों के नेताओं के भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के खिलाफ भी वहां की जनता ने एक जंग शुरू कर दी है। सारी दुनिया में इसे पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ एक नई लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है। भविष्य में इसका व्यापक असर पड़ना तय है। इस लड़ाई में भारत की सहभागिता महत्वपूर्ण है। महात्मा गांधी के कारण अफ्रीकी देशों की जनता में भारत के प्रति बेहतर छबि है। इसका लाभ उठाने भारत को आगे आना होगा। ईएमएस /12 जून 25