बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के क्रिया-कलापों से अब स्पष्ट हो गया है कि वे पाकिस्तान और आईएसआई का चेहरा हैं। बांग्लादेश अब, उस राह पर चल रहा है, जिस राह पर कट्टरपंथी और आईएसआई चलाना चाहती थी, इसीलिये 1949 में गठित हुई, उस आवामी लीग को प्रतिबंधित कर दिया गया है, जिसने 1971 में मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया था और मुक्ति संग्राम के दौरान बांग्लाभाषियों की हत्या एवं महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने वाली जमात-ए-इस्लामी से प्रतिबंध हटा दिया गया है, साथ ही फांसी की सजा पा चुके एटीएम अजहरुल इस्लाम को दोष मुक्त कर दिया गया है एवं मोहम्मद यूनुस चीन की गोद में बैठने को उतावले दिखाई दे रहे हैं। उदारवादी बांग्लादेश को कट्टरपंथी देश बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे मोहम्मद यूनुस का चेहरा बेनकाब हो गया है, वे अलोकप्रिय होते जा रहे हैं, इसलिये वे जहां भी जाते हैं, वहां उनके विरुद्ध जमकर प्रदर्शन किये जाते हैं, इस स्टोरी में बांग्लादेश में चल रही गतिविधियों पर ही चर्चा कर रहे हैं बीपी गौतम... ब्रिटेन में हुआ यूनुस का जोरदार विरोध बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस को ब्रिटेन के लंदन में प्रदर्शनकारियों के गुस्से का सामना करना पड़ा। सैकड़ों ब्रिटिश बांग्लादेशी मोहम्मद यूनुस के होटल के बाहर जमा हो गये और यूनुस गो बैक के नारे लगाने लगे। अवामी लीग की यूके शाखा और अन्य संबंधित संगठनों से जुड़े प्रदर्शनकारियों ने मोहम्मद यूनुस के प्रशासन पर मानवाधिकारों के उल्लंघन, लिंचिंग, हत्याओं और बांग्लादेश में कानून व्यवस्था बर्बाद करने का आरोप लगाया। प्रदर्शनकारियों ने तख्तियां पकड़ी हुई थीं, जिन पर लिखा था कि यूनुस भीड़तंत्र के निर्माता, जिहादियों को मुक्त करने और देशभक्तों को जेल में डालने वाले हैं, उनके इस्तीफे की मांग भी की गई। प्रदर्शनकारियों ने यूनुस के खिलाफ नारे लगाये और उनके पुतले को जूतों की माला पहनाई। मोहम्मद यूनुस और उनके प्रेस सचिव शफीकुल आलम की तस्वीरें कूड़ेदान में डाल दी गईं। अवामी लीग समर्थकों ने सड़कों पर बैनर और पोस्टर लेकर शेख हसीना के समर्थन में नारे लगाये। यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम को भी भारी विरोध का सामना करना पड़ा है, उन्हें प्रदर्शनकारियों से बचने के लिये पिछले दरवाजे से होटल से बाहर निकलना पड़ा लेकिन, प्रवासी बांग्लादेशियों ने उनके साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया और पीछा करने की कोशिश की, वह ब्रिटिश पुलिस सुरक्षा से घिरे होने के कारण किसी तरह बच पाये, इसके पहले जापान दौरे के दौरान मोहम्मद यूनुस को इसी तरह के विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा था। यूनुस की लोकप्रियता बांग्लादेश में भी लगातार कम होती दिख रही है। अंतरिम सरकार और बांग्लादेश की सेना के अंदर तनाव बढ़ गया है, कई लोगों ने पिछले साल शेख हसीना को हटाये जाने के बाद देश को बेहतर बनाने के लिये पर्याप्त प्रयास न करने के लिये यूनुस को दोषी ठहराया है। शेख हसीना के बोलने पर भी है यूनुस को आपत्ति मोहम्मद यूनुस ने बुधवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत की धरती से राजनीतिक बयान देने पर रोक लगाने की उनकी मांग को अनसुना कर दिया। युनूस ने कहा कि जब अप्रैल में बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान द्विपक्षीय बैठक हुई थी तो, उन्होंने भारतीय धरती से शेख हसीना को राजनीतिक बयान देने से रोकने के लिये पीएम मोदी से अपील की थी। लंदन के चैटम हाउस में बातचीत के दौरान यूनुस ने कहा कि भारत से शेख हसीना के प्रत्यर्पण के प्रयास जारी रहेंगे, उन्होंने कहा कि भारत से हम बहुत अच्छा रिश्ता रखना चाहते हैं, वह हमारा पड़ोसी है, हम उनके साथ कोई समस्या नहीं चाहते हैं लेकिन, भारतीय प्रेस के फेक न्यूज के कारण हर समय कुछ न कुछ दिक्कतें हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि यह बांग्लादेश को आशंकित करता है और गुस्सा दिलाता है, हम इस पर बहुत काबू पाने की कोशिश करते हैं लेकिन, साइबर स्पेस में बहुत सी चीजें घटित होती रहती हैं और हम उससे अलग नहीं रह सकते हैं। मोहम्मद युनूस ने कहा कि हम शांत रहने की कोशिश करते हैं, अचानक कुछ घटित होता है और फिर गुस्सा लौट आता है, इस समय हमारे लिये शांति स्थापित करना ही बड़ा काम है। यूसुस ने की 2026 में चुनाव कराने की घोषणा बांग्लादेश सरकार के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस ने शुक्रवार को घोषणा करते हुये कि अगला राष्ट्रीय चुनाव अप्रैल 2026 के पहले पखवाड़े में आयोजित किया जायेगा। ईद-उल-अजहा की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुये उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग जल्द ही चुनाव की विस्तृत रूपरेखा पेश करेगा। यूनुस ने अपने संबोधन में कहा कि अंतरिम सरकार तीन मुख्य उद्देश्यों सुधार, न्याय और चुनाव के आधार पर सत्ता में आई है। यूनुस ने कहा कि सरकार ने स्वतंत्र, निष्पक्ष, प्रतिस्पर्धी और स्वीकार्य चुनाव आयोजित करने के लिये सभी दलों के साथ चर्चा की है, इसके अलावा न्याय, सुधार और चुनाव से संबंधित चल रही सुधार गतिविधियों की समीक्षा के बाद मैं आज देशवासियों को घोषणा कर रहा हूं कि अगले राष्ट्रीय चुनाव अप्रैल 2026 के पहले पखवाड़े में होंगे। यूनुस ने कहा कि हमारा लक्ष्य भविष्य में संभावित संकट को रोकना है, इसके लिये संस्थागत सुधार की जरूरत है। चुनाव प्रक्रिया से सीधे जुड़े संस्थानों में सुशासन सुनिश्चित किये बिना, छात्रों और नागरिकों की ओर से दिये गये सभी बलिदान बेकार हो जायेंगे, उन्होंने दोहराया कि मौजूदा प्रशासन का गठन तीन चीजों के लिये किया गया है, जिनमें सुधार, न्याय और चुनाव शामिल हैं। उन्होंने कहा कि हम यह सुनिश्चित करने के लिये हर जरूरी उपाय कर रहे हैं कि देश इस अवधि के दौरान स्वतंत्र और विश्वसनीय चुनाव कराने के लिये तैयार हो। चुनावों में बार-बार हेर-फेर के द्वारा एक राजनीतिक दल फासीवादी शासन में बदल गया। जिन लोगों ने उन दिखावटी चुनावों का आयोजन किया, उन्हें लोगों ने अपराधी करार दिया। उनसे जो शासन उभरे, उन्हें आखिरकार जनता ने अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि चुनाव के समय को लेकर जनता और राजनीतिक दलों में काफी उत्सुकता है। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, चुनाव दिसंबर से जून के बीच होंगे। सरकार इस समय सीमा में विश्वसनीय तरीके से चुनाव कराने के लिये अनुकूल माहौल सुनिश्चित करने के वास्ते लगातार काम कर रही है। यूनुस ने कहा कि हमारा मानना है कि आगामी ईद-उल-फितर तक हम न्याय और सुधारों के संबंध में व्यापक रूप से स्वीकार्य स्थिति पर पहुंच जायेंगे, खास तौर पर मानवता के खिलाफ अपराध के लिये जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराकर, जो जुलाई के विद्रोह के शहीदों के प्रति हमारा सामूहिक कर्तव्य है। दिसंबर तक चुनाव कराने की मांग उठी खालिदा जिया की पार्टी और उसकी विचारधारा वाले अन्य दल मांग कर रहे हैं कि चुनाव दिसंबर तक कराये जायें। खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने 28 मई को यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर दबाव बढ़ाते हुये दिसंबर तक चुनाव कराने की मांग को लेकर ढाका में एक विशाल रैली निकाली थी। जुलाई में विद्रोह करने वाले नेताओं से बनी नई राजनीतिक पार्टी नेशनल सिटिजन पार्टी सुधारों के पूरा होने के बाद चुनाव कराने पर जोर दे रही है। जमात-ए-इस्लामी का भी शुरू में एनसीपी जैसा ही रुख था। पार्टी ने तब कहा था कि चुनाव रमजान से पहले फरवरी में हो सकते हैं। पिछले हफ्ते जमात के शीर्ष नेताओं ने कहा था कि चुनाव दिसंबर से अप्रैल के बीच हो सकते हैं। सेना प्रमुख जनरल वकर-उज-जमान ने 21 मई को कहा था कि राष्ट्रीय चुनाव इस साल दिसंबर तक हो जाने चाहिये। स्वतंत्रता सेनानी की परिभाषा बदली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने देश के संस्थापक और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता बंगबंधु शेख मुजीब-उर-रहमान को दिये गये राष्ट्रपिता के दर्जे को खत्म कर दिया है। स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़े कानून में संशोधन कर दिया गया है। कुछ दिन पहले ही मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने शेख मुजीब-उर-रहमान की तस्वीर को नये नोटों से हटाया है। अब अंतरिम सरकार ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिषद अधिनियम में संशोधन किया है, जिसमें स्वतंत्रता सेनानी की परिभाषा को बदल दिया गया है। बांग्लादेश के कानून, न्याय और संसदीय कार्य मंत्रालय ने संशोधन से जुड़ा अध्यादेश मंगलवार की रात को जारी किया। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कानून में राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीब-उर-रहमान शब्द को भी संशोधित किया गया है। कानून में जहां-जहां बंगबंधु शेख मुजीब-उर-रहमान का नाम पहले लिखा हुआ था, उन हिस्सों को भी पूरी तरह से मिटा दिया गया है। सरकार की ओर से जारी किये गये नये अध्यादेश में मुक्ति युद्ध की परिभाषा में भी थोड़े लेकिन, महत्वपूर्ण बदलाव किये गये हैं। नई परिभाषा में बंगबंधु शेख मुजीब-उर-रहमान का नाम पूरी तरह हटा दिया गया है। संशोधित कानून के अनुसार मुजीबनगर सरकार यानी, युद्धकालीन निर्वासित सरकार से जुड़े सभी संसद सदस्य और विधायक, जिन्हें पहले संविधान सभा का सदस्य माना जाता था, अब स्वतंत्रता सेनानी नहीं कहलाये जायेंगे, अब उन्हें एक नई श्रेणी स्वतंत्रता संग्राम के सहयोगी में रखा गया है। जेईआई को मिली मान्यता बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले दिनों चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह देश में प्रतिबंधित किये गये राजनीतिक दल जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) को दोबारा मान्यता दे। सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला जमात-ए-इस्लामी की 10 साल से अधिक समय से चली आ रही न्यायिक लड़ाई के बाद आया है। अब जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल की तरह चुनाव लड़ सकेगी। 1971 के बांग्लादेश स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जिस जमात-ए-इस्लामी ने पाकिस्तान का समर्थन करते हुये अलग देश की मांग को नकार दिया था, उसकी शेख हसीना के शासन काल में सक्रिय राजनीति में वापसी काफी मुश्किल मानी जा रही थी, इसीलिये अगस्त 2024 में शेख हसीना के पीएम पद से अपदस्थ होने और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार के गठन के बाद से ही जेईआई की सक्रियता बढ़ गई थी। बांग्ला भाषियों की दुश्मन है जेईआई जमात-ए-इस्लामी का इस्लामिक मूल्यों पर संगठित भारत बनाने का सपना था, जो ब्रिटिश साम्राज्य ने दो हिस्सों में देश को बाँट कर तोड़ दिया था, इसके बाद जमात-ए-इस्लामी ने अपने दायरे को भारत से बाहर बढ़ाते हुये पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) तक फैलाया। चूंकि पाकिस्तान का गठन धार्मिक आधार पर हुआ था, इसलिये जमात-ए-इस्लामी ने बांग्लादेश में आसानी से पैर फैला लिये। पूर्वी पाकिस्तान में जब बांग्ला संस्कृति और भाषा को लेकर पश्चिमी पाकिस्तान से मतभेद शुरू हुआ तो, हजारों की संख्या में लोगों ने प्रदर्शन शुरू किये, इस दौरान पश्चिमी पाकिस्तान के सैन्य शासन ने बांग्लादेश में जबरदस्त जुल्म किये। हालांकि, शेख मुजीब-उर-रहमान के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान ने भारत की मदद से पश्चिमी पाकिस्तान से आजादी की जंग शुरू कर दी। जमात-ए-इस्लामी ने इस जंग के दौरान पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ आवाज उठाने वाले बांग्ला लोगों पर जुल्म में पाकिस्तानी सेना का साथ दिया। पश्चिमी पाकिस्तान ने इस दौरान जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ताओं के साथ एक शांति वाहिनी का गठन किया, जो कि अलग बांग्लादेश की मांग करने वालों को कुचलने के लिये बनाई गई थी, इस दौरान हजारों लोगों की हत्या की गईं, सैकड़ों महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया गया। पाकिस्तानी सेना और जेईआई कार्यकर्ताओं ने जिनकी जान ली, उनमें बच्चे, विद्वान, डॉक्टर, वैज्ञानिक आदि शामिल थे। हजारों महिलाओं को सैन्य कैंपों में बंधक बनाकर रखा गया, उन्हें पाकिस्तानी सेना के सामने मनोरंजन के लिये पेश किया गया। 1971 की जंग के बाद बांग्लादेश आजाद हुआ तो, जमात-ए-इस्लामी के कई कार्यकर्ता जान बचाने के लिये पश्चिमी पाकिस्तान भाग गये थे, कुछेक बांग्लादेश में ही छिपे रहे, इस दौरान बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री शेख मुजीब ने धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद, समाजवाद और लोकतंत्र को संविधान के चार सिद्धांतों के तौर पर स्थापित किया, साथ ही ऐसे राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगा दिया, जो कि धार्मिक आधार पर बने थे, इसीलिये जमात-ए-इस्लामी प्रतिबंधित कर दी गई थी। हालांकि 1975 में शेख मुजीब की हत्या और 1977 में मेजर जनरल जिया-उर-रहमान के सत्ता में आने के बाद जमात-ए-इस्लामी की राजनीति में वापसी तय हो गई। जिया-उर-रहमान की हत्या के बाद उनकी पत्नी खालिदा जिया ने भी जेईआई का समर्थन जारी रखा, दोनों दलों ने इस दौरान गठबंधन बनाया और सरकार में जमात के कई चेहरों को पद मिले। जमात-ए-इस्लामी को शेख मुजीब की बेटी शेख हसीना के सत्ता में आने के पुनः प्रतिबंधित कर दिया गया। शेख हसीना ने 2008 के अपने चुनावी अभियान में इसे एजेंडा बना लिया और वादा किया कि चुनाव जीतने के बाद वे 1971 की जंग के युद्ध अपराधियों को सजा दिलायेंगी। बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवारों ने इस वादे पर शेख हसीना का जमकर समर्थन किया। निरस्त किया अवामी लीग का पंजीकरण बांग्लादेश में अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग का 10 मई को पंजीकरण निरस्त कर दिया गया था, इसलिये अब अवामी लीग चुनाव नहीं लड़ सकेगी। बांग्लादेश ने नये संशोधित आतंकवाद विरोधी कानून के तहत देश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग को आधिकारिक तौर पर भंग कर दिया है, यह कदम मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के पार्टी की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने के ठीक दो दिन बाद आया है। गृह सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) जहांगीर आलम ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा था कि इसको लेकर आज एक गजट अधिसूचना जारी की गई है। अधिसूचना के अनुसार अवामी लीग और उसके संबद्ध संगठनों को आतंकवाद विरोधी अधिनियम- 2025 के तहत तब तक प्रतिबंधित किया गया है जब तक कि बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी-बीडी) अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के मुकदमे को पूरा नहीं कर लेता, उन्होंने कहा कि संशोधित कानून की धारा- 18 सरकार को व्यक्तियों के साथ-साथ किसी भी इकाई और संगठन या, व्यक्ति को आतंकवादी-संबद्ध रूप में घोषित कर सकती है। 2009 के मूल आतंकवाद विरोधी अधिनियम में संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाने के प्रावधान नहीं थे। हालांकि अब यह प्रावधान दे दिये गये हैं। राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने आतंकवाद विरोधी अधिनियम में संशोधन करते हुये एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें कानून के तहत मुकदमे का सामना कर रहे व्यक्तियों या, संस्थाओं के समर्थन में प्रेस बयानों, सोशल मीडिया सामग्री और सार्वजनिक समारोहों पर रोक लगा दी गई। जेईआई का प्रभाव बढ़ने से बढ़ेगी भारत की चिंता जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान का घनघोर समर्थन करता रहा है। पाकिस्तान की सेना और सरकार भी उसके समर्थन में आवाज उठाती रही है। जमात-ए-इस्लामी के पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से संपर्क होने की आशंका भी जताई जाती रही है। जेईआई का बांग्लादेश की सक्रिय राजनीति में लौटने का घटनाक्रम भारत के लिये भी चिंता का विषय कहा जा सकता है। बांग्लादेश भारत का मित्र राष्ट्र रहा है लेकिन, जेईआई का प्रभाव बढ़ने से हालात बदल सकते हैं, इसके संकेत भी आने लगे हैं। पिछले दिनों जेईआई के प्रतिनिधिमंडल ने ढाका में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं से मुलाकात की थी, इस दौरान जमात-ए-इस्लामी ने रोहिंग्याओं के लिये एक अलग स्वतंत्र राज्य बनाने का प्रस्ताव दिया था। अगर, बांग्लादेश और चीन ऐसे किसी कदम के साथ म्यांमार में आगे बढ़ते हैं तो, इससे भारत की एक और सीमा पर स्थितियां तनाव पूर्ण हो सकती हैं, साथ ही भारत और म्यांमार के बीच चल रही कई परियोजनायें भी प्रभावित हो सकती हैं। अजहरुल इस्लाम को किया दोष मुक्त बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने जमात-ए-इस्लामी के एक प्रमुख नेता एटीएम अजहरुल इस्लाम की दोष सिद्धि के फैसले को भी पलट दिया गया और जेल से आजाद कर दिया गया। अजहरुल इस्लाम को 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान बलात्कार, हत्या और नरसंहार के लिये 2014 में मौत की सजा सुनाई गई थी। अजहरुल इस्लाम को 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के समय रंगपुर क्षेत्र में 1256 लोगों की हत्या, 17 लोगों के अपहरण और 13 महिलाओं के साथ बलात्कार का दोषी पाया गया था, साथ ही उस पर लोगों को टॉर्चर करने, घरों में आगजनी करने और कई दूसरे गंभीर आरोप भी सिद्ध हुये थे। जेईआई और बीएनपी हैं सहयोगी जमात-ए-इस्लामी और बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी सहयोगी रहे हैं। पाकिस्तानी सेना के नरसंहार में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने के कारण बांग्लादेश की आजादी के बाद जमात-ए-इस्लामी को प्रतिबंधित कर दिया गया था, इसके नेता निर्वासन में विदेश भाग गये थे, उन्हें बीएनपी के संस्थापक और तत्कालीन बांग्लादेश के राष्ट्रपति जनरल जियाउर रहमान ने पुनर्वासित किया था। बीएनपी के शासन के दौरान उसके सहयोगी के रूप में जमात-ए-इस्लामी ने आईएसआई के एजेंडे को आगे बढ़ाने और बांग्लादेश की धरती पर भारतीय विद्रोहियों को तरजीह देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शेख हसीना के विरुद्ध जेईआई ने भड़काई हिंसा बांग्लादेश में गत वर्ष जब आरक्षण के मुद्दे पर अदालत के एक फैसले के खिलाफ छात्रों के प्रदर्शन शुरू हुये तो, इसमें जमात-ए-इस्लामी के छात्र संगठन- इस्लामी छात्र शिविर ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। आरोप है कि इस छात्र संगठन ने आंदोलन के दौरान कोर्ट के फैसले के लिये शेख हसीना को जिम्मेदार ठहराया और हिंसा भड़काई। अगस्त 2024 में जब शेख हसीना को पद छोड़कर बांग्लादेश से भारत आना पड़ा तब इस्लामी छात्र शिविर का प्रभाव देश में और बढ़ गया। जमात-ए-इस्लामी के इस छात्र संगठन ने शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई थी, जिसकी वजह से बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस भी जेईआई पर प्रतिबंध को भुलाने और फिर इसे खुलकर छूट देने के लिये मजबूर माने जा रहे हैं। चीन की गोद में बैठने को उतावला है बांग्लादेश बांग्लादेश चीन की गोद में बैठने को लालायित दिखाई दे रहा है। पाकिस्तान और श्रीलंका की बर्बादी सामने है, फिर भी बांग्लादेश भारत के प्रति घृणा दर्शाते हुये चीन के गले लगने को आतुर दिखाई दे रहा है। चीनी कंपनियों से बांग्लादेश में निवेश करने का आह्वान करते हुये बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस ने कहा है कि चीन का मजबूत निवेश बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के लिये बड़ा बदलाव ला सकता है। उन्होंने कहा कि मैं चीनी निवेशकों से बांग्लादेश को अपना घर और उत्पादन केंद्र बनाने का आग्रह करता हूं... युवा लोग इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। मोहम्मद यूनुस ने अगरगांव स्थित बांग्लादेश निवेश विकास प्राधिकरण कार्यालय में निवेश और व्यापार पर चीन-बांग्लादेश सम्मेलन को संबोधित करते हुये पिछले दिनों यह आह्वान किया था। बांग्लादेश और चीन की सरकार ने इस कार्यक्रम का संयुक्त तौर पर आयोजन किया था। मोहम्मद यूनुस ने इस दौरान अपने बीजिंग दौरे को याद किया और कहा कि उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से चीनी कंपनियों के बांग्लादेश में निवेश का अनुरोध किया था। मोहम्मद यूनुस ने कहा कि उन्हें इस बात का सम्मान है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इतनी जल्दी बांग्लादेश में एक उच्चस्तरीय चीनी व्यापार प्रतिनिधिमंडल भेजकर अपने वादे को पूरा किया है। उन्होंने दावा किया कि चीनी कंपनियां दुनिया में मैन्युफैक्चरिंग में मास्टर हैं और बांग्लादेश उनका भागीदार बनना चाहता है, इसके अलावा उन्होंने कहा कि आपका सबसे बड़ा निवेश हमारी अर्थव्यवस्था के लिये गेम चेंजर हो सकता है। मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश को दक्षिण एशिया का रणनीतिक स्थान बताया, यह वही शब्द है, जो पाकिस्तान सालों से चीन और अमेरिका को साधने के लिये इस्तेमाल करता आया है। मोहम्मद यूनुस ने चीनी निवेशकों को बांग्लादेश में कपड़ा और परिधानों से लेकर फार्मास्यूटिकल्स, कृषि प्रसंस्करण, मत्स्य पालन, जूट और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे सेक्टर में निवेश करने का आह्वान किया, इस सम्मेलन में चीनी वाणिज्य मंत्री वांग वेन्ट और बांग्लादेश में चीनी राजदूत याओ वेन ने भी बात की। सम्मेलन में चीन की सौ से ज्यादा कंपनियों के लगभग 250 निवेशकों और व्यापारियों ने भाग लिया था। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अनुसार मुताबिक चीन ने करीब 7 से 8 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष निवेश किया हुआ है, इसके अलावा चीन की कंपनियों को बांग्लादेश में करीब 22 अरब डॉलर के निर्माण कॉन्ट्रैक्ट मिले हुये हैं, जो कुल प्रत्यक्ष निवेश के करीब 3 गुना के बराबर या, अधिक है। चीन बांग्लादेश में पद्मा ब्रिज रेल लिंक, कर्णफुली टनल, पायरा पावर प्लांट, दशेरकंडी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और इन्फो सरकार- 3 जैसी परियोजनायें चला रहा है, इसके अलावा एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों में बांग्लादेश ने चीन के साथ 17.54 अरब डॉलर के ऋण समझौते किये हुये हैं, जिनसे 12 प्रोजेक्ट्स का काम चल रहा है, इनमें से 4 अरब डॉलर का ऋण अभी तक चीन, बांग्लादेश को दे चुका है, जिनमें से बांग्लादेश ने करीब एक अरब डॉलर का ऋण चुका दिया है, इसके अलावा भविष्य की योजनाओं की बात करें तो, चीन ने बांग्लादेश को अतिरिक्त 20.65 अरब युआन (लगभग 2.87 अरब डॉलर) का ऋण देने का प्रस्ताव दिया है, जिससे कुल युआन ऋण 45.84 अरब युआन तक पहुंच सकता है। बांग्लादेश के लिये यह ऋण चुकाना अत्यंत मुश्किल है, लिहाजा मोहम्मद यूनुस ने पिछले बीजिंग दौरे के दौरान ऋण पुनर्गठन को लेकर बात की थी, विशेष रूप से उन परियोजनाओं के लिये, जो उम्मीदों के मुताबिक परिणाम नहीं दे पाई हैं, जैसे कि कर्णफुली टनल और दशेरकंडी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, साथ ही बांग्लादेश ने चीन से लगभग 5 अरब डॉलर के नये ऋण की बातचीत शुरू की है, जो विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने और आवश्यक कच्चे माल के आयात के लिये उपयोग किया जायेगा। हालांकि बांग्लादेश के पूर्व वित्त मंत्री ने चेतावनी दी है कि विकासशील देशों को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के अंतर्गत चीन से ऋण लेने से पहले सावधानी बरतनी चाहिये, ताकि वे ऋण जाल में न फंसें। देखा जा रहा है कि चीन की ज्यादातर परियोजनायें समय से काफी लेट चल रही हैं, जिसकी वजह से उनका लागत बढ़ता जा रहा है। चीन ने यह तरीका ऋण लेने वाले ज्यादातर देशों में अपनाया है, जिससे वो कर्ज के जाल में फंसते चले जाते हैं। भारत के विरुद्ध खुल कर खेल रहे हैं यूनुस ढाका में चीन-बांग्लादेश कॉन्फ्रेंस ऑन इन्वेस्टमेंट एंड ट्रेड कार्यक्रम आयोजित हुआ था, इस सम्मेलन में 150 से अधिक चीनी निवेशक और व्यापार प्रतिनिधि शामिल हुये थे, इस दौरान मोहम्मद यूनुस ने कहा था कि चीनी निवेशकों ने दक्षिण एशिया में कई देशों की अर्थव्यवस्था को बदला है, मैं उम्मीद करता हूं कि बांग्लादेश में भी इसी तरह का बदलाव देखने को मिले। उन्होंने कहा था कि बांग्लादेश चाहता है कि युवाओं के लिये नये मौके बनें और इसके लिये निवेश बढ़ाने के लिये कई तरह की कोशिशें की जा रही हैं, 10 महीने पहले अंतरिम सरकार के आने से बाद से किये जा रहे सुधारों के नतीजे सामने आ रहे हैं। मोहम्मद यूनुस ने शेख हसीना सरकार पर निशाना साधते हुये कहा था कि इकोनॉमिक जोन बनाये गये लेकिन, वो खाली पड़े रहे, वहां गाय और भैंसे चरने लगे थे, उन्होंने कहा था कि पिछले साल जुलाई में हुये विद्रोह के साथ देश में चीजें सुधरने लगी हैं। उन्होंने चीनी निवेशकों से अपील करते हुये कहा था हम निवेशकों से कहना चाहते हैं कि आप आयें और बांग्लादेश के इतिहास का हिस्सा बनें और साथ मिल कर प्रगति की राह पर चलें। मोहम्मद यूनुस ने बताया कि उनकी अंतरिम सरकार ने निवेशकों की मदद के लिये रिलेशनशिप मैनेजर्स नियुक्त किये हैं। उन्होंने कहा था कि मैं चीनी निवेशकों से कहना चाहता हूं कि वो बांग्लादेश में मौजूद मौकों का फायदा लें, बांग्लादेश को अपना घर बनायें और इसे अपना उत्पादन का केंद्र बनायें, इस सम्मेलन में चीनी व्यापारियों के अलावा व्यापार मंत्री वांग वेनताओ और बांग्लादेश के लिये चीन के राजदूत याओ वेन भी मौजूद थे, इससे पहले मोहम्मद यूनुस ने मार्च में चीन का चार दिनों का दौरा किया था, इस दौरान उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बात की, उन्होंने शी जिनपिंग से कहा था कि चीन की सरकारी कंपनियां तीस्ता नदी परियोजना में शामिल हो सकती हैं, जबकि भारत ने कहा था कि वो तीस्ता परियोजना में मदद करने के लिये तैयार है और इसकी स्टडी के लिये टीम भेजने को तैयार है। बांग्लादेश ने मोंगला बंदरगाह के आधुनिकीकरण और इसके विस्तार में चीन की मदद की बात की थी और कहा था कि वो चीन के साथ चटग्राम (पूर्व नाम चटगाँव) में चीनी आर्थिक और औद्योगिक जोन बनाने की उम्मीद करता है। ईएमएस/15जून2025 (लेखक, दिल्ली से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक गौतम संदेश के संपादक हैं)