ज़रा हटके
15-Jun-2025
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सिडनी (ईएमएस)। वैज्ञानिकों ने एक ऐसा अत्याधुनिक उपकरण विकसित किया है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से व्यक्ति के स्वास्थ्य डेटा का विश्लेषण करके यह अनुमान लगा सकता है कि उसे भविष्य में टाइप 1 डायबिटीज होने का कितना खतरा है। यह दावा किया है ऑस्ट्रेलिया के वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने। यह उपकरण केवल संभावित खतरे की पहचान नहीं करता, बल्कि यह भी बताने में सक्षम है कि मरीज के शरीर पर इलाज का किस प्रकार असर होगा। शोधकर्ताओं ने इस उपकरण में ‘डायनेमिक रिस्क स्कोर फॉर क्लीनिकल केयर’ (डीआरएस4सी) नामक प्रणाली का इस्तेमाल किया है, जो माइक्रो आरएनए आधारित तकनीक पर काम करती है। इसमें खून से प्राप्त बेहद छोटे आरएनए अंशों के विश्लेषण के ज़रिए यह पता लगाया जाता है कि व्यक्ति में टाइप 1 डायबिटीज विकसित होने की कितनी संभावना है। जानकारी के मुताबिक, यह उपकरण विशेष रूप से बच्चों के लिए उपयोगी हो सकता है, क्योंकि उनमें यह बीमारी तेजी से फैलती है और जीवन प्रत्याशा को औसतन 16 साल तक घटा सकती है। ऐसे में समय रहते खतरे की पहचान होने पर इलाज जल्द शुरू किया जा सकता है, जिससे बीमारी की गति धीमी की जा सकती है। अध्ययन के तहत भारत, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, हांगकांग, न्यूजीलैंड और अमेरिका के लगभग 5,983 व्यक्तियों के नमूनों का विश्लेषण किया गया। इसके बाद अतिरिक्त 662 लोगों पर इस तकनीक का परीक्षण किया गया, जिससे इसकी सटीकता की पुष्टि हुई। खास बात यह रही कि इलाज की शुरुआत के महज एक घंटे बाद ही यह स्कोर बता देता है कि कौन-से मरीज बिना इंसुलिन के बेहतर हो सकते हैं। मुख्य शोधकर्ता डॉ. मुग्धा जोगलेकर ने बताया कि यह तकनीक सिर्फ जेनेटिक जानकारी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह डायनेमिक रिस्क मार्कर का भी विश्लेषण करती है। सुदामा/ईएमएस 15 जून 2025