लेख
16-Jun-2025
...


रटंत तोते की तरह दुनिया के अधिकांश देशों के कर्ता-धर्ता बुलंद आवाज में यह तो कहते सुने जाते हैं कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता, लेकिन फिर भी इस युद्ध रुपी जाल में वही फंसते हुए दिख जाते हैं। यदि यकीन नहीं होता तो पिछले दो दशक के आंकड़े उठाकर देख लें, यकीन हो जाएगा। अधिकांश देश अपनी सीमा के अंदर और सीमा पार से उपजती समस्याओं का समाधान बातचीत से निकालने की बजाय एक-दूसरे पर हिंसक कार्रवाई करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। कहने को वर्तमान में अमेरिका की विश्व स्तर पर चौधराहट कायम है, लेकिन जिस तरीके से ट्रंप सरकार व्यापारिक लाभ को आगे रखकर फैसले ले रही है, उससे दुनियां के देश शांति का रास्ता छोड़ हिंसा की राह अपनाने को मजबूर होते चले जा रहे हैं। फिर चाहे मामला अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पूर्व शासनकाल की बात हो या फिर वर्तमान में लिए जा रहे कल्पनातीत फैसले हों। इससे हटकर एक तरफ रुस और यूक्रेन के बीच एक लंबा युद्ध का इतिहास लिखा जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ हमास के हमले के बाद इजराइल ने गाजा का जो हाल किया, उसे देख दुनियां कराह उठी है। नौनिहाल बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों समेत बीमार लोगों की बड़ी तादात इजराइली हमलों में इस दुनियां को सदा के लिए अलविदा कह चुकी है। खूबसूरत दिखने वाले मकानात और शहर के शहर खंडहर हो चुके हैं। अब खाने-पीने और इलाज नहीं होने के कारण नई आपात स्थिति निर्मित हो गई है। इसलिए कहा जा रहा है कि इस समय यदि किसी को दुनियां में क्रूरता के साथ इंसानियत कुचलने का प्रमाण देखने का दिल करे तो वह गाजा का दौरा कर सकता है। इस हिंसा का कोई अंत नहीं है, क्योंकि जब सोच कत्लेआम की हो जाए तो खून भी पानी हो जाता है और मानव कीड़े-मकोड़ों की तरह नजर आने लगते हैं। इसी बीच इजराइल ने संभवत: दुनियां का ध्यान गाजा से हटाने के लिए ईरान पर यह कहते हुए हमला किया कि उसे परमाणु संपन्न देश बनने नहीं दिया जाएगा। इसके बाद लगातार चौथे दिन इजराइल और ईरान की एक‑दूसरे पर आक्रामक कार्रवाई ने पश्चिम एशिया को विस्फोटक मोड़ पर ला-खड़ा किया है। रात के अंधेरे में इजराइली वायुसेना ने तेहरान स्थित विदेश मंत्रालय परिसर को निशाना बनाया, जहां 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। इससे एक दिन पहले ही ईरानी रक्षा मंत्रालय पर मिसाइल बरसाई गईं थीं। स्वास्थ्य मंत्रालय के ताज़ा आंकड़ों की बात करें तो ईरान में वैज्ञानिकों और सैनिक कमांडरों से हटकर अब तक करीब 224 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि डेढ़ हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। वहीं दूसरी ओर ईरान ने ‘ट्रू-प्रॉमिस‑थ्री’ नामक अभियान के तहत पलटवार करते हुए सेंट्रल इजराइल पर बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, जिनसे पांच लोगों की मौत हो गई और करीब 90 लोग जख्मी हो गए। इजराइली पक्ष का कहना है कि ईरानी हमलों में कुल 20 मौतें हुई हैं जबकि 500 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। इजराइल ने भी इस युद्धक्षेत्र को ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयन’ का नाम देते हुए दो‑सौ से अधिक फाइटर जेट तैनात किए हैं। इस कार्रवाई में 14 ईरानी परमाणु‑महत्व के वैज्ञानिक और 20 से ज्यादा सैन्य कमांडर मारे जाने का दावा किया गया है। जवाबी कार्रवाई में ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड (आईआरजीसी) ने इजराइल के तीन एफ‑35 जेट गिराने, कुछ रक्षा प्रतिष्ठानों को ध्वस्त करने तथा तेल‑गैस संपदा पर हमले का संकल्प जताया है। दोनों देशों की बयानबाज़ी ने क्षेत्रीय‑सुरक्षा संतुलन की कमर तोड़ दी है, यहां तक कि आईआरजीसी के वरिष्ठ जनरल मोहसेन रेज़ाई ने दावा किया कि ज़रूरत पड़ने पर पाकिस्तान नया सहयोगी होगा। इसका समय रहते इस्लामाबाद ने खंडन कर दिया, पर इस बयान ने परमाणु‑खतरे की चिंता को और गहरा कर दिया है। ऐसे विस्फोटक दृश्य‑पटल पर सात प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का मंच—जी‑7 अपना वार्षिक शिखर सम्मेलन आयोजित कर रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, कनाडा और जापान के नेता ऊर्जा‑सुरक्षा, खाद्य‑श्रृंखला और वैश्विक विकास के मसले पर चर्चा को बैठेंगे, किंतु राजनयिक गलियारे में असली कसौटी यही होगी कि वे इजराइल‑ईरान युद्धविराम के लिए कोई ठोस खाका पेश कर पाते हैं या नहीं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प, जिन्होंने दावा किया है कि बहुत जल्द शांति समझौता होगा, पहली बार सम्मेलित मंच पर प्रत्यक्ष रूप से दोनों पक्षों को संयम बरतने का आग्रह कर सकते हैं। यूरोपीय संघ पहले ही क्षेत्र में मानवीय गलियारे तथा अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की माँग उठा चुका है, लेकिन बिना संयुक्त रूख के परिणाम निकल पाना संभव नहीं लगता है। जी‑7 की भूमिका इस बार इसलिए भी निर्णायक है कि मौजूदा टकराव से तेल‑बाज़ार बेकाबू होता दिख रहा है। याद रहे यदि संघर्ष लंबा खिंचा तो ब्रेंट क्रूड 150 डॉलर प्रति बैरल लांघ सकता है, जिससे वैश्विक मुद्रास्फीति की नई लहर उठेगी। भारत, चीन और उभरते एशियाई देश इसके गंभीर असर से खुद को बचा नहीं सकेंगे। कुल मिलाकर इस स्थिति में ऊर्जा‑आपूर्ति और वैकल्पिक स्रोतों पर जी‑7 का सामूहिक रुख महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है। ईएमएस / 16 जून 25