- मप्र में आईडी कार्ड लटका कर घूमेंगे हाथी भोपाल (ईएमएस)। मप्र टाइगर और लैपर्ड स्टेट के रूप में प्रसिद्ध रहा है। प्रदेश के टाइगर रिजर्व में बाघों की पहचान और उनके व्यवहार के आधार पर कई बाघों को नाम भी दिया जाता रहा है, लेकिन अब इससे आगे बढक़र मध्य प्रदेश वन विभाग जंगलों में घूम रहे एक-एक जंगली हाथी की आईडी बनाने जा रही है। इसके लिए एलीफेंट आईडी परियोजना शुरू की गई है। इसमें सभी नर और मादा हाथियों की तस्वीर खींची जाएगी और इसके आधार पर उनकी पहचान निर्धारित कर उनकी आईडी तैयार की जाएगी।इसमें हाथी की फोटो भी होगी। प्रदेश के जंगलों में हाथियों की संख्या बढ़ रही है। ओडिशा से छत्तीसगढ़ होते हुए मध्य प्रदेश के जंगलों में हाथियों का झुंड पहुंचा और बाद धीरे-धीरे अब यह प्रदेश के जंगलों में ही रूक गए। प्रदेश के बांधवगढ़ नेशनल पार्क में हाथियों का झुंड लंबे समय से घूम रहा है। हालांकि वन्य जीव विशेषज्ञ हाथियों के इस मूवमेंट का पुराना कॉरिडोर बताते हैं। प्रदेश के टाइगर रिजर्व में बढ़ती हाथियों की संख्या को देखते हुए अब वन विभाग इन सभी हाथियों की एलीफेंट आईडी बनाने जा रही है। यह आईडी ठीक वैसी ही होगी, जैसी बाघों की पहचान के लिए उनकी आईडी बनाई जाती है। इस तरह बनाई जाएगी हाथियों की आईडी वन्यजीव विशेषज्ञ सुदेश वाघमारे बताते हैं कि जिस तरह बाघों की पहचान कुछ विशेष लक्षण देखकर की जाती है, इसी तरह हाथियों की आईडी भी कुछ विशेष लक्षणों को देखकर तैयार की जाती है। बाघों की पहचान उनके शरीर पर पीली काली पट्टियों को आधार पर तैयार की जाती है, क्योंकि जिस तरह हर इंसान के उंगलियों की रेखाएं अलग-अलग होती है, इसी तरह टाइगर के शरीर की रेखाएं भी अलग होती हैं। इसी तरह जब हाथियों की आईडी बनाई जाती है, तो उसके लिए हाथियों के सिर, कान, पूंछ और पीठ की तस्वीरें ली जाती है। हाथियों के इन अंगों की तस्वीरों के आधार पर उनकी कम्प्यूटर के माध्यम से एक खास आईडी तैयार की जाती है। इसके बाद हर हाथी को एक कोड नंबर दिया जाता है। इसलिए बनेगा हाथियों का आईकार्ड दरअसल, मध्य प्रदेश में हाथियों की संख्या बढऩे के साथ ही उनका अलग-अलग क्षेत्रों में मूवमेंट बढ़ रहा है। हाथियों की आइडी बनाए जाने के बाद वन विभाग को यह पहचान करना आसान होगा कि कौन हाथी किस झुंड में है और वह किस लोकेशन में है। इससे हाथियो की निगरानी भी संभव हो सकेगी। इसके अलावा हाथियों में मादा हाथियों की अलग से पहचान हो सकेगी और इससे आगे चलकर उनसे पैदा होने वाले बच्चों की पहचान करना और उनकी आईडी जनरेट करना भी आसान होगा। विनोद / 16 जून 25