राष्ट्रीय
17-Jun-2025
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चीन और पाकिस्तान का कहीं नाम ही नहीं मुंबई (ईएमएस)। बीते 11 सालों में भारतीय रेलवे ने कई मोर्चा पर कीर्तिमान हासिल किया है। भारतीय रेलवे नई ट्रेन से लेकर परिवहन के मामले में नए मापदड़ तय कर रही है। इसी कड़ी में रेलवे ने नई कारों को ढोने में जबरदस्त तरक्की की है। वित्त वर्ष 2013-14 में जितनी कारें बनती थीं, उससे सिर्फ 1.5 प्रतिशत ही रेल से जाती थीं। लेकिन 2024-25 में यह आंकड़ा बढ़कर 24 प्रतिशत से भी ज्यादा हो गया है। इस मामले में भारतीय रेलवे ने कई बड़े-बड़े देशों को पीछे छोड़ दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे के अधिकारियों ने बताया कि बीते वित्तीय वर्ष में देश में कुल 50.6 लाख कारें बनीं। इसमें से करीब 12.5 लाख कारों को ट्रेनों से भेजा गया। सिर्फ पिछले चार सालों में, ट्रेनों से जाने वाली कारों की संख्या 14.7 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 24.5 प्रतिशत हो गई है। हमें उम्मीद है कि यह सिलसिला जारी रहेगा। क्योंकि कार बनाने वाली कंपनियों को रेल ज्यादा सुविधाजनक, किफायती और पर्यावरण के लिए बेहतर लगती है। ट्रेन के द्वारा कार ढोने के मामले में भारत ने चीन और जर्मनी सहित दुनिया के कई बड़े-बड़े देशों को पीछे छोड़ दिया है। पूरी दुनिया में ट्रेनों से कारों को ढोने के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। पहले नंबर पर अमेरिका है, जहां करीब 75 लाख कारें रेल से जाती हैं। जर्मनी लगभग 6 लाख कारों के साथ तीसरे नंबर पर है। सूत्रों का कहना है कि ट्रकों से 600 किमी से ज्यादा दूर जाने वाली कारों की संख्या करीब आधी हो गई है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि रेलवे इस काम में ज्यादा हिस्सा पाना चाहता है। लॉजिस्टिक्स कंपनी के बड़े अधिकारी ने कहा कि इससे सड़क परिवहन उद्योग को बहुत नुकसान हुआ है, जो ज्यादा लोगों को नौकरी देता है। रेलवे ज्यादा रैक उपलब्ध करा रहा है और कारोबार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन भी दे रहा है। रेल मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि ट्रेनों से कारों को ढोने में यह उछाल लगातार कोशिशों की वजह से आया है। 2013-14 में इस काम के लिए सिर्फ 10 रैक थे। साल 2021 तक इनकी संख्या 29 हो गई और अब यह 170 है। उन्होंने बताया कि 2024-25 में कारों को ढोने के लिए कुल 7,578 चक्कर लगाए गए। दो साल पहले रेलवे ने वैगनों को इस तरह से डिजाइन किया कि उसमें एसयूवी जैसी बड़ी गाड़ियां भी दोनों डेक पर आ सकें। पहले एक रैक में 27 वैगन होते थे, जिसमें सिर्फ 135 एसयूवी आ पाती थीं। लेकिन अब इनकी संख्या दोगुनी होकर 270 हो गई है। इससे रेलवे एक बार में ज्यादा गाड़ियां ले जा पाता है।रेलवे की इस तरक्की से सड़क परिवहन कंपनियों को जरूर थोड़ी परेशानी हो रही होगी। लेकिन इससे पर्यावरण को फायदा हो रहा है, क्योंकि ट्रेनें ट्रकों के मुकाबले कम प्रदूषण करती हैं। आशीष/ईएमएस 17 जून 2025