नई दिल्ली,(ईएमएस)। राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने जज यशवंत वर्मा के खिलाफ प्रस्तावित महाभियोग प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि वर्मा के खिलाफ आरोप इतने स्पष्ट नहीं हैं कि उनके आधार पर महाभियोग चलाया जाए। सिब्बल ने कहा, इस मामले में जांच के बिना किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता। महज कुछ वीडियो क्लिप और जले हुए नोटों की बातें, जो मीडिया में आई हैं, उन्हें बिना जांच के आधार नहीं बनाया जा सकता। ये भी तो बताएं कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर यादव के खिलाफ कार्रवाई रुकी क्यों? एक इंटरव्यू में कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि सरकार पक्षपात कर रही है। सिब्बल ने सरकार और राज्यसभा के सभापति पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर यादव के खिलाफ 55 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित महाभियोग प्रस्ताव पर छह महीने से कोई कार्रवाई न करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, न्यायमूर्ति यादव का सांप्रदायिक भाषण स्पष्ट है और इसे उन्होंने अस्वीकार नहीं किया। फिर भी, सभापति ने हस्ताक्षरों की जांच के लिए इतना समय क्यों लिया? यह स्पष्ट है कि सरकार इस न्यायाधीश को बचाना चाहती है। सिब्बल ने यह भी सवाल उठाया कि सभापति ने मुख्य न्यायाधीश को न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ इन-हाउस जांच को रोकने के लिए पत्र क्यों लिखा, जबकि न्यायमूर्ति वर्मा के मामले में ऐसा नहीं किया गया। उन्होंने मांग की कि विपक्ष को न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया पहले शुरू करने पर जोर देना चाहिए। सिब्बल ने कहा कि पहले जज यादव के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, उसके बाद ही वर्मा के मामले पर विचार होना चाहिए। ऐसे महाभियोग नहीं चलाया जा सकता सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच कोई वैधानिक जांच नहीं है और इसके आधार पर महाभियोग नहीं चलाया जा सकता। उन्होंने कहा, महाभियोग तभी लाया जाना चाहिए जब सांसदों को जज की कथित गतिविधियों पर पूरा विश्वास हो, जैसा कि हमने जस्टिस दीपक मिश्रा के मामले में किया था। सिब्बल ने यह भी सवाल उठाया कि क्या तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को इन-हाउस रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजनी चाहिए थी। यह संसद का विषय है, न्यायपालिका का नहीं। वीरेंद्र/ईएमएस/17जून2025