लेख
19-Jun-2025
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हमारे सुदर्शनजी साभार! राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पांचवे सर संघचालक कुप्पाली सीतारमैया सुदर्शन तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर बसे कुप्पहल्ली, मैसूर ग्राम के मूल निवासी थे। केएस सुदर्शन के पिता सीतारामैया ने शासकीय सेवा नौकरी के कारण अधिकांश समय मध्यप्रदेश में ही बिताया। वहीं रायपुर जिले में 18 जून, 1931 को श्री सुदर्शन का जन्म हुआ। तीन भाई और एक बहिन वाले परिवार में सुदर्शन जी सबसे बड़े थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा रायपुर, दमोह, मंडला और चंद्रपुर में हुई। मात्र 9 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ शाखा में भाग लिया। उन्होंने वर्ष 1954 में जबलपुर के सागर विश्वविद्यालय, इंजीनिरिंग कालेज से दूरसंचार विषय में बीई की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने 23 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बने। सर्वप्रथम उन्हें रायगढ़ भेजा गया। समरसता और सद्भाव श्री सुदर्शन संघ कार्यकर्ताओं के बीच शारीरिक प्रशिक्षण के लिए जाने जाते थे। वह स्वदेशी की अवधारणा में विश्वास रखते थे। समरसता और सद्भाव के लिए अपने कार्यकाल के दौरान वह ईसाई और मुस्लिम समाज से सतत संवाद स्थापित करने में प्रयत्नशील रहे। श्री सुदर्शन जी ज्ञान के भंडार, अनेक विषयों एवं भाषाओं के जानकार तथा अद्भुत वक्तृत्व कला के धनी थे। इसलिए उनको राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का ज्ञानकोष कहा जाता था। किसी भी समस्या की गहराई तक जाकर, उसके बारे में मूलगामी चिन्तन कर उसका सही समाधान ढूंढ निकालना उनकी विशेषता थी। पंजाब की खालिस्तान समस्या हो या असम का घुसपैठ विरोधी आन्दोलन, अपने गहन अध्ययन तथा चिन्तन की स्पष्ट दिशा के कारण उन्होंने इनके निदान हेतु ठोस सुझाव दिये। एकात्मता मन्त्र उनकी यह सोच थी कि बंगलादेश से असम में आने वाले मुसलमान षड्यन्त्रकारी घुसपैठिये हैं। उन्हें वापस भेजना ही चाहिए, जबकि वहां से लुट-पिट कर आने वाले हिन्दू शरणार्थी हैं, अतः उन्हें सहानुभूतिपूर्वक शरण देनी चाहिए। श्री सुदर्शन को संघ-क्षेत्र में जो भी दायित्व दिया गया उसमें उन्होंने नये-नये प्रयोग किये। 1969 से 1971 तक उन पर अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख का दायित्व था। इस दौरान ही खड्ग, शूल, छुरिका आदि प्राचीन शस्त्रों के स्थान पर नियुद्ध, आसन, तथा खेल को संघ शिक्षा वर्गों के शारीरिक पाठ्यक्रम में स्थान मिला। 1979 में वे अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख बने। शाखा के अतिरिक्त समय से होने वाली मासिक श्रेणी बैठकों को सुव्यवस्थित स्वरूप 1979 से 1990 के कालखंड में ही मिला। शाखा पर होनेवाले ‘प्रातःस्मरण’ के स्थान पर नये ‘एकात्मता स्तोत्र’ एवं ‘एकात्मता मन्त्र’ को भी उन्होंने प्रचलित कराया। 1990 में उन्हें सह सरकार्यवाह की जिम्मेदारी दी गयी। प्रज्ञा-प्रवाह देश का बुद्धिजीवी वर्ग, जो कम्युनिस्ट आन्दोलन की विफलता के कारण वैचारिक संभ्रम में डूब रहा था, उसकी सोच एवं प्रतिभा को राष्ट्रवाद के प्रवाह की ओर मोड़ने हेतु ‘प्रज्ञा-प्रवाह’ नामक वैचारिक संगठन की नींव में श्री सुदर्शन जी ही थे। चौथे सरसंघचालक श्री रज्जू भैया को जब लगा कि स्वास्थ्य खराबी के कारण वे अधिक सक्रिय नहीं रह सकते, तो उन्होंने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से परामर्श कर 10 मार्च, 2000 को अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में श्री सुदर्शन को यह जिम्मेदारी सौंप दी। नौ वर्ष बाद श्री सुदर्शन ने भी इसी परम्परा को निभाते हुए 21 मार्च, 2009 को सरकार्यवाह श्री मोहन भागवत को छठे सरसंघचालक का कार्यभार सौंप दिया। प्रभु इच्छा रायपुर में ही जन्मे के एस सुदर्शन का 81 वर्ष की आयु में 15 सितम्बर 2012 को रायपुर में ही दिल का हृदयाघात से देवलोकगमन निधन हुआ। उनकी जयंती पर सादर श्रद्धांजलि! ( पत्रकार व लेखक) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 19 जून /2025