वॉशिंगटन (ईएमएस)। इंसानों द्वारा खाने के लिए मारी जाने वाली रेनबो ट्राउट जैसी मछलियां औसतन 2 से 20 मिनट तक मध्यम से तीव्र दर्द सहती हैं। यह चौंकाने वाला खुलासा एक वैज्ञानिक अध्ययन में। यह निष्कर्ष मछलियों को मारने की आम विधि एयर एस्फ़ीक्सिएशन की जांच में निकलकर आया है। इस क्रूर प्रक्रिया में मछलियों को पानी से निकालकर हवा में छोड़ दिया जाता है, जहां वे धीरे-धीरे ऑक्सीजन की कमी से तड़प-तड़पकर मरती हैं। अध्ययन में पाया गया है कि हवा में सिर्फ 60 सेकंड रहने के भीतर ही मछलियों के शरीर में गंभीर तनाव प्रतिक्रिया शुरू हो जाती है, जो अन्य किसी भी प्रकार के तनाव – जैसे कि भीड़, पकड़ने या ऑक्सीजन की हल्की कमी से कहीं ज्यादा हानिकारक होती है। एक मिनट के अंदर ही उनके शरीर में हाइड्रोमिनरल असंतुलन यानी पानी और खनिजों का संतुलन बिगड़ने लगता है, जिससे उनकी पीड़ा और बढ़ जाती है। कुछ जगहों पर मछलियों को मारने के लिए उन्हें बर्फ के ठंडे पानी में डाला जाता है, लेकिन यह तरीका भी अत्यधिक पीड़ादायक है। बर्फ के पानी में चयापचय प्रक्रिया धीमी होने के कारण मछलियां देर से बेहोश होती हैं और उन्हें और अधिक समय तक दर्द सहना पड़ता है। हालांकि अध्ययन में यह भी बताया गया है कि अगर विद्युत अचेतन विधि (इलेक्ट्रिक स्टनिंग) को सही तरीके से अपनाया जाए, तो मछलियों के दर्द को काफी हद तक कम किया जा सकता है। यह न सिर्फ मानवीय तरीका है बल्कि खर्च किए गए हर डॉलर पर 1 से 20 घंटे तक की पीड़ा को रोका जा सकता है। शोध के सह-लेखक व्लादिमीर अलोंसो ने बताया कि यह अध्ययन वेलफेयर फुटप्रिंट फ्रेमवर्क नामक वैज्ञानिक पद्धति से किया गया, जो पशु कल्याण को मापने का पारदर्शी और वैज्ञानिक तरीका है। यह शोध दुनियाभर में हर साल मारी जाने वाली खरबों मछलियों की पीड़ा को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे नीतियां बनाने वाले संस्थानों को मछलियों के प्रति अधिक मानवीय और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा मिल सकती है। सुदामा/ईएमएस 19 जून 2025