राष्ट्रीय
22-Jun-2025


नई दिल्ली(ईएमएस)। इजरायल-ईरान के बीच हो रहे युद्ध के असर पूरी दुनिया में होगा। ऐसे में भारत भी अछूता नहीं रहेगा। खासकर ऑयल इंपोर्ट और ईरान समेत अन्यत सेंट्रल एशियाई देशों को किया जाने वाला एक्सापोर्ट प्रभावित हो सकता है। रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होर्मुज स्ट्रेट या होर्मुज जलडमरूमध्यल के पास स्थित बंदर अब्बाकस पोर्ट भारत के लिए काफी अहम है। तेल आयात के साथ ही भारत यहां से ईरान, सेंट्रल एशिया और रूस को काफी सारी चीजों का निर्यात भी करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इजरायल और ईरान के बीच जारी जंग यदि लंबे समय तक चलती है तो इसका असर बंदर पोर्ट पर पड़ना स्वाभाविक है। ऐसे में भारत के ट्रेड पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। इजरायल-ईरान संघर्ष के कारण एयर फ्रेट दरों में 15 प्रतिशत तक की वृद्धि हो चुकी है और समुद्री माल भाड़ा भी तेज़ी से बढ़ रहा है। प्रति 20 फीट कंटेनर पर फ्रेट में 500-600 डॉलर तक का इजाफा हुआ है, जबकि यूरोप और भूमध्यसागरीय बंदरगाहों के लिए ओशन फ्रेट में प्रति टीईयू $1,000 तक की वृद्धि देखी गई है। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस के एक अधिकारी ने बताया कि वे जल्द ही चाबहार बंदरगाह अथॉरिटी से मुलाकात करेंगे, ताकि वहां की सुविधाओं का मूल्यांकन किया जा सके। उन्होंने बताया कि अंतिम निर्णय शिपिंग कंपनियों को लेना होगा, लेकिन डीजी शिपिंग इस पर विचार कर रहा है। ईरान-इजरायल संघर्ष के बीच भारतीय निर्यातकों ने अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस जैसे प्रमुख बाजारों में व्यापार पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंता जताई है। इसके चलते उन्होंने भारत सरकार से बंदर अब्बास बंदरगाह के स्थान पर ईरान स्थित चाबहार बंदरगाह का विकल्प तलाशने का आग्रह किया है। कॉमर्स सेक्रेटरी सुनील बर्थवाल की अध्यचक्षता में इसको लेकर हाई-लेवल मीटिंग हुई है। इसमें विभिन्न मंत्रालयों, शिपिंग कंपनियों, कार्गो एजेंटों और हवाई अड्डा प्राधिकरणों के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। बैठक में व्यापारिक संगठनों ने बताया कि अगर बंदर अब्बास बंदरगाह बंद होता है, तो न केवल ईरान बल्कि अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए भी निर्यात प्रभावित होगा। अगर स्थिति और बिगड़ती है और फारस की खाड़ी में जहाजों की आवाजाही प्रभावित होती है, तो फुजैरा (यूएई) और ओमान के बंदरगाहों को विकल्प के रूप में देखा जाना चाहिए। वर्तमान में बंदर अब्बास बंदरगाह चालू है और अफगानिस्तान व सीआईएस देशों (जैसे रूस, कजाखस्तान) के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है, लेकिन सोमवार के बाद यदि हालात और बिगड़े, तो यह मार्ग बाधित हो सकता है। निर्यातक समुदाय ने सुझाव दिया कि चाबहार बंदरगाह को उज्बेकिस्तान से जोड़ने की कनेक्टिविटी को भी सुदृढ़ किया जाए, जिससे अगर बंदर अब्बास प्रभावित होता है तो वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध हो। हालांकि, रेड सी मार्ग अभी भी खुला है और वर्तमान में 90 प्रतिशत भारतीय कार्गो केप ऑफ गुड होप होते हुए भेजा जा रहा है, फिर भी फारस की खाड़ी के होर्मुज स्ट्रेरट पर संकट गहराने की आशंका जताई जा रही है। यह 21 मील (तकरीबन 34 किलोमीटर) चौड़ा जलमार्ग वैश्विक तेल व्यापार का लगभग पांचवां हिस्सा संभालता है और भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो अपनी 80 प्रतिशत से अधिक ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है। सूत्रों के अनुसार, संघर्ष के चलते ईरान को बासमती चावल का निर्यात लगभग रुक गया है और मध्य पूर्व में भी माल भेजने की लागत काफी बढ़ गई है। कई विदेशी खरीदारों ने अपने ऑर्डर होल्ड पर रख दिए हैं और भारतीय निर्यातकों ने भी माल भेजना फिलहाल स्थगित कर दिया है, ताकि बंदरगाहों पर फंसे माल के चलते डेमरेज चार्ज न भुगतने पड़ें। वीरेंद्र/ईएमएस/22जून2025