सांसदों के प्रतिनिधि मंडल और ऑपरेशन सिंदूर सवालों के घेरे में 57 इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) की हालिया बैठक में भारत के खिलाफ सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव पारित किया गया है। जिसमें भारत की विदेश नीति और ऑपरेशन सिंदूर के निर्णयों को कठघरे में खड़ा किया गया हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर के विदेशी दौरे और विदेश नीति के साथ-साथ, 51 सांसदों का प्रतिनिधिमंडल ऑपरेशन सिंदूर के बाद विभिन्न देशों में गया था। बहुचर्चित ऑपरेशन सिंदूर की साख पर भी ओआईसी के प्रस्ताव से तगडा झटका लगा है। 51 सांसदों को विदेशों में भारत का पक्ष रखने भेजा था। पाकिस्तान के दुष्प्रचार की असलियत बताने और भारत का पक्ष रखकर कूटनीतिक समर्थन जुटाने सरकार ने सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडलों का विभिन्न देशों में भेजा था। इन सारे प्रयासों की हकीकत यह है, जिन देशों में यह डेलिगेशन गये थे, उन्हीं देशों ने भारत के खिलाफ पारित प्रस्ताव पर दस्तखत किए हैं। कुवैत, सऊदी अरब, यूएई, बहरीन, मलेशिया, कतर, इंडोनेशिया, मिस्र, अल्जीरिया, गुयाना और सिएरा लियोन सहित 11 देशों ने भारत का पक्ष नहीं लिया उल्टे विरोध किया है। ओआईसी संगठन ने कश्मीर और सिंधु जल संधि जैसे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाले प्रस्ताव पर पाकिस्तान के पक्ष में समर्थन दिया है। जो भारत सरकार की विफल विदेश नीति को दर्शाता है। यह केवल कूटनीतिक विफलता नहीं, बल्कि भारत के लिये एक शर्मनाक स्थिति है। करोड़ों करदाताओं के टैक्स में जमा सरकारी धन के खर्चे पर सांसदों के प्रतिनिधि मंडलों को विदेशों मे भेजा गया था। जिन देशों में यह प्रतिनिधिमंडल गए थे। वहां पर इसका कोई व्यावहारिक प्रभाव नहीं पड़ा। सरकारी मंच और मीडिया के माध्यम से जनता के बीच जरुर यह भ्रम फैलाया गया। भारत सरकार की यह कोशिशें बड़ी सफल रहीं है। सांसदों के प्रतिनिधि मंडल ने सभी देशों में जाकर भारत का पक्ष अच्छी तरह से रखा है। यह प्रचारित किया गया, सांसदों के प्रतिनिधिमंडल की यात्राओं ने भारत का डंका दुनिया के कई देशों में बजाया है। भारत के सामने पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है। भारत को हर देश से समर्थन मिला है। ओआईसी के पारित प्रस्तावों ने यह सिद्ध कर दिया है। भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर अकेला पड़ गया है। भारत सरकार की तमाम कोशिशें एवं प्रचार-प्रसार मीडिया तक सीमित हैं। जमीनी स्तर पर उसका प्रभाव देखने को नहीं मिला। प्रधानमंत्री मोदी की 150 विदेश यात्राएँ, जयशंकर की विदेश मंत्री के रूप में सक्रियता भारत की कूटनीति और सांसदों के “डिप्लोमेसी टूर” मैं जो बताया गया था, ठीक उसके विपरीत वर्तमान स्थिति है। भारत की इस फजीहत का क्या कारण है। वर्तमान स्थिति में देश के नागरिकों के मन में तीव्र जिज्ञासा है, जनता जानना चाहती हैं। क्या विदेश यात्राएँ राष्ट्रीय हित के लिए थीं। क्या इस तरह की विदेश यात्राएं राजनीतिक और व्यक्तिगत फायदे के लिये होती हैं। देश को वर्तमान स्थिति को देखते हुए सरकार की आत्ममंथन करने की आवश्यकता है। किसी भी राष्ट्र के साथ अपने संबंधों को बनाना, कूटनीति के साथ रिश्तों को राष्ट्रीय हित में बेहतर स्थिति में ले जाना, यह वास्तविक कार्य प्रणाली से ही संभव है। इवेंट मैनेजमेंट के जरिए रिश्तों का कोई फायदा नहीं होता है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट हो गया है। भारत को “विश्व गुरु” के मुखौटे से बाहर निकलना होगा। हम 140 करोड़ की आबादी वाले देश हैं। इससे भी हमें बाहर निकालने की जरूरत है। रिश्ते दो पक्षों के बीच में बनते हैं। दोनों पक्ष एक दूसरे की आवश्यकता जरूरत और संबंधों के आधार पर रिश्ते प्रगाण होते हैं। नए वैश्विक समीकरणों को देखते हुए भारत को राष्ट्रीय हितों, कारोबार की नीतियों तथा संबंधों की स्पष्टता को ध्यान में रखते हुए विदेश नीति बनानी होगी। तभी दुनिया भारत के ऊपर विश्वास करेगी। घरेलू राजनीति एवं वैश्विक राजनीति के अलग आधार होते हैं। घरेलू राजनीति को ध्यान में रखते हुए वैश्विक इवेंट कुछ समय के लिये घरेलू राजनीति में सत्ता पक्ष के लिये फायदेमंद हो सकते हैं। राजनैतिक हल्कों में कहा जा रहा है कि संसद का विशेष सत्र ना बुलाना पड़े इसके लिये 51 सांसदों को डेलीगेशन के रुप में विदेश भेजा गया था। इसमें सभी दलों के सांसद थे। जब भी संसद में चर्चा होगी यही सांसद सदन में सरकार के समर्थन में खड़े होंगे। पिछले 2 सप्ताह में पाकिस्तान को अमेरिका वैश्विक संस्थाओं से वित्तीय सहायता तथा ओआईसी के 57 देशों का समर्थन मिला है। वह भारत की चिंता को बढ़ाने वाला है। एसजे/ 25 जून /2025