अंतर्राष्ट्रीय
26-Jun-2025


वॉशिंगटन(ईएमएस)। वैसे डोनाल्ड ट्रंप को भारत का समर्थक माना जाता है। लेकिन इस बार वो जिस नीति पर चल रहे हैं वो भारत से सोच से अलग है। राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने कई ऐसे फैसले लिए हैं, जो भारत को पसंद नहीं आए। बात चाहे हाई टैरिफ की हो या फिर भारत के खिलाफ आक्रामक बयानबाजी की, उनका रुख भारत विरोधी लगने लगा। हद तो तब हो गई, जब उन्‍होंने पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर को अपने बगल में बिठाकर लंच कराया, और अब तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तय्यप एर्दोगन की मेहनमाननवाजी करते नजर आए। आखिर डोनाल्ड ट्रंप भारत के दुश्मनों से क्यों मिल रहे? ट्रंप का तुर्की को भाव देना कोई संयोग नहीं, बल्‍क‍ि सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। ट्रंप एक बार फिर तुर्की को स्‍ट्रेटजिक पार्टनर के रूप में देख रहे हैं। यह मुलाकात ऐसे वक्‍त हुई जब रूस-यूक्रेन युद्ध, ईरान-इसराइल टकराव और नाटो की एकजुटता पर सवाल खड़े हैं। ट्रंप तुर्की के जरिए मिडिल ईस्‍ट में अमेरिकी प्रभाव बनाए रखना चाहते हैं, और वह भी बिना सीधे सैन्य हस्तक्षेप के। साथ ही, एर्दोआन रूस और नाटो दोनों से संतुलन बना रहे हैं। यह ट्रंप की स्टाइल से मेल खाता है। व्यक्तिगत स्तर पर भी दोनों नेताओं के बीच मजबूत केमिस्ट्री है, जिसे ट्रंप फिर से भुनाना चाह रहे हैं। तुर्की के राष्ट्रपति भवन की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, एर्दोगन ने ट्रंप के साथ मीटिंग में वादा किया कि रूस-यूक्रेन जंग में अगर उन्‍हें कुछ मदद करने का मौका मिला तो वे कोशिश जरूर करेंगे। इस मामले पर तुर्की और अमेरिका मिलकर काम कर सकते हैं। तुर्की के राष्ट्रपति ने गाजा में मानवीय त्रासदी को तुरंत खत्‍म करने के लिए भी मिलकर काम करने का वादा किया । एर्दोगन चाहते हैं कि अमेरिका के साथ डिफेंस डील हो और ट्रेड को बढ़ावा मिले।सबसे बड़ी बात, तुर्की का रूस और यूक्रेन से घनिष्ठ रिश्ता है। गैस, तेल और डिफेंस सेक्‍टर में वह दोनों देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है। काला सागर में तुर्की के सुरक्षा हित सीधे रूस से जुड़े हुए हैं। इसलिए वह एक मध्‍यस्‍थ के रूप में दिखना चाहता है। यही वजह है कि वह नाटो सदस्य होते हुए भी, रूस पर पूरी तरह निर्भरता नहीं छोड़ना चाहता। यही संतुलन उसकी दिलचस्पी की असली वजह है। वीरेंद्र/ईएमएस/26जून2025