राष्ट्रीय
30-Jun-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। चरक संहिता में कहा गया है कि भोजन केवल ऊर्जा का स्रोत नहीं, बल्कि जीवन की गुणवत्ता का आधार है। आदर्श आहार न केवल संतोष और पोषण प्रदान करता है, बल्कि शारीरिक बल और मानसिक क्षमता यानी मेधा को भी बढ़ाता है। आयुर्वेद, भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली, शरीर और मन को स्वस्थ रखने के लिए संतुलित जीवनशैली और आहार को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानती है। इसमें भोजन के साथ जुड़ी कई आदतों और संयम का वर्णन मिलता है, जो सीधे हमारे स्वास्थ्य से जुड़े हैं। चरक संहिता के अनुसार कुछ खाद्य संयोजन ऐसे हैं जिन्हें एक साथ नहीं लेना चाहिए, जैसे दूध और मछली। इसका कारण यह है कि दूध स्वभाव से ठंडा होता है और मछली गर्म होती है। ऐसे विपरीत गुणों वाले खाद्य पदार्थों का एक साथ सेवन करने से शरीर में असंतुलन पैदा हो सकता है। इसके अलावा भोजन को चबा-चबाकर धीरे-धीरे खाने की सलाह दी गई है, जिससे पाचन सही रहता है। बार-बार गर्म किया गया भोजन पोषक तत्वों को नष्ट करता है और यह शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकता है। सुश्रुत संहिता में जीवनशैली से जुड़ी गलत आदतों के दुष्परिणाम बताए गए हैं। अधिक भोजन करना, दिन में सोना, देर रात तक जागना और खाने के तुरंत बाद सो जाना – ये सभी पाचन तंत्र को प्रभावित करते हैं और कफ बढ़ाकर मोटापा, एलर्जी और थकान जैसे लक्षण उत्पन्न करते हैं। विशेषकर देर रात तक जागने से नींद की कमी, तनाव और मानसिक कमजोरी हो सकती है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण में मानसिक और भावनात्मक संतुलन भी उतना ही आवश्यक है। क्रोध, ईर्ष्या और चिंता जैसी नकारात्मक भावनाएं शरीर के भीतर विष के समान प्रभाव डालती हैं और वात-पित्त-कफ के असंतुलन का कारण बनती हैं। साथ ही, शरीर के 13 प्राकृतिक वेग – जैसे मल, मूत्र, छींक, जम्हाई और आंसू – को जबरदस्ती रोकना आयुर्वेद में निषिद्ध माना गया है। इन्हें रोकने से शरीर में सिरदर्द, त्वचा विकार, हृदय रोग जैसे गंभीर परिणाम हो सकते हैं। सुदामा/ईएमएस 30 जून 2025