-मोहर्रम की 12 तारीख को 8 तालों में हिफाजत के साथ रखा जाता है 350 साल पुराना यह ताजिया वाराणसी,(ईएमएस)। वाराणसी में एक ताजिया साढ़े तीन सौ साल से रखा हुआ है जिसे देखने मोहर्रम में दूर-दराज से लोग यहां पहुंचते हैं। जी हॉं यह मोटे शाबान का ताजिया ही जो वाराणसी के दोषीपुरा स्थित बारादरी मस्जिद में 6 मोहर्रम को सदियों पुरानी परंपरा के तहत आठ तालों की सील तोड़कर बाहर निकाला गया। बताया जाता है कि साल 1981 से यह ताजिया हर साल पुलिस प्रशासन की निगरानी में मस्जिद के 10 बाई 10 फुट के हुजरे से बाहर लाया जाता है और 12 मोहर्रम को पुनः सील बंद कर दिया जाता है। इस वर्ष भी यह ताजिया पुलिस की कड़ी निगरानी में बाहर निकाला गया। जैतपुरा थाने के एसओ बृजेश मिश्रा, मुतवल्ली गुलजार अली और स्थानीय लोगों की मौजूदगी में हुजरे की 8 तालों वाली सील खोली गई, जिन पर पुलिस और मुतवल्ली की मुहरें लगी थीं। इस ताजिये को 42 अलग-अलग हिस्सों में रखा जाता है, जिन्हें बाहर लाकर एक-एक कर साफ किया जाता है और फिर सजाकर बारादरी में रखा जाता है। ताजिये की खासीयत मीडिया को बताते हुए मुतवल्ली गुलजार कहते हैं कि यह ताजिया साखू, सागवान और शीशम की लकड़ियों से बना है और उस पर ईरानी नक्काशी तथा सोने-चांदी के पत्तर का बारीक काम किया गया है। इसकी बनावट और कलाकारी इसे एक अद्वितीय विरासत का दर्जा देती है। उन्होंने बताया कि यह ताजिया उनके पूर्वजों के समय से मशहूर है। इसका नाम मोटे शाबान के ताजिये के रूप में प्रसिद्ध है। मोटे शाबान, जिनका निधन 1857 में हुआ था, काशी नरेश के खास लोगों में शुमार किए जाते थे। उन्हीं के समय से यह ताजिया 6 मोहर्रम को मस्जिद से निकलकर बारादरी में रखा जाता है। परंपरानुसार करबला ले जाया जाता है ताजिया परंपरानुसार 10 मोहर्रम को 60 लोग इस ताजिये को सदर इमामबाड़ा, लाट सरैया तक ले जाते हैं, जहां धार्मिक रस्में अदा की जाती हैं। इसके बाद वापस लाया जाता है और फिर 12 मोहर्रम को इसे पुनः मस्जिद लाया जाता है और उसी हुजरे में रखकर 8 तालों की सील में हिफाजत के साथ रख दिया जाता है। संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक बताया जाता है कि मोटे शाबान का ताजिया सिर्फ एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि ईरानी और मुगल स्थापत्य कला का जीता-जागता नमूना है, जो सदियों से बनारस की सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है। हर साल इसे देखने और इसकी झलक पाने के लिए सैकड़ों लोग जमा होते हैं, यह आयोजन आस्था, इतिहास और शिल्पकला का अनोखा संगम बना हुआ है। हिदायत/ईएमएस 02जुलाई25