व्यापार
03-Jul-2025
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अमेरिकी जानकार बोले- ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी से बनी यह स्थिति, बढ़ेगी महंगाई वॉशिंगटन,(ईएमएस)। इस साल अमेरिकी डॉलर में गिरावट आई। 1973 के बाद से अब तक ऐसा पहली बार है, जब एक साल के अंदर ही डॉलर में भारी गिरावट दर्ज देखी गई। भारतीय रुपए के मुकाबले एक डॉलर की कीमत 85 रुपए है। 20 जून को ही रुपए की कीमत डॉलर के मुकाबले 86.60 थी। कई करेंसीज के मुकाबले इस साल की शुरुआत से अब तक डॉलर पहले की तुलना में 10 फीसदी तक कमजोर हुआ है। हालात यह है कि अमेरिकी करेंसी में निवेश करने वाले लोग निकल जाना चाहते हैं। ऐसा इसलिए ताकि महंगाई के संकट में यदि बाजार में गिरता है तो नुकसान से बच सकें। अमेरिकी बाजार जानकारों का कहना है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी के चलते यह स्थिति बनी है। चीन, भारत, ब्राजील जैसे देशों से अमेरिका को होने वाले निर्यात की कीमत में इजाफा हुआ है और डॉलर कमजोर हुआ है। अब तक डॉलर को सबसे सुरक्षित करेंसी माना जाता रहा है। लेकिन इसमें भरोसे में कमी आई है। इंपोर्ट पर टैरिफ बढ़ गया है, जिसके चलते भारत और चीन जैसे देशों से अमेरिका पहुंचने वाला सामान महंगा हो गया है। इससे अमेरिका में महंगाई बढ़ गई और डॉलर भी कमजोर हो गया है। इस स्थिति से दूसरे देशों को परेशानी पहुंचाने वानर नहीं है, जितनी अमेरिका के लोगों को है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में महंगाई बढ़ने का डर है। ऐसा होगा तो ग्रोथ में भी कमी आएगी। लोग कम निवेश करेंगे और ज्यादा से ज्यादा पैसा लोग अपने पास रखना चाहेंगे। एक समस्या यह है कि अमेरिकी बाजार की स्थिरता को लेकर भी निवेशकों में भरोसा कम हुआ है। एक जानकार का कहना है कि अमेरिकी अथॉरिटीज ने जिस तरह से टैरिफ में इजाफा किया है, उससे बड़ा नुकसान हुआ है। अमेरिकी बाजार में ही अस्थिरता आई है और निवेशकों का भरोसा कमजोर हुआ है। इसके अलावा अमेरिकी बाजार में भी उत्पाद महंगे हुए हैं। महंगाई के चलते डॉलर कमजोर हुआ है। जानकारी के मुताबिक ट्रंप के टैरिफ वॉर और फेडरल रिजर्व की स्वतंत्रता पर हमलों ने डॉलर की सुरक्षित हेवन छवि को क्षति पहुंचाई है। विदेशी निवेशकों ने अमेरिकी परिसंपत्तियों की बिकवाली तेज कर दी, जिससे डॉलर इंडेक्स में पहले छह महीनों में 10.8 फीसदी की गिरावट आई। बिग ब्यूटीफुल बिल एक्ट के तहत टैक्स कट का विस्तार, स्वास्थ्य और कल्याणकारी योजनाओं में कटौती, और कर्ज में 3.3 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि से राजकोषीय घाटा बढ़ने की आशंका। अमेरिकी कर्ज की जीडीपी अनुपात 124 फीसदी से बढ़कर 2034 तक 134-156 फीसदी हो सकता है। फेड द्वारा 2025 के अंत तक दो से तीन बार ब्याज दरें कम करने की संभावना से डॉलर का आकर्षण कम हुआ है। प्रशासन का दबाव है कि अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने के लिए दरें तेजी से घटाई जाएं। सिराज/ईएमएस 03जुलाई25