लेख
05-Jul-2025
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अनिल अंबानी द्वारा 49,000 करोड़ रुपये का बैंक कर्ज हड़पना भारतीय बैंकिंग इतिहास की उन घटनाओं में शामिल हो गया है, जो यह साबित करती है, कि किस तरह देश का बैंकिंग सिस्टम कुछ खास कॉरपोरेट घरानों के लिए लूट की खुली छूट बन गया है। अनिल अंबानी की कंपनियों ने 53 बैंकों से भारी-भरकम कर्ज लेने के बाद, अंबानी ने अपने आप को दिवालिया कानून के अंतर्गत दिवालिया घोषित कर दिया है। दिवालिया कानून की आड़ में खुद को निर्दोष साबित कर दिया। अब अनिल अंबानी सरकार की सरपरस्ती में नई कंपनियों के जरिए फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन जैसी विदेशी कंपनियों के साथ हवाई जहाज बनाकर उड़ा रहे हैं। क्या इसे बैंकों की लूट और न्याय व्यवस्था की सुनियोजित हत्या नहीं मानी जानी चाहिए? एनसीएलटी में जब रिलायंस कम्युनिकेशन का मामला पहुंचा तो दावा किया गया, कि कंपनी के ऊपर 47,000 करोड़ का बकाया है। सेटलमेंट के नाम पर दिवालिया कानून के तहत बैंकों को मात्र 455 करोड़ रुपए की राशि मिली। जो कुल कर्ज का सिर्फ 0.92 फीसदी है। बाकी पैसा डूबत खाते में लिखकर बैंक की बैलेंस शीट को पाक-साफ कर दिया गया। यह रकम किसी उद्योगपति की जेब से नहीं आई थी। सरकारी खजाने से भी यह राशि नहीं आई। बैंकों ने शुल्क बढ़ाकर ग्राहकों से वसूल किया। बैंक की ब्याज दरें घट गईं, तरह-तरह से शुल्क वसूल किए जाने लगे। देश की आम जनता की मेहनत की कमाई जो बैंकों में जमा थी उस पर आम जनता को भारी टैक्स देना पड़ रहा है। विडंबना देखिए, अंबानी ने एनसीएलटी में राहत पाने के लिए आईबीसी की धारा 32 ए का सहारा लिया। इस नियम के अंतर्गत दिवालिया प्रक्रिया को मंजूरी मिल जाती है, तो पुरानी जिम्मेदारियों से कंपनी और उनके डायरेक्टर कर्ज से मुक्त माने जाते हैं। कारपोरेट जगत को फायदा पहुंचाने के लिए यही कानूनी जाल है। करोड़ों-हज़ारों का घोटाला कानून के मुताबिक जायज़ बन जाता है। यह सुविधा आम आदमी के लिए नहीं है। सवाल यह है, क्या कोई आम आदमी 50 लाख का लोन न चुका पाए तो उसे भी ऐसी छूट मिलेगी? नहीं। उसके घर पर ताला जड़ दिया जाएगा। बैंक नोटिस चस्पा कर संपत्ति पर कब्जा कर लेगी। जब कोई उद्योगपति हजारों करोड़ डुबो देता है, तो उसे नई शुरुआत करने सरकार और बैंकों से फिर से सहायता मिल जाती है। उनकी निजी संपत्ति और मकान इत्यादि सुरक्षित रहते हैं। सरकार मूकदर्शक बनकर तमाशा देखती रहती है। यह मामला सिर्फ अंबानी का नहीं है, यह कारपोरेट जगत के सिस्टम का आईना है। जहां भ्रष्टाचार को ही नीति बना दिया गया है। कारपेट जगत के लोग सरकार और बैंकों के अधिकारी मिलकर इस लूट में शामिल होते हैं। अब भी जवाबदेही तय नहीं हुई, तो भविष्य में और भी बड़े कॉरपोरेट दिवालिया होकर अमीर बनने के नए-नए इतिहास गढ़ेंगे। आम जनता हर महीने बैंक की लाइन में खड़ी होकर तरह-तरह के शुल्क देकर लूट की भरपाई करती रहेगी। वर्तमान स्थिति को देखते हुए यही कहा जा सकता है, भारत में अब दो तरीके के कानून प्रचलित हैं एक कानून कॉरपोरेट जगत और समर्थ लोगों के लिए और दूसरा कानून आम जनता और गरीब लोगों के लिए है। न्यायपालिका में भी अब यही स्थिति देखने को मिलती है। न्यू इंडिया का यह नया आर्थिक मॉडल है, जहां कारपोरेट जगत की लूट को कानून का कवच मिला हुआ है। इस कवच के सहारे वह बैंकों को दिनदहाड़े लूट रहे हैं। लूट कर विदेशों में भाग जा रहे हैं। यहां रहते हुए भी उन्हें सरकार और बैंक की सहायता मिल रही है। आम आदमी को जरूर हर तरह से लूटा जा रहा है। आम लोगो को अपने अधिकार और अपने मौलिक अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए स्वयं आगे आना पड़ेगा अन्यथा यह क्रॉनि पूंजीवाद लोगों को गुलामी की दशा में ले जाएगा। ईएमएस / 05 जुलाई 25