छत्तीसगढ़ की राजनीति में बीते कुछ वर्षों में जितना बदलाव दिखा है, उतनी ही तेजी से संवाद के माध्यम भी बदले हैं। कभी विधानसभा की बहसों और प्रेस कांफ्रेंसों तक सीमित रहने वाली नेताओं की ज़ुबानी जंग अब सीधे जनता के मोबाइल फोन की स्क्रीन पर, ट्विटर (अब X) जैसे मंचों पर लड़ी जा रही है। ताज़ा मामला भी कुछ ऐसा ही है, जहाँ एक खराब सड़क से शुरू हुआ सवाल, सत्ता और विपक्ष के बीच तीखे शब्दों की लड़ाई में तब्दील हो गया। इस बार मैदान है – सोशल मीडिया। इस पूरे विवाद की शुरुआत एक साधारण सोशल मीडिया पोस्ट से हुई, जिसमें छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री एवं गृह मंत्री विजय शर्मा ने अवैध घुसपैठियों की जानकारी देने के लिए टोलफ्री नंबर जारी करने की अपील की। यह एक नियमित प्रशासनिक घोषणा थी, लेकिन जनता की तकलीफें अक्सर वहां से बोल पड़ती हैं, जहाँ से सरकार जवाब देने की उम्मीद नहीं करती। विजय शर्मा की पोस्ट पर एक व्यक्ति ने तंज़ कसते हुए पूछा – यदि सड़क खराब हो, बदहाल हो, तो उसकी जानकारी कहाँ दी जाए, मंत्री महोदय? इस प्रश्न ने न केवल जमीनी हकीकत को उजागर किया, बल्कि एक राजनीतिक ज्वालामुखी का मुंह भी खोल दिया। उपमुख्यमंत्री ने जवाब में जो किया, वही विवाद की जड़ बन गया। उन्होंने जवाब में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का मोबाइल नंबर शेयर करते हुए लिखा – इस नंबर पर दीजिए, क्योंकि यह उन्हीं की देन है। राजनीतिक कटाक्ष की कला में माहिर माने जाने वाले भूपेश बघेल ने इस टिप्पणी को हल्के में नहीं लिया। उन्होंने उसी पोस्ट पर तीखा पलटवार करते हुए लिखा – कुर्सी है तुम्हारा, ये जनाज़ा तो नहीं है। कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते, कमाल है विजय शर्मा जी! यह टिप्पणी न केवल काव्यात्मक कटाक्ष थी, बल्कि सत्ता पक्ष की अक्षमता पर करारा तंज भी। बघेल ने आगे और तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि आप (विजय शर्मा) सड़कों की दुर्गति नहीं सुधार सकते और मेरी मदद चाहिए, तो उप मुख्यमंत्री और गृह मंत्री का पद छोड़ दीजिए। अगर जनता को ही सब संभालना है, तो भाजपा सरकार को भी इस्तीफ़ा दे देना चाहिए। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा प्रश्न यह है – क्या सत्ता पक्ष अपने कर्तव्यों से पलायन कर रहा है? जनता का सवाल सीधा था – सड़क खराब है, उसकी शिकायत कहाँ करें। उप मुख्यमंत्री ने सीधा जवाब देने की बजाय, पूर्ववर्ती सरकार को दोषी ठहराते हुए नंबर शेयर कर दिया। यह राजनीतिक शैली कोई नई नहीं है – नई सरकार अक्सर पुरानी सरकार की नाकामियों को उजागर कर अपनी कमज़ोरियों पर पर्दा डालती है। लेकिन जब सवाल जनता के बुनियादी हक़ से जुड़ा हो – जैसे कि सड़क, पानी, बिजली, राशन, तो इस तरह की जवाबदेही से बचने वाली रणनीति भारी पड़ सकती है। इस विवाद ने एक और बात साफ़ कर दी – सोशल मीडिया अब नेताओं के लिए केवल प्रचार का माध्यम नहीं रह गया, बल्कि यह अब विरोध का अखाड़ा बन चुका है। विजय शर्मा और भूपेश बघेल के बीच की यह जंग जितनी सड़कों पर नहीं दिखी, उतनी X (ट्विटर) पर दिखाई दी। जनता के लिए यह दृश्य रोचक हो सकता है, लेकिन एक गहरी चिंता भी छिपी है – क्या लोकतंत्र में संवाद की गंभीरता इस हद तक कम हो चुकी है कि अब सत्ताधारी नेता भी तंज़ के सहारे शासन चला रहे हैं? सवाल यह नहीं है कि पोस्ट किसने किया और जवाब किसने दिया। असली सवाल यह है कि आज भी छत्तीसगढ़ के कई ज़िलों में सड़कें बदहाल हैं, बरसात में कीचड़ और गड्ढे हादसे का सबब बनते हैं, ग्रामीण अंचलों में एंबुलेंस पहुँचने में घंटों लगते हैं। भूपेश बघेल जब मुख्यमंत्री थे, तब भी इन समस्याओं पर सवाल उठते थे। विजय शर्मा अब सत्ता में हैं, तो उन्हें जवाब देना होगा। लेकिन अगर हर नया मंत्री पुरानी सरकार को ही दोष देता रहेगा, तो जनता के सवाल हमेशा अनुत्तरित ही रहेंगे। इस प्रकरण में एक और चिंताजनक पक्ष यह है कि राज्य के दो वरिष्ठ नेता – एक पूर्व मुख्यमंत्री और एक मौजूदा उप मुख्यमंत्री – सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे पर न केवल व्यक्तिगत टिप्पणियाँ कर रहे हैं, बल्कि मोबाइल नंबर तक साझा कर रहे हैं। यह न केवल गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि एक असंवेदनशील राजनीतिक मानसिकता को भी दर्शाता है। राजनीति में मतभेद होना स्वाभाविक है, लेकिन मर्यादा का पतन दुर्भाग्यपूर्ण है। विशेषकर तब, जब जनता रोज़मर्रा की समस्याओं से जूझ रही हो। इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि वर्तमान सरकार विपक्ष की भूमिका से बाहर नहीं निकल पा रही है। उन्हें अब यह समझना होगा कि वे सत्ता में हैं, और समस्याओं का समाधान देना उनकी जिम्मेदारी है, न कि बहाने देना। दूसरी ओर, विपक्ष को भी केवल कटाक्ष करने की बजाय, ठोस विकल्प और नीतिगत सुझाव देने चाहिए। जनता अब केवल बयानबाज़ी से संतुष्ट नहीं होती। कई विश्लेषक मानते हैं कि यह विवाद पूर्णतः अप्रत्याशित नहीं था। भाजपा की सरकार पर विपक्ष लगातार यह आरोप लगाता रहा है कि वह मुद्दों से भटकाने के लिए सोशल मीडिया विवादों का सहारा ले रही है। दूसरी ओर, कांग्रेस इसे एक मौका मानती है खुद को ‘जनता के प्रवक्ता’ के रूप में स्थापित करने का। इस घटनाक्रम ने एक बार फिर छत्तीसगढ़ की राजनीतिक ध्रुवीकरण को स्पष्ट कर दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का यह कहना कि अगर जनता को ही सब देखना है, तो हम देख लेंगे, आप दफ़ा हो जाइए, सत्ता के प्रति गुस्से का प्रतीक है। लेकिन यह बयान भी इस बात को उजागर करता है कि हमारी राजनीति अब भावनाओं पर ज्यादा, और समाधान पर कम केंद्रित हो गई है। सवाल यह है – क्या सड़क बनवाने का हल सोशल मीडिया पर कटाक्ष है? क्या प्रशासनिक जवाबदेही केवल पुराने शासन को दोष देकर निभाई जा सकती है? और क्या जनता की समस्याएँ अब केवल राजनीतिक तकरार का हिस्सा बनकर रह जाएँगी? ईएमएस/ 05 जुलाई 25