जबलपुर, (ईएमएस)। सीमित संसाधन, कम लागत और घरेलू उर्वरक से भी बेहतरीन खेती कर अत्याधिक उत्पादन लिया सकता है इसका जीता जागता उदाहरण सिहोरा ब्लॉक के ग्राम गिदुरहा की महिला किसान श्रीमती कला बाई पति श्री विनोद पटेल हैं। इनकी घरेलू उर्वरक की खेती की सफलता देख आज दूसरे किसान भी प्रेरणा लेकर रासायनिक खेती का त्याग कर प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। कृषि विभाग की मदद से कला बाई अब क्षेत्रीय किसानों के लिए फार्म-गुरु की भूमिका निभा रही हैं और स्थायी खेती को बढ़ावा देने में सक्रिय योगदान दे रही हैं। श्रीमती पटेल ने बताया कि प्राकृतिक खेती हमारे पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ किसानों को कम लागत में अधिक पौष्टिक और गुणवत्तापूर्ण उपज देने का सशक्त माध्यम बन चुकी है। रासायनिक खादों-कीटनाशकों पर निर्भरता घटाते हुए यह पद्धति मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है, जल संरक्षण में सहायक होती है और उपभोक्ताओं को रसायन-मुक्त अन्न उपलब्ध कराती है। गोबर-गौमूत्र आधारित घनजीवामृत, जीवामृत, बीजामृत, नीमास्त्र, वर्मी-कम्पोस्ट, मल्चिंग और मिश्रित फसल प्रणाली जैसी विधियां अपनाकर किसान न सिर्फ उत्पादन-गुणवत्ता सुधार रहे हैं, बल्कि 30-40 प्रतिशत तक उत्पादन-लागत भी घटा रहे हैं। इन जैव-उत्प्रेरकों से फसलों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे महंगे रासायनिक दवाओं-उर्वरकों की आवश्यकता लगभग समाप्त हो जाती है। कला बाई ने बताया कि रासायनिक खाद-दवा पर 8 से 10 हज़ार रूपए प्रति एकड़ का खर्च आता था। घर में तैयार घनजीवामृत-नीमास्त्र से यह खर्च सिर्फ 1,500 से 2,000 हो गया है। साथ ही उपज में भी 10-15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है और आज भी पौष्टिक हो रहा है। काला बाई के प्राकृतिक खेती के परिणामों को देखकर आस-पास के किसानों ने भी प्राकृतिक खेती के तरीकों के बारे में जानकारी लेकर प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। सुनील साहू / मोनिका / 05 जुलाई 2025/ 09.00