-शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने मनसे प्रमुख को दी चेतावनी मुंबई,(ईएमएस)। शिवसेना (यूबीटी) के सांसद और संजय राउत ने अपने साप्ताहिक कॉलम में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे को सीधे तौर पर चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि राज अगर उद्धव ठाकरे के साथ राजनीतिक पुनर्मिलन को बनाए रखना चाहते हैं, तो उन्हें पूरी ईमानदारी से बीजेपी और एकनाथ शिंदे से दूरी बनानी होगी। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक संजय राउत का लेख दरअसल एक ‘वॉर्निंग नोट’ है जो यह याद दिलाता है कि बीजेपी और शिंदे से नजदीकियों का अब तक मनसे को कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिला, बल्कि उनकी पार्टी की स्थिति आज रसातल में है। राउत ने लिखा- उद्धव और राज ठाकरे की राजनीतिक राहें अलग हो गई थीं और वे जैसे दो धार बन चुके थे। अमित शाह के कारण हुई फूट के बाद शिवसेना महाविकास आघाड़ी का हिस्सा बनी, वहीं राज ठाकरे ने बीजेपी और शिंदे गुट से ‘प्रेम की चाय’ पी। उन्होंने दिल्ली जाकर अमित शाह से भी मुलाकात की थी, लेकिन इससे न महाराष्ट्र को कुछ मिला और न ही उनकी पार्टी मनसे की राजनीति आगे बढ़ी। राउत ने आरोप लगाया कि दिल्ली और वहां के ‘व्यापारी-राजनेताओं’ को ठाकरे बंधुओं के बीच फूट से फायदा होता है। उन्होंने दावा किया कि बीजेपी और उसके सहयोगी चुनाव जीतने के लिए मतदाता सूची में लाखों प्रवासियों के नाम जोड़ रहे हैं और इससे मनसे को भी हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने लिखा- महाराष्ट्र के हित में यही है कि मराठी वोट प्रतिशत बढ़े और इसके आधार पर नगर निगम, जिला परिषद और विधानसभा चुनावों में एकजुट चुनौती पेश की जाए तभी मराठी व्यक्ति स्वाभिमान से जी सकेगा अन्यथा सिर्फ ढोल पिटेंगे, नारे लगेंगे और बिगुल बजेगा। यह जोश बना रहना चाहिए! मराठी एकता की जय हो! अभी बस दहाड़ते रहो। वहीं तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने ठाकरे बंधुओं की रैली को समर्थन दिए जाने के बाद राउत ने साफ कहा कि उनकी पार्टी हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं, बल्कि उसकी प्राथमिक शिक्षा में थोपे जाने के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि दक्षिणी राज्य लंबे समय से हिंदी के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। वे हिंदी नहीं बोलते, हमारा रुख अलग है। हमने न तो हिंदी बोलने से मना किया है, न हिंदी फिल्मों या अखबारों पर कोई रोक है। सीएम देवेंद्र फडणवीस द्वारा उद्धव ठाकरे को ‘रुदाली’ कहे जाने पर संजय राउत ने कहा कि फडणवीस हमारी रैली की सफलता से घबरा गए हैं। अब राजनीतिक नजरें इस पर टिकी हैं कि क्या ठाकरे बंधु मराठी वोटों के दम पर एक नई राजनीतिक धारा बना पाएंगे या फिर पुरानी खाई फिर से गहरी हो जाएगी। सिराज/ईएमएस 07जुलाई25