राज्य
15-Jul-2025


गांधीनगर (ईएमएस)| महापुरुषों और साधारण लोगों में बस एक ही अंतर होता है। साधारण लोग पहले से बने रास्ते पर चलते हैं। जबकि महापुरुष अपना रास्ता खुद बनाते हैं और दूसरों को भी उस रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। दुनिया जिस रास्ते पर चल रही है, वह बहुत ही नुकसानदेह है, इसलिए हमें इसे सही रास्ते पर ले जाना होगा। अगर आप कुछ करने की दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ आगे बढ़ेंगे, तो दुनिया आपका सम्मान करेगी। राजभवन में गुजरात प्राकृतिक कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय के नवनियुक्त सहायक प्रोफेसरों और सहायक अनुसंधान वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन करते हुए राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा, नौकरी पाकर हमें खुद को नौकर नहीं समझना चाहिए, नौकरी तो बस कमाई का एक ज़रिया है। बल्कि, आप देश के भविष्य के भाग्य विधाता हैं। जैसे 60 के दशक में डॉ. स्वामीनाथन ने देश में खाद्यान्न की कमी को पूरा करने के लिए हरित क्रांति की शुरुआत की थी, इसी तरह, प्राकृतिक कृषि में क्रांति लाकर, आप देश और दुनिया के लोगों का जीवन बचाने का पुण्य कार्य करेंगे। पशुओं का भी जीवन बचाने के कार्य से बड़ा कोई पुण्य कार्य नहीं है। श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि जैसा अन्न, वैसा मन। हम जैसा खाते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। शुद्ध और सात्विक भोजन से तन और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। प्राकृतिक कृषि से लोगों को स्वास्थ्यवर्धक भोजन मिल सकता है। हरित क्रांति का उल्लेख करते हुए राज्यपाल ने कहा कि उस समय प्रति हेक्टेयर भूमि पर 13 किलोग्राम नाइट्रोजन डालने तथा गोबर की खाद या जैविक उर्वरक डालने की सिफारिश की गई थी। उस समय अच्छी पैदावार होती थी क्योंकि पूरे देश की मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन लगभग 2 से 2.5 प्रतिशत होता था। उस समय किसान यूरिया-डीएपी के साथ खाद भी डालते थे। फिर धीरे-धीरे यूरिया का इस्तेमाल बढ़ता गया। हरियाणा में आलू के खेतों में वर्तमान में प्रति एकड़ 12 से 13 बैग यूरिया-डीएपी डाला जाता है। रासायनिक कीटनाशकों और यूरिया-डीएपी के अंधाधुंध इस्तेमाल ने मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने वाले जीवाणुओं और सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर दिया है। परिणामस्वरूप, मिट्टी का जैविक कार्बन 0.5 से भी कम हो गया है। राज्यपाल ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि शुरुआत में मैं भी गुरुकुल की ज़मीन पर रासायनिक खेती करता था, रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों को देखते हुए, मैंने इसका विकल्प ढूँढने की कोशिश की, जिसके बाद कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के वैज्ञानिक डॉ. हरिओम ने मुझे जैविक खेती करने की सलाह दी। उनकी सलाह पर मैंने जैविक खेती की, लेकिन ज़्यादा लागत और मेहनत के बावजूद उपज बहुत कम मिली। इसके बाद मैंने गौ-आधारित जैविक खेती शुरू की, इस खेती से कम लागत में ज़्यादा उपज मिलती है। इसके अलावा, यह लोगों के स्वास्थ्य, मिट्टी, हवा, पानी और पर्यावरण की रक्षा के लिए काम करता है। राज्यपाल ने उपस्थित वैज्ञानिकों को जैविक खेती और प्राकृतिक खेती के बीच के अंतर की गहन जानकारी दी और गौ-आधारित प्राकृतिक खेती में उपयोगी जीवामृत बनाने की विधि भी बताई। इस अवसर पर गुजरात प्राकृतिक कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति श्री डॉ. सी. के. टिम्बडिया ने नवनियुक्त सहायक प्रोफेसरों एवं वैज्ञानिकों को मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए राज्यपाल के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि राज्यपाल का मार्गदर्शन बहुत महत्वपूर्ण साबित होगा ताकि गुजरात प्राकृतिक कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय की शिक्षा, अनुसंधान और विस्तार कार्य प्राकृतिक कृषि के लिए अधिक सहायक हो सकें। सतीश/15 जुलाई