लेख
16-Jul-2025
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21 जुलाई से संसद का मानसून सत्र शुरू होने जा रहा है इस बार का मानसून सत्र सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए आर पार की लड़ाई जैसा होगा। केंद्र में गठबंधन की सरकार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके पूर्व कभी भी गठबंधन की सरकार नहीं चलाई है। 2002 से लेकर 2024 तक वह हमेशा पूर्ण बहुमत की सरकार के मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री रहे हैं। 2024 के बाद वह गठबंधन के प्रधानमंत्री हैं। 10 वर्षों के बाद विपक्ष संसद में मजबूत हुआ है। पिछले दो-तीन महीने में जिस तरह की घटनाएं भारत में हुई हैं। उससे सरकार की मुसीबतें बढ़ रही हैं। पिछले 10 वर्षों में जिस तरह से केंद्र की सत्ता एका‎धिकार के बल पर संचालित हो रही थी। वैसी ही स्थिति 11वें साल में केन्द्र सरकार रखना चा‎हती है। जिसके कारण भाजपा की मुसीबतें बढ़ने लगी हैं। केंद्र सरकार में भाजपा के सबसे बड़े सहयोगी राजनीतिक दल तेलुगु देशम पार्टी और बिहार में जनता दल है। यदि इन दोनों दलों द्वारा समर्थन वापस ले लिया जाता है, तो सरकार ‎गिर भी सकती है। ऐसी स्थिति में सरकार मध्यावती चुनाव का निर्णय ले सकती है। सदन के अंदर यदि सरकार पराजित होती है, ऐसी स्थिति में इंडिया गठबंधन अन्य राजनीतिक दलों के साथ समझौता करके केंद्र में सरकार बना सकती है। यह बात इसलिए लिखना पड़ रही है, बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन समीक्षा में जिस तरह की प्रक्रिया चुनाव आयोग द्वारा अपनाई जा रही है। उसके कारण चुनाव आयोग की साख पूरी तरह से खत्म होती हुई नजर आ रही है। चुनाव आयोग की यह पहचान भी बन रही है, वह केंद्र सरकार और भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है। चुनाव आयोग मतदाता सूची के लिए जो दस्तावेज मांग रहा है, उसमें आधार कार्ड को मान्य नहीं है। वर्तमान में आधार कार्ड ही भारतीय नागरिकों के पास सबसे प्रमाणिक सरकारी दस्तावेज है। सारे सरकारी कामकाज इसी आधार कार्ड से हो रहे हैं। आधार कार्ड बनाते समय लोगों के आंखों की पुतलियां, फिंगरप्रिंट और उनके परिवार से संबंधित सभी लोगों का आधार कार्ड अ‎निवार्य है। चुनाव आयोग आधार के स्थान पर ऐसे दस्तावेज मांग रहा है, जो फर्जी हो सकते हैं। उनकी प्रमाणिकता कभी भी साबित नहीं हो सकती है। इसको लेकर टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू ने स्पष्ट रूप से आयोग के सामने विरोध जता दिया है। जनता दल में मतदाता सूची को लेकर ‎बिहार में दो फाड़ हो चुका है। इंडिया गठबंधन पहले ही जम्मू कश्मीर के पहलगांव में 28 पर्यटकों की मौत, उसके बाद ऑपरेशन सिंदूर, जब भारतीय सेना जब पाकिस्तान को बड़ा नुकसान पहुंचा रही थी, उस समय सीजफायर करना, ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय विमानों का गिरना, भारतीय सेना द्वारा यह कहना कि मीडिया और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण भारतीय सेना को नुकसान हुआ है। पाकिस्तान द्वारा लड़ाई में चीन के हथियारों का इस्तेमाल करने के साथ-साथ चीन द्वारा सैटेलाइट मैपिंग एवं तकनी‎कि का भारत के खिलाफ पाकिस्तान को लड़ाई में सहयोग दिया है। ऑपरेशन सिंदूर को दुनिया के किसी देश का समर्थन नहीं मिलने, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सहायता का पैकेज मिलने, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता कराने, पाकिस्तान के जनरल मुनीर को अमेरिका बुलाकर व्हाइट हाउस में लंच कराकर सम्मानित करने, चीन के साथ भारत का आयात और निर्यात घाटा बढ़ने, भारत का चीन के साथ सीमा विवाद, मणिपुर में लगातार अशांति, दलाई लामा को लेकर चीन के साथ तनाव के मुद्दे ‎विपक्ष के पास हैं। भारत के उद्योगपति गौतम अडानी, सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अब विदेश मंत्री जयशंकर का चीन जाना सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहा है। इसी तरह से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगातार भारत को टैरिफ की धमकी देते हुए अमेरिका से कारोबार बढ़ाने, अमेरिका से कृषि और डेयरी उत्पाद को भारत में आयात करने, रूस के साथ तेल और सैन्य डील को खत्म करने का दबाव बनाया जा रहा है। इन सभी मामलों में सरकार ने चुप्पी साध रखी है। जिसके कारण इस संसद सत्र में सरकार के लिए बड़ी परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। ‎बिहार की मतदाता सूची को लेकर चुनाव आयोग इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो जजों के खिलाफ महाभियोग को लेकर भी सत्ता पक्ष और विपक्ष में तनातनी बनी हुई है। 21 जुलाई से शुरू होने वाले इस मानसून सत्र में सरकार डिजिटल प्रतिस्पर्धा विधेयक, जीएसटी न्यायाधिकरण विधेयक, सार्वजनिक खरीद विधेयक, दिवालियापन एवं ऋण शोधन संहिता संशोधन विधेयक, खेलों में नैतिक आचरण संशोधन विधेयक, भू वैज्ञानिक विरासत संरक्षण विधेयक, मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाए जाने का विधेयक पास कराना चाहती है। इसके अलावा वक्फ बिल को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ सकता है। बिहार में सघन मतदाता सूची का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। सुप्रीम कोर्ट का सुझाव, चुनाव आयोग मानता है या नहीं, इसको लेकर भी संसद में विपक्ष बहुत आक्रामक भूमिका में होगा। सरकार के सहयोगी दल संसद में कैसा रुख अख्तियार करेंगे, कह पाना मुश्किल है। मानसून सत्र के पहले जिस तरह से सरकार और विपक्ष के बीच में तनाव देखने को मिल रहा है। उससे यह प्रतीत होता है इस बार विपक्ष आर पार की लड़ाई लड़ने के मूड में है। 1975 में आपातकाल के पूर्व जिस तरह से देश भर में छात्र आंदोलन चल रहे थे। उस समय महंगाई-बेरोजगारी मुख्य मुद्दा था। उस समय राजनीतिक दलों ने इंदिरा गांधी के इस्तीफा को राजनीतिक मुद्दा बनाकर आंदोलन को हवा दी थी। इस बार मतदाता अधिकार को लेकर विपक्ष ने मतदाताओं को उद्दे‎लित कर ‎दिया है। बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र इत्यादि राज्यों में धुआं उठने लगा है। कब यह ज्वाला में परिवर्तित हो जाएगा कहना मुश्किल है। इस बार विपक्ष पूरी तरह से आक्रामक मुद्रा में है। ‎‎विपक्ष ‎किसी भी स्तर पर जा सकता है। इस बार ‎विपक्ष संसद में अपनी ताकत नहीं ‎दिखा पाया, तो भविष्य में कोई अस्तित्व नहीं रहेगा। इस स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है। संसद का मानसून सत्र इस बार सरकार और विपक्ष के लिए आर-पार की लड़ाई जैसा है। ऊंट किस करवट बैठेगा कहना मुश्किल है। एसजे/ 16 जुलाई /2025