नई दिल्ली (ईएमएस)। सुप्रीम कोर्ट में एक साल से भी कम समय में बनाई गई कांच की दीवार को हटाया गया है, इससे सरकारी खजाने को 2.68 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। यह दीवार तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कोर्ट परिसर को आधुनिक बनाने और केंद्रीकृत वातानुकूलन में मदद करने के उद्देश्य से बनवाई थी। क्या था पूरा मामला? नवंबर 2022 में सीजेआई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट की पहली पांच अदालतों के बाहर स्थित ऐतिहासिक कॉरिडोर में कांच की दीवारें लगवाने का आदेश दिया था। उनका तर्क था कि इससे सेंट्रलाइज्ड एयर कंडीशनिंग में सुधार होगा और परिसर को अधिक आरामदायक बनेगा। लेकिन वकीलों के संगठनों, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन ने सीजेआई चंद्रचूड के फैसले का कड़ा विरोध किया। उन्होंने आरोप लगाया कि इन दीवारों ने गलियारों की चौड़ाई कम कर दी है, जिससे आवाजाही में दिक्कत होने से भीड़भाड़ बढ़ रही है। उनकी मुख्य शिकायत यह भी थी कि यह फैसला उनसे बिना किसी परामर्श के थोपा गया था। सीजेआई चंद्रचूड़ के सेवानिवृत्त होने के बाद, बार संघों ने उनके उत्तराधिकारी सीजेआई संजीव खन्ना से शीशे हटाने की मांग की, लेकिन उनके कार्यकाल में इस पर कोई फैसला नहीं हुआ। हालांकि, जून 2025 में, जब जस्टिस बीआर गवई ने 51वें सीजेआई के रूप में कार्यभार संभाला, तब फुल कोर्ट (सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों की सामूहिक बैठक) ने सर्वसम्मति से इन कांच के पैनलों को हटाने का फैसला किया। कुछ ही दिनों में इन दीवारों को हटाकर कॉरिडोर को उसके मूल, खुली और ऐतिहासिक बनावट में वापस लाया गया। अशोक कुमार उपाध्याय की आरटीआई (आरटीआई) से मिली जानकारी के अनुसार, इस पूरे प्रकरण में टैक्सपेयर्स के 2.68 करोड़ रुपये खर्च हुए है। कांच के पैनल लगाने में कुल 2,59,79,230 (लगभग 2.6 करोड़ रुपये) खर्च हुए। वहीं इन शीशों को हटाने में 8,63,700 का खर्च आया। इस प्रकार, महज एक साल के भीतर कुल 2.68 करोड़ रुपये खर्च हो गए। सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने इस फैसले को फुल कोर्ट का सामूहिक निर्णय बताया है। आशीष दुबे / 16 जुलाई 2025