लेख
22-Jul-2025
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संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को भेज दिया, जिसे स्वीकार कर लिया गया। उनके कार्यकाल को 2 साल बाकी थे। जिस आश्चर्यजनक तरीके से उनका इस्तीफा सामने आया, उसके बाद तरह-तरह की अटकलों का दौर शुरू हो गया है। धनखड़ ने अपना इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से देने की बात कही है। राजनीतिक हल्का में यह बात किसी को पच नहीं रही है। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने जिस तरह से न्यायपालिका के खिलाफ मोर्चा खोला था, वह संसद को सर्वोपरि बता रहे थे। राष्ट्रपति और राज्यपाल को लेकर जो फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया था, उसके बाद से वह लगातार सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का विरोध कर रहे थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव वाले मामले में विपक्षी सांसदों द्वारा महाभियोग का प्रस्ताव दिया गया था, उस पर उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की थी। सांसदों के हस्ताक्षर अभी तक प्रमाणित नहीं हुए और यह मामला ठंडा बस्ते में पड़ा हुआ था। इसी बीच दिल्ली हाईकोर्ट से स्थानांतरित इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार करते हुए उसमें कार्रवाई आगे बढ़ा दी थी। लोकसभा और राज्यसभा के 215 सांसदों ने यशवंत वर्मा के महाभियोग प्रस्ताव के खिलाफ हस्ताक्षर किए थे। दोनों सदनों में इसे स्वीकार कर लिया गया था। धनखड़ लगातार सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बोलते हुए, हर जगह कह रहे थे, संसद ही सर्वोपरि है। राष्ट्रपति ने जिन 14 मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की राय मांगी थी, उस पर सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की खंडपीठ गठित कर इस मामले की सुनवाई करने की अधिसूचना जारी कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों की बार वरिष्ठ अधिवक्ताओं जो भी पक्ष इस बहस में शामिल होना चाहे उसके लिए अधिसूचना जारी की है। इसको लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच की लड़ाई ऐसे निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है जहां पर सरकार को भारी परेशानी हो सकती है। राजनीतिक हलके में व्याप्त चर्चा के अनुसार उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के रिश्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से पिछले कुछ समय से तनावपूर्ण थे। राज्यसभा टीवी को लेकर भी सरकार और धनखड़ के बीच में तनाव बना हुआ था। राज्यसभा में मानसून सत्र के पहले ही दिन जिस तरह से ऑपरेशन सिंदूर के मामले में सदन के नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को, उन्होंने बोलने का मौका दिया, उसके बाद जब सदन के नेता जेपी नड्डा बोल रहे थे। नड्डा ने बोलते हुए यह कह दिया, जो वह बोल रहे हैं वही रिकॉर्ड होगा। एक तरह से नड्डा ने धनखड़ को आदेश दिया था। यह कहकर उन्होंने आसंदी के अधिकार उनके पास है, यह संदेश देने का उपक्रम किया। सदन के अंदर यह धनखड़ का एक तरह से अपमान था। यह भी कहा जा रहा है कि विपक्षी सांसदों ने इसको लेकर एतराज जताया था। इसके बाद से हलचल बढ़ी। सूत्रों के द्वारा यह भी जानकारी आ रही है कि उनका इस्तीफा दबाव बनाकर लिया गया है। इस्तीफा तैयार कराकर उनके सामने पेश किया गया था। वह हस्ताक्षर नहीं कर रहे थे, तो कोई फाइल उन्हें दिखाई गई। उसके बाद जगदीप धनखड़ ने इस्तीफे पर हस्ताक्षर किए हैं। शाम को 6 बजे तक सब कुछ सामान्य था। उसके बाद राजनीतिक घटनाक्रम बड़ी तेजी के साथ चला। सारे देश को रात 9:30 बजे पता चला कि स्वास्थ्य कारणों से जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दिया है। धनखड ने जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था, उससे सरकार की परेशानी बढ़ रही थी। सरकार और धनखड़ के बीच की दूरियां बढ़ती चली जा रही थी। उपराष्ट्रपति ने जिस तरह से मल्लिकार्जुन खड़गे को बोलने का मौका दिया, वह सत्ता पक्ष को बड़ा नागवार गुजरा। सदन के अंदर गुस्से में जेपी नड्डा ने अपनी प्रतिक्रिया दे दी थी। रही सही कसर नड्डा का यह कहना कि रिकॉर्ड में वही लिखा जाएगा, जो उन्होंने कहा है। इससे धनखड़ नाराज हो गए। सरकार ने इसे धनखड़ की बगावत के रूप में देखा। शाम 6 बजे से रात 9 बजे के 3 घंटे सरकार सक्रिय हुई। दिल्ली में चर्चा है, जो इस्तीफा तैयार किया गया। वह रक्षा मंत्री के कार्यालय में तैयार हुआ था। उस पर दबाव से जगदीप धनखड़ के हस्ताक्षर कराए गए। राष्ट्रपति द्वारा स्तीफ़ा तुरंत मंजूर कर लिया गया। उसके बाद मीडिया को सूचना दी गई है। मानसून सत्र के पहले दिन जिस तरह से धनखढ़ का इस्तीफा हुआ है, वह भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ा बदलाव और बड़ा धमाका है। ग्रह नक्षत्र की दिशाएं बदल रही हैं। ज्योतिषियों द्वारा यह कहा जा रहा था। 29 अप्रैल के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, केंद्र सरकार और भाजपा की मुसीबतें बढेंगी। पिछले दो-तीन महीने से सरकार जो भी निर्णय ले रही है। सरकार का हर दांव उल्टा पड़ रहा है। बिहार में मतदाता सूची का सघन अभियान भी चुनाव आयोग और सरकार के लिए परेशानी का कारण बन गया है। सरकार और न्यायपालिका के बीच जिस तरह की जंग छिड़ी हुई है इसका समापन किस रूप में होगा, इसको लेकर तरह-तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। मानसून सत्र के पहले ही दिन ज्योतिषियों द्वारा की गई भविष्यवाणी का असर दिखने लगा है। आगे क्या-क्या होगा, भगवान ही मालिक है। ईएमएस / 22 जुलाई 25