भले ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्वास्थ्य कारणों से दिया गयाउपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा स्वीकार कर लिया हो और गृह मंत्रालय ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी हो लेकिन इस विषय पर भाजपा की चुप्पी और विपक्ष की मुखरता कुछ ऐसे सवालों को जन्म देती है जिसका जवाब आना बाकी है।जगदीप धनखड़ ने सोमवार को देर शाम स्वास्थ्य कारणों से राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा भेज दिया था। अपने इस्तीफे में श्री धनखड़ ने लिखा कि ‘चिकित्सकों की सलाह और स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देते हुए मैं संविधान के अनुच्छेद 67 (ए) के तहत तत्काल प्रभाव से उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे रहा हूं। मेरे कार्यकाल के दौरान महामहिम राष्ट्रपति से मिले सहयोग और शानदार कामकाजी संबंधों के लिए मैं ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूं।मैं प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। प्रधानमंत्री से मिला सहयोग व समर्थन अमूल्य था। उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा। संसद के सभी सदस्यों से मुझे जो गर्मजोशी, भरोसा और स्नेह मिला उसे मैं हमेशा संजोकर रखूंगा और मेरी यादों में रहेगा।‘ धनखड़ मंगलवार को न तो संसद पहुंचे और न ही विदाई समारोह में भाग लिया। बल्कि यह कहें किपरंपरा के तहत आयोजित किये जानेवाले विदाई समारोह का आयोजन ही नहीं किया गया। 74 वर्षीय जगदीप धनखड़ का कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक था। उन्होंने 10 जुलाई को एक कार्यक्रम में कहा था कि ‘ईश्वर की कृपा रही तो वह 10 अगस्त 2027 को रिटायर हो जाएंगे। इससे पहले इस साल मार्च में उन्हें स्वास्थ्य कारणों से अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था। पिछले दिनों उत्तराखंड में एक कार्यक्रम के दौरान भी उन्हें चक्कर आ गया था। लेकिन फिलहाल वह स्वस्थ और पूरी तरह सक्रिय थे। सोमवार को भी वह दिन में संसद आये थे और राज्यसभा की कार्यवाही में बतौर सभापति सम्मिलित थे। दोपहर बाद कार्यमंत्रणा समिति की बैठक बुलाई थी लेकिन संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू और राज्यसभा के नेता सदन जयप्रकाश नड्डा के गैरहाजिर रहने के कारण बैठक मंगलवार दोपहरतक के लिए स्थगित कर दी गयी थी। वह काफी देर तक दोनों नेताओं के बैठक में आने का इंतजार करते रहे। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने यह कहकर चौंका दिया कि वह शाम साढ़े सात बजे तक सभापति के साथ थे और वह पूरी तरह ठीक और खुशमिजाज लग रहे थे। फिर अचानक क्या हो गया कि रात 9 बजे उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। अगर उपराष्ट्रपति का स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो सरकार को उनका बेहतर इलाज कराना चाहिए। वजह स्वास्थ्य नहीं कुछ और है। सरकार को स्पष्ट करना चाहिए। शिवसेना (उद्धव गुट) के सांसद संजय राउत ने कहा कि जगदीप धनखड़ का इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से नहीं बल्कि सत्ता के शीर्ष से टकराव की वजह से हुआ है। धनखड़ का इस्तीफा उन लोगों की नीयत पर गंभीर सवाल खड़े करता है जिन्होंने उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाया था। विपक्ष के कई सांसदों और नेताओं ने भी धनखड़ के इस्तीफे पर सरकार से सफाई मांगी है। इस बीच, बिहार भाजपा के एक बड़बोले विधायक हरिभूषण ठाकुर बचौल ने यह कहकर कयासों को जन्म दे दिया है कि ‘अब जबकि जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। ऐसे में केंद्र सरकार को पहल करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति पद पर नियुक्त करना चाहिए।‘ रात से लेकर मंगलवार को आधे दिन की खामोशी और सत्ता पक्ष के सन्नाटे के बाद दोपहर में प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘एक्स’ पर लिखा कि ‘श्री जगदीप धनखड़ जी को उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है। मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं।‘ मंगलवार को राज्यसभा में गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना पढ़ी गयी जिसमें उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को तुरंत प्रभाव से स्वीकार किये जाने की बात कही गयी है। देश के 72 वर्षों के संसदीय इतिहास में जगदीप धनखड़ पहले सभापति और उपराष्ट्रपति रहे हैं जिनके खिलाफ विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। हालांकि तकनीकी खामियों की वजह से वह खारिज हो गया था। तब विपक्ष ने उनपर पक्षपाती होने और सरकार के रिमोट से चलने का आरोप लगाया था। राजनीति की चाल, चरित्र भी अजीब है। आज वही विपक्ष जगदीप धनखड़ को ईमानदार, निष्पक्ष, काबिल और विपक्ष को सदन में संरक्षण देनेवाला बता रहा है। राज्यसभा में निर्दलीय सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल कहते हैं कि ‘जगदीप धनखड़ राष्ट्रवादी और देशभक्त हैं। वह चाहते थे कि विपक्ष और सरकार मिलकर दुनिया में भारत की स्थिति को बेहतर बनाएं। ये उनकी खूबी थी।‘ राजस्थान के झुंझुनूं जिलान्तर्गत किठाना गांव में 18 मई 1951 को एक मध्यमवर्गीय जाट परिवार में जन्में जगदीप धनखड़ की विडंबना रही कि वह महज एक बार 1993 से 1998 तक बतौर कांग्रेस विधायक अपना अपना कार्यकाल पूरा कर सके। इससे पहले वह 1989 में जनता दल के टिकट पर झुंझुनूं संसदीय सीट से सांसद बने। इस दौरान प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की सरकार में वह संसदीय कार्यमंत्री बनाए गए थे। लेकिन सरकार के अल्पमत में आ जाने के कारण देश को मध्यावधि चुनाव में जाना पड़ा। उनका राजनीतिक करियर लगभग 30 वर्षों का है। 30 जुलाई 2019 को तब के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया था जिस पद पर वह 18 जुलाई 2022 तक रहे। इस दौरान राज्य की ममता बनर्जी सरकार से उनका टकराव लगातार बना रहा। 11 अगस्त 2022 को वह देश के 14 वें उपराष्ट्रपति निर्वाचित किये गए। पेशे से वकील जगदीप धनखड़ क़ानून के अच्छे ज्ञाता हैं। संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़ा जाना उन्हें पसंद नहीं था और सबसे पहले उन्होंने ही इस मसले को उठाया था। न्यायपालिका पर उंगली उठना उन्हें गंवारा नहीं था। तभी तो दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन जस्टिस यशवंत वर्मा के घर मिले अधजले नोटों पर उन्होंने पक्ष-विपक्ष दोनों से महाभियोग प्रस्ताव लाने की मांग की थी। सोमवार को विपक्षके महाभियोग प्रस्ताव को उन्होंने बिना देरी किये स्वीकार कर लिया। कयास तो यह भी है कि धनखड़ की यही जल्दबाजी उनके इस्तीफे का कारण बनीक्योंकि सरकार इसका श्रेय खुद लेना चाहती थी। बहरहाल, इस्तीफे का सच क्या है, यह तो जगदीप धनखड़ ही बताएंगे। ईएमएस, 22 जुलाई, 2025