नई दिल्ली,(ईएमएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना द्वारा दायर आपराधिक मानहानि मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की दोषसिद्धि की पुष्टि कर दी है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने मामले में मेघा पाटकर पर लगाया एक लाख रुपये का जुर्माना रद्द किया। शीर्ष अदालत ने कहा हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों पर विचार कर जुर्माना रद्द किया जाता है और हम आगे साफ करते हैं कि पर्यवेक्षण आदेश प्रभावी नहीं होगा। न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि वे मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप नहीं कर रही है, इसमें पाटकर को अच्छे आचरण की परिवीक्षा पर रिहा किया गया था, लेकिन उन्हें हर तीन साल में एक बार निचली अदालत में पेश होना होगा। परिवीक्षा अपराधियों के लिए एक गैर-हिरासत दृष्टिकोण के रूप में कार्य करती है, जिससे सजा को सशर्त निलंबित किया जाता है। कारावास के बजाय, दोषी व्यक्ति को अच्छे आचरण की गारंटी वाले बांड के तहत रिहा कर दिया जाता है। उच्च न्यायालय ने 29 जुलाई को पाटकर को दी गई दोषसिद्धि और सज़ा को बरकरार रखकर कहा कि यह आदेश साक्ष्यों और लागू कानून पर उचित विचार-विमर्श के बाद पारित किया था। मामले में हालाँकि निचली अदालत ने विशिष्ट परिवीक्षा अवधि निर्धारित की थी, हाईकोर्ट ने उन्हें संशोधित किया। इससे पाटकर को हर तीन महीने में निचली अदालत में व्यक्तिगत रूप से, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा से या कानूनी प्रतिनिधित्व के माध्यम से उपस्थित होने की अनुमति देकर, उनके लिए अनिवार्यता को कम किया। दरअसल मामला 25 नवंबर, 2000 को पाटकर द्वारा जारी प्रेस नोट से शुरू हुआ, जिसका शीर्षक था देशभक्त का असली चेहरा। नोट में उन्होंने सक्सेना पर हवाला कारोबार में शामिल होने का आरोप लगाकर दावा किया था कि उन्होंने नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) को 40,000 रुपये का चेक दिया था, जो बाद में एक खाता न होने के कारण बाउंस हो गया। उन्होंने पाटकर को कायर और देशद्रोही भी कहा था। आशीष दुबे / 11 अगस्त 2025