नई दिल्ली (ईएमएस)। आयुर्वेद के अनुसार, हमारे शरीर में तीन दोष – वात, पित्त और कफ होते हैं, जिनके संतुलन से ही हम स्वस्थ रहते हैं। इन दोषों का असंतुलन कई बीमारियों की जड़ बनता है, लेकिन प्राकृतिक आहार और जीवनशैली के जरिए इन्हें संतुलित किया जा सकता है। वात दोष के असंतुलन से जोड़ों में दर्द, गैस, साइटिका और लकवे जैसी समस्याएं होती हैं। इससे बचाव के लिए फाइबर युक्त फल-सब्जियां, सलाद और लहसुन का सेवन लाभकारी माना गया है। वहीं, पित्त दोष से पेट में जलन, एलर्जी और चर्म रोग होते हैं। मसालेदार और खट्टे भोजन से परहेज कर, गाजर, अनार, जामुन और सौंफ का सेवन कर इसे संतुलित किया जा सकता है। कफ दोष के असंतुलन से बलगम, सर्दी, मोटापा और दमा जैसी परेशानियां होती हैं। मुनक्का, तुलसी, अदरक और आंवले का सेवन इसमें राहत देता है। दूध और दही से परहेज करने की सलाह भी दी जाती है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भोजन में 75-80 प्रतिशत क्षारीय और 20-25 प्रतिशत अम्लीय पदार्थ होने चाहिए। अधिक चीनी, नमक और तेलयुक्त खाद्य पदार्थों से दूरी बनाए रखना जरूरी है। इसके साथ ही नियमित व्यायाम और संतुलित दिनचर्या भी शरीर को त्रिदोष से मुक्त रखने में सहायक होती है। इसी तरह, सिद्ध प्रणाली, जो तमिलनाडु की प्राचीन चिकित्सा पद्धति है, शरीर में त्रिदोष संतुलन, पाचन तंत्र को मजबूत करने और समग्र स्वास्थ्य सुधार पर ध्यान देती है। इसका आधार हर्बल उपचार, डिटॉक्स, सचेत आहार और जीवनशैली है। इसका इतिहास अगस्त्य मुनि और अठारह सिद्धों से जुड़ा है, जिन्होंने इसे मौखिक परंपरा और ताड़ पत्रों के माध्यम से संरक्षित किया। सिद्ध चिकित्सा हर व्यक्ति की प्रकृति, आदतों और परिवेश के अनुसार व्यक्तिगत उपचार प्रदान करती है। आज भी इन प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में मौजूद प्राकृतिक ज्ञान, आधुनिक जीवनशैली के तनावों और बीमारियों के खिलाफ कारगर उपाय साबित हो रहा है। आयुर्वेद और सिद्ध प्रणाली को अपनाकर हम न केवल बीमारियों से बच सकते हैं, बल्कि एक संतुलित और स्वस्थ जीवन की ओर भी बढ़ सकते हैं। बता दें कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मानसिक और शारीरिक समस्याएं आम होती जा रही हैं, लेकिन भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति, खासतौर पर आयुर्वेद और सिद्ध प्रणाली, इन समस्याओं का प्रभावी समाधान प्रस्तुत करती हैं। सुदामा/ईएमएस 12 अगस्त 2025