लेख
18-Aug-2025
...


प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी द्वारा स्वतन्त्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से दिए गए संबोधन में उनमें काफी बदलाव महसूस किया गया, राजनीतिक पंडितों का कहना है कि पिछले एकादश वर्षीय अपने प्रधानमंत्रित्व काल में मोदी जी ने कभी भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को महत्व नहीं दिया और इसी पीड़ा से संघ भी गुजर रहा था। किंतु स्वतन्त्रता दिवस के संबोधन में मोदी ने संघ का गुणगान कर उसके गहरे जख्मों पर मरहम लगाने और सार्वजनिक रूप से अपनी भूल स्वीकार की। यद्यपि मोदीजी का यह संघ का गुणगान राजनीतिक रूप से एक विवाद के रूप में सामने लाया जा रहा है, जिसमें प्रतिपक्ष द्वारा संघ का इतिहास उजागर करने के साथ आजादी के तत्काल बाद उस पर लगाए गए प्रतिबंध की चर्चा की जा रही है, कहा जा रहा है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मंक संघ की कोई भूमिका नहीं है, न उसका कोई पदाधिकारी जेल गया और न ही आजादी के किसी आंदोलन में वह शरीक ही रहा, जबकि आजादी के संघर्ष के दौर में संघ की उम्र 20 वर्ष के आसपास थी, जो इस वर्ष वह शताब्दी वर्ष के रूप में मनाई जा रही है। किंतु फिर भी सबसे अहम् यही है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र भाई ने (जिनका जन्म आजादी के 8 वर्ष बाद हुआ) लाल किले की प्राचीर से इस बार संघ को याद किया और उसके सेवाभाव, संगठन और एकता की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। अब यद्यपि मोदी जी की अपने शासन के द्वादश वर्ष में संघ के प्रति व्यक्त भावना के कई राजनीतिक अर्थ निकले जा रहे हैं, कुछ राजनीतिक पंडित इसे मोदी जी की सोची समझी राजनीतिक चाल बता रहे है, तो कुछ इसे समय की जरूरत बता रहे हैं, अब जो भी हो यह तो जाहिर है कि मोदी जी ने लाल किले की प्राचीर से संघ की तारीफ अवश्य की..., और इससे पिछले एकादश वर्ष से निराश संघ के चेहरे पर कुछ मुस्कान दिखाई दी। यहां यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि संघ तथा उसके शीर्ष पदाधिकारियों ने अनेक माध्यमों से अपनी पहचान की याद दिलाने का का प्रयास किया है, किंतु इतनी लंबी अवधि में न तो भाजपा के शीर्ष पदाधिकारियों ने उसे महत्व दिया और न ही सरकारी पदों पर विराजित महानुभवों ने, इससे संघ काफी निराश था, 1-2 बार भाजपाध्यक्ष ने भी संघ पर व्यंग भरे बाणों से प्रहार किया और उसकी सत्ता से करीबी का खण्डन भी किया, किंतु अब मोदी जी ने सार्वजनिक रूप से संघ की तारीफ कर उसके जख्मों को भर दिया और अब मोदी जी के इस सार्वजनिक संबोधन के बाद राजनीति और संगठन का तालमेल ठीक हो जाएगा, ऐसी उम्मीद की जा रही है। यह उम्मीद सर्वव्यापी इसलिए भी है, क्योंकि राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक आदि सभी तरह के पहलुओं पर गौर करके यह भाषण तैयार किया गया था। जिसका सुदीर्घ असर होना स्वाभाविक इसलिए भी है, क्योंकि आगामी दो दशक के सुखद सपनों की कल्पना की गई है, यह समूचे भारतीय भूखंड के लिए मंगलकारी कल्पना है। ईएमएस / 18 अगस्त 25