-बिजली कंपनियों की मनमानी भोपाल (ईएमएस)। मप्र में बिजली कंपनियों की मनमानी ईमानदार उपभोक्ताओं पर भारी पड़ रही है। इसकी वजह यह है कि बिजली कंपनियां सरकारी सहुलियतों और राहतों के बाद भी बिजली महंगी कर रहे हैं। इससे उन लोगों पर अधिक भार पड़ रहा है जो हर महीने बिजली बिल का भुगतान करते हैं। देश में एक तरफ जहां दूसरे राज्यों में बिजली सस्ती हो रही है, वहीं मप्र में बिजली बिलों का नियमित भुगतान करो तो भी बिजली महंगी और न करो तो भी महंगी। चुनाव, चोरी व बिलों की शत-प्रतिशत वसूली नहीं होना, इसकी मुख्य वजह है, जो ईमानदारी से बिल भुगतान करने वाले करोड़ों उपभोक्ताओं के लिए सिरदर्द बना हुआ है। असल में तत्कालीन सरकार ने विधानसभा चुनाव 2023 से पहले अगस्त तक कई श्रेणी के करीब 89 लाख उपभोक्ताओं के लगभग 5 हजार करोड़ के बिल स्थगित कर दिए थे। उसके बाद नए सिरे से अगले महीने के बिल दिए। इनमें बकाया शामिल नहीं था। 20 से 50 पैसे तक महंगी बिजली चुनाव के बाद से अब तक ये बिल माफ नहीं किए। तीनों विद्युत वितरण कंपनियां इन्हें वसूल तो नहीं पा रहीं, लेकिन अपनी बैलेंस बुक में घाटा दिखा विद्युत नियामक आयोग से आम उपभोक्ताओं के लिए बिजली के दाम बढ़वा लिए। बोझ नियमित बिल देने वालों पर भी पड़ रहा है। ऐसे उपभोक्ताओं को प्रति यूनिट 20 पैसे से 50 पैसे तक महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सरकारें और बिजली कंपनियां ठीक से काम करें तो घाटे जैसी स्थिति नहीं बनेगी। घाटा नहीं होगा तो दाम भी नहीं बढ़ाने पड़ेंगे। कहने को तो ऊर्जा विभाग बिजली कंपनियों के कामकाज पर नियमित निगरानी कर रहा है, लेकिन बिजली चोरी और लाइन लॉस नहीं रुकवा पा रहा। यह भी घाटे की बड़ी वजह है। इसके अलावा नियमित बिलों की वसूली में भी शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल नहीं हो रहे इन सबका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष असर सूबे के आम उपभोक्ताओं पर पड़ रहा है। यह पहला मौका नहीं है, जब कंपनियों को अकेले बिलों की वसूली स्थगित करने व माफ करने में घाटा खाना पड़ रहा है, बल्कि 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले भी बिजली बिल माफी योजना लाई गई थी, जिसमें बिलों को माफ करने की घोषणा की, बिल माफ भी किए। तब करीब 4 हजार करोड़ रुपए की राशि के बिल माफ किए। जिसे कंपनियों ने घाटे में शामिल किया और बिजली के दाम बढ़वा दिए थे। 25 प्रतिशत उपभोक्ता भुगतान से बच रहे जिनके बिलों की वसूली पर रोक लगाई थी, उनमें से करीब 25 प्रतिशत उपभोक्ता ऐसे हैं जो बाद के बिलों के भुगतान से भी बच रहे हैं। जानकारों का कहना है कि जब एक बार बिल वसूली रोक दी जाती है तो कई उपभोक्ताओं को लगता है कि अगले चुनाव में दोबारा माफी मिल सकती है। इस मंशा से बिल जमा करने में आनाकानी करते हैं। इसका फायदा कंपनियां वास्तविक नुकसान छुपाकर बिजली के दाम बढ़वाने में सफल होती हैं। नियमित भुगतान करने वाले लोगों को नुकसान उठाना पड़ता है। विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि कंपनियों ने बकाया बिल व रोके गए भुगतान वाले बिलों का विश्लेषण कराया, जिसमें यह बात सामने आई है। विनोद / 15 सितम्बर 25