वॉशिंगटन (ईएमएस)। अब तक माना जाता था कि छह माह की उम्र में डायबिटीज़ केवल नेओनैटल डायबिटीज़ (जन्मजात) होती है, जो कुछ जीनों में उत्परिवर्तन के कारण होती है, लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने छह महीने से कम उम्र के शिशुओं में मधुमेह के एक नए प्रकार की पहचान की है। नए शोध में ऐसे शिशुओं की खोज हुई, जिनमें 26 ज्ञात नेओनैटल जीनों में कोई पेथोजेनिक मुटेशन नहीं था, फिर भी उन्हें डायबिटीज़ था। यूके के एक्सेटर विश्वविद्यालय और ब्रुसेल्स विश्वविद्यालय (यूएलबी) की टीम ने उन्नत डीएनए अनुक्रमण तकनीक और स्टेम सेल मॉडल का उपयोग करके टीएमईएम167ए जीन में उत्परिवर्तन की पहचान की। इस शोध के अनुसार, कुछ बच्चों में छह महीने से पहले टाइप-1 डायबिटीज़ विकसित हो सकती है, जो पारंपरिक नेओनैटल डायबिटीज़ से अलग है। इसमें बहु-जीन (पॉलिजेनिक) जोखिम और ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया शामिल होती है, न कि केवल एक जीन दोष। शोध में यह भी देखा गया कि जिन बच्चों का “टाइप-1 डायबिटीज़ जीन जोखिम स्कोर” अधिक था, उनमें इंसुलिन बनाने की क्षमता (सी-पेप्टीड) तेजी से घटती है और ऑटोएंटीबॉडीज़ भी पाई जाती हैं। इसका मतलब है कि बीमारी की प्रकृति ऑटोइम्यून है और इसका इलाज नेओनैटल डायबिटीज़ की तरह नहीं, बल्कि टाइप-1 डायबिटीज़ की तरह किया जाना चाहिए। टाइप-1 डायबिटीज़ में इंसुलिन थैरेपी और ऑटोइम्यून मैनेजमेंट महत्वपूर्ण होते हैं, जबकि नेओनैटल डायबिटीज़ में विशेष जीन-थैरेपी या दवाएं दी जाती हैं। शोध से यह भी संकेत मिलता है कि कुछ शिशुओं में गर्भावस्था के दौरान ही इंसुलिन बनाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है, जिससे जन्म और जन्म के तुरंत बाद का विकास प्रभावित होता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि यदि किसी बच्चे को छह महीने से पहले डायबिटीज़ का निदान हो, तो नेओनैटल जीन परीक्षण, ऑटोएंटीबॉडी परीक्षण और सी-पेप्टीड जांच अनिवार्य हैं। सुदामा/ईएमएस 18 अक्टूबर 2025