युद्ध कभी भी सभ्य समाज की पहचान नहीं होती और न ही युद्ध किसी सभ्य समाज की स्थापना में सहायक सिद्ध हो सकता है। मानव जनित समस्याओं का हल आपसी बातचीत से निकालना सभ्य समाज की देन है। इसके विपरीत स्वयं के फैसलों और मन-मर्जी को मनवाने के लिए क्रूरता की हदें पार करते हुए किसी पर युद्ध थोप देना उचित नहीं कहा जा सकता है। इससे भी ज्यादा निकृष्ट कार्य युद्ध के लिए किसी को प्रेरित करना या किसी के संबंधों को खराब कर अपना उल्लू सीधा करना होता है। अब जबकि यूक्रेन और रुस के बीच युद्ध अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है और अब जबकि यह संघर्ष केवल दो देशों के बीच की सीमित लड़ाई न रहकर वैश्विक सामरिक प्रतिस्पर्धा का मंच बन चुका है। ऐसे में संपूर्ण दुनिया के शांतिप्रिय देशों के लिए यह युद्ध चिंता का विषय बन जाना उचित ही है। दरअसल हाल की घटना, जिसमें रूस ने दावा किया कि उसने अमेरिकी मिसाइलों को हवा में ही मार गिराया और यूक्रेन की लॉन्च साइट को नष्ट कर दिया है। इससे यूक्रेन को जंगी सामान मुहैया कराने और अन्य अमेरिकी सहयोग का खुलासा हुआ है। इसके साथ ही इस घटना और खुलासे ने युद्ध में इस्तेमाल आधुनिक तकनीक, खुफिया क्षमता और अंतरराष्ट्रीय हथियार पर आधारित राजनीति के महत्व को भी उजागर कर दिया है। रूसी रक्षा मंत्रालय का कहना है, कि यूक्रेन ने खार्कोव क्षेत्र से अमेरिका द्वारा निर्मित चार एटीएसीएमएस बैलिस्टिक मिसाइलें रूसी शहर वोरोनेज की ओर दागीं। यह मिसाइल लगभग 300 किलोमीटर की रेंज और अत्याधिक तेज गति के कारण यूक्रेन को रूस की गहराई तक प्रहार करने की क्षमता देती हैं। अमेरिका ने हाल ही में यूक्रेन को यह उन्नत मिसाइलें सौंपने का फैसला लिया था ताकि यूक्रेन रूसी सैन्य ठिकानों पर प्रभावी जवाब दे सके। अब विचार करने वाली बात तो यह है कि एक तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दुनियां से कहते नहीं थक रहे कि वो शांति के पुजारी हैं और उन्हें ही शांति नोबल पुरस्कार मिलना चाहिए, जो इस बार तो नहीं मिल सका। इसके लिए उन्होंने बारंबार दावा किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच संभावित युद्ध को रोकने में उन्होंने ही मदद की। इसके अलावा उन्होंने दावा किया कि हमास और इजराइल के बीच शांति उन्होंने ही कराई और फिर रुस व यूक्रेन युद्ध रोकने के प्रयासों का भी बढ़-चढ़कर बखान करते देखे जा रहे हैं। ऐसे में सवाल यही किया जा रहा है कि आखिर जब शांति की बात की जा रही है तो जंग को आगे बढ़ाने के लिए युद्ध सामग्री क्योंकर दी जा रही है? यह उनकी कथनी और करनी में अंतर को प्रदर्शित करता है। बहरहाल रूस का दावा है कि उसकी बहु-स्तरीय एयर डिफेंस प्रणाली ने मिसाइल हमले को शुरू होने से पहले ही नाकाम कर दिया। रूसी रेकॉन फ्लाइट ने लॉन्चिंग की गतिविधि को पहचान लिया और फिर एस-400 ट्रायंफ तथा पंतसिर-एस1 सिस्टम ने हवा में ही चारों मिसाइलों को नष्ट कर दिया। रूस का कहना है कि जासूसी, रोकथाम और जवाबी कार्रवाई, तीनों स्तरों पर उसकी सेनाओं ने समन्वित और प्रभावी काम किया। यहां बताते चलें कि एस-400 दुनिया के सबसे उन्नत एयर डिफेंस सिस्टम में माना जाता है, जो 400 किमी तक के लक्ष्यों को इंटरसेप्ट कर सकता है। पंतसिर-एस1 निकट दूरी की सुरक्षा देता है और दोनों मिलकर बहु-स्तरीय सुरक्षा तैयार करते हैं। कई देशों जिनमें भारत, तुर्की, चीन शामिल हैं ने भी इस प्रणाली को खरीदा है, जो इसकी सामरिक प्रभावशीलता को दर्शाता है। यदि रूस का दावा सही है, तो यह सिस्टम न केवल बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस में बल्कि वास्तविक युद्ध परिस्थितियों में भी प्रभावशाली साबित हो रहा है। लॉन्च साइट को नष्ट करने का दावा भी महत्वपूर्ण है। यह अलग बात है कि यूक्रेन ने इस घटना पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। युद्ध के इतिहास में अक्सर दावे और प्रतिदावे समय के साथ स्पष्ट होते हैं, इसलिए स्वतंत्र पुष्टि का इंतजार आवश्यक है। फिर भी, यह घटना इस बढ़ते संघर्ष में प्रायोजक देशों की भूमिका को भी सामने लाती है। अमेरिका लंबे समय से विभिन्न देशों को सैन्य तकनीक उपलब्ध कराता आया है, इज़राइल, सऊदी अरब, पाकिस्तान और अन्य सहयोगी देश इसकी सूची में शामिल हैं। भारत भी इस कड़ी में नया नहीं है। हाल ही में अमेरिका ने भारत को 100 जेवलिन एंटी-टैंक सिस्टम और 216 एक्सकैलिबर स्मार्ट आर्टिलरी प्रोजेक्टाइल बेचने का निर्णय लिया। लगभग 775 करोड़ रुपये की इस डील को अमेरिकी कांग्रेस से मंजूरी मिल चुकी है। जहां तक रुस और यूक्रेन जंग की बात है तो यूक्रेन की सैन्य आपूर्ति अब भी मुख्यतः पश्चिमी देशों पर निर्भर है। इन देशों के समर्थन के बिना यूक्रेन रूस की विशाल सैन्य क्षमता का मुकाबला नहीं कर सकता। हथियारों का हस्तांतरण, सामरिक गठजोड़, और तकनीकी श्रेष्ठता, ये तीनों इस युद्ध के वास्तविक निर्णायक तत्व बन चुके हैं। आने वाले महीनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या यूक्रेन और रूस की यह मिसाइल बनाम एयर-डिफेंस की लड़ाई नई दिशा लेती है या संघर्ष और अधिक जटिल होता जाता है। इसमें असमंजस इसलिए भी है, क्योंकि कहा कुछ जा रहा और किया कुछ जा रहा है। वैसे युद्ध को आगे बढ़ाने की बजाय यदि आपसी बातचीत से समस्या का समाधान निकाला जाए तो बेहतर होगा। ईएमएस / 20 नवम्बर 25