राजनीति में गिरते स्तर और बढ़ती कटुता हरियाणा की राजनीति हाल ही में उस समय सुर्खियों में आई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और अन्य भाजपा नेताओं के पोस्टरों पर अज्ञात व्यक्तियों ने कालिख पोत दी। चुनावी माहौल हो या सरकार विरोध, पोस्टर पर कालिख पोतने जैसी घटनाएँ केवल सामूहिक असंतोष का संकेत नहीं होतीं, बल्कि यह राजनीतिक संस्कृति के लगातार गिरते स्तर को भी दर्शाती हैं। भाजपा इसे कांग्रेस का हताशाजनित व्यवहार बता रही है और यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि कांग्रेस हार पचा नहीं पा रही, जबकि कांग्रेस इन आरोपों से इंकार करती है। लेकिन सवाल यह है कि जनता इस घटना को किस रूप में देखती है? क्या यह असंतोष का प्रतीक है, राजनीतिक हताशा का प्रदर्शन है या सिर्फ माहौल बिगाड़ने की कोशिश? इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि कांग्रेस की गिरती राजनीतिक पकड़, उसका कमजोर जनाधार, और तुष्टिकरण की राजनीति ने उसकी हालत आज उस मोड़ पर ला खड़ी की है जहाँ आत्ममंथन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।पोस्टरों पर कालिख क्या यह राजनीति की बीमारी का लक्षण? हरियाणा में हुई यह घटना कोई नई नहीं है। राजनीति में विरोध जताने के लिए पोस्टरों पर कालिख लगाने की परंपरा दशकों पुरानी है। लेकिन मौजूदा दौर में, जब लोकतंत्र और राजनीतिक संवाद को अधिक सभ्य और संयमित होने की जरूरत है, इस प्रकार की घटनाएँ लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत मानी जाती हैं। भाजपा के अनुसार, यह कदम जनता की नाराजगी नहीं, बल्कि कांग्रेस की चुनावी बेचैनी और राजनीतिक कुंठा का परिणाम है। पार्टी का तर्क है कि जब जमीन खिसक रही हो, तब विपक्ष अक्सर इस तरह के प्रतीकात्मक आक्रोश को अपनाता है। कांग्रेस भले ही कहे कि यह घटना उससे संबंधित नहीं है, लेकिन भाजपा इसे एक राजनीतिक संदेश के रूप में प्रचारित करने में सफल रही है। आम मतदाता के मन में भी यह सवाल उठता है कि क्या विरोध का यही तरीका है? क्या इस तरह की हरकतें राजनीति को और भी अधिक दूषित नहीं करतीं? *कांग्रेस का जनाधार क्यों ढह रहा है?* यह घटना कांग्रेस की मौजूदा स्थिति की केवल एक झलक है। वास्तव में, कांग्रेस का जनाधार वर्षों से लगातार कमजोर हो रहा है। इसके कई प्रमुख कारण हैं। नेतृत्व का अभाव और दिशा विमर्श की कमी है।कांग्रेस लंबे समय से एक दिशाहीन पार्टी के रूप में देखी जा रही है। नेतृत्व तो है, पर निर्णायक क्षमता का अभाव है। युवा मतदाता से उसका संबंध टूट चुका है और वरिष्ठ नेतृत्व आपसी मतभेदों में उलझा रहता है।संगठन की ढहती संरचना जमीनी स्तर पर संगठन की पकड़ लगभग समाप्त हो चुकी है। बूथ स्तर तक भाजपा ने अपनी पैठ बनाई, जबकि कांग्रेस अभी भी पुराने ढांचे पर निर्भर है।तुष्टिकरण की राजनीति सबसे बडी समस्या है। कांग्रेस पर सबसे बड़ा आरोप यह है कि उसने दशकों तक विशेष वर्गों के वोट बैंक के लिए तुष्टिकरण की राजनीति की। इसका परिणाम यह हुआ कि बहुसंख्यक समुदाय से उसका विश्वास टूट गया और वह भाजपा की ओर झुक गया। भूतकाल के बोझ से वर्तमान दबा है। कांग्रेस आज भी अपने पुराने शासनकाल की नीतियों, घोटालों, विवादों और आंतरिक कलह की छाया से बाहर नहीं आ सकी। जनता उस पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पा रही। भाजपा का संदेश है कांग्रेस दुसरों पर कालिख पोत कर अपना मुंह छिपा रही है भाजपा ने इस घटना को पूरी रणनीति से कांग्रेस के खिलाफ एक मुद्दे के रूप में उछाला। पार्टी का कहना है किकांग्रेस दूसरों पर कालिख पोत रही है, क्योंकि उसका खुद का चेहरा दागदार है। जनता सब जानती है। इसके पीछे राजनीतिक तर्क यह है किकांग्रेस मैदान में कमजोर है।चुनावी मुद्दों पर उसके पास कुछ नया नहीं है।विकास का कोई विजन नही है।जनता का समर्थन लगातार कम होता जा रहा है।भाजपा की बढ़ती पकड़ से विपक्ष असहज है। इसलिए भाजपा इस घटना का इस्तेमाल जनता को यह बताने में कर रही है कि कांग्रेस में सकारात्मक राजनीति की कमी है और वह नकारात्मकता के सहारे खुद को जिंदा रखने की कोशिश कर रही है। क्या सच में कांग्रेस हार पचा नहीं पा रही?हरियाणा ही नहीं, देश के कई राज्यों में कांग्रेस की स्थिति कमजोर है। पिछले दशक में कांग्रेस जिस तरह चुनाव हारती गई, उससे यह धारणा बनी कि पार्टी हार को स्वीकारने की बजाय बहाने ढूँढती है।चुनावी पराजय के बाद कांग्रेस की बैठक में हताशा देखी गई। आत्ममंथन की बैठकें होती हैं, परंतु निर्णय नहीं लिए जाते। जमीनी कार्यकर्ता की सुनवाई नहीं होती।नेतृत्व जिम्मेदारी स्वीकार करने के बजाय संगठन पर दोष डाल देता है। इस प्रकार जनता ने यह अनुभव किया है कि कांग्रेस बेचैनी में दूसरों को दोष देती है, पर अपनी कमजोरी को ठीक करने की इच्छाशक्ति नहीं रखती। कांग्रेस को क्या करना चाहिए? इस घटनाक्रम के बाद यह स्पष्ट है कि कांग्रेस अब भी जनता का विश्वास जीतने में असफल है। उसे तत्काल कुछ बड़े कदम उठाने होंगे।भूतकाल का ईमानदारी से मूल्यांकन कांग्रेस को तय करना होगा कि कहाँ गलती हुई?जनता उससे क्यों दूर हुई? क्या उसकी नीतियाँ देश की अपेक्षाओं के अनुरूप थीं? यह आत्ममंथन केवल कागज़ों पर नहीं, बल्कि व्यावहारिक सुधार की दिशा में होना चाहिए। तुष्टिकरण की राजनीति से छुटकारा पाना होगा।मुस्लिम मुस्लिम करने वाली कांग्रेस ने मुसलमानों के उत्थान और समाजहित में कोई कार्य नही किया।इसलिए बिहार में मुस्लिम समाज ने कांग्रेस को वोट नही किया।कांग्रेस को यह समझना होगा कि समय बदल चुका है। आज की राजनीति विकास, सुरक्षा, पहचान और पारदर्शिता पर आधारित है।परंपरागत तुष्टिकरण वाली राजनीति जनता स्वीकार नहीं कर रही। नेतृत्व को निर्णायक बनाना होगा।कांग्रेस को स्पष्ट और मजबूत नेतृत्व चुनना होगा। राहुल गांधी हों या कोई और लेकिन नेतृत्व ऐसा हो जो जनता को दिशा दे,संगठन को मजबूत करे,और चुनावी रणनीति में निर्णायक भूमिका निभाए। जमीनी स्तर पर मजबूत संगठन तैयार करना होगाभाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसका बूथ स्तर का नेटवर्क है।कांग्रेस को भी अपने कार्यकर्ताओं को पुनः सक्रिय करना होगा। लेकिन यह बात कांग्रेस के गले नही उतरेगी।निष्पक्ष और संयमित राजनीतिक आचरण की आवश्यकता है। पोस्टरों पर कालिख पोतने जैसी बातों से कांग्रेस की छवि को नुकसान होता है।उसे विचार आधारित राजनीति का माहौल बनाना होगा। जनता सब जानती है।कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आज का मतदाता पहले की तरह भावनात्मक नहीं रहा।वह हर घटना, हर बयान और हर राजनीतिक चाल का विश्लेषण करता है।पोस्टरों पर कालिख हो या कोई अन्य विवाद जनता जानती है कि किसका उद्देश्य क्या है।कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि जनता ने उसके प्रति भरोसा खो दिया है। विश्वास टूट गया है,और उसकी राजनीतिक विश्वसनीयता कमज़ोर हो गई है। विश्वास पुनः स्थापित करने के लिए उसे केवल बयानबाज़ी नहीं, बल्कि जमीन पर ठोस काम करना होगा। क्या कांग्रेस की राह आसान है? नहीं। यह दौर कांग्रेस के लिए सबसे कठिन है।भाजपा देश के अधिकांश राज्यों में मजबूत है। क्षेत्रीय पार्टियाँ भी कांग्रेस को जगह नहीं देना चाहतीं। जनता अब विकल्प के रूप में कांग्रेस की ओर कम देखती है। कांग्रेस को अपनी राह आसान नहीं, बल्कि और भी ज्यादा मुश्किल दिखाई दे रही है। अगर कांग्रेस ईमानदारी से काम करे, दिशा बदले और नई राजनीति अपनाए तो वह फिर से मजबूत हो सकती है। लेकिन अगर वह पुरानी सोच में फँसी रही, तुष्टिकरण और आरोप–प्रत्यारोप की राजनीति में समय गंवाती रही, तो उसका भविष्य और भी धुंधला होता जाएगा। फिर सत्ता फिलहाल आने वाले विगत वर्षों में सम्भव नही है क्योंकि कांग्रेस का जनाधार खत्म हो चुका है। हरियाणा में मोदी–नड्डा के पोस्टरों पर कालिख पोतने की घटना केवल एक राजनीतिक विरोध नहीं, बल्कि कांग्रेस की राजनीतिक बेचैनी का प्रतीक है। भाजपा ने इसे पूरी तरह कांग्रेस के खिलाफ जनमानस में स्थापित कर दिया है। कांग्रेस के लिए परिस्थितियाँ चुनौतीपूर्ण हैं और वह जनता से लगातार कटती जा रही है।इस समय उसे आवश्यकता है।गंभीर आत्ममंथन,तुष्टिकरण से दूरी, मजबूत नेतृत्व,और ईमानदार राजनीति की। यदि कांग्रेस सच में बदलाव चाहती है, तो उसे अपनी सोच, नीतियों और व्यवहारों में बदलाव करना होगा।अन्यथा जनता का विश्वास पुनः जीतना उसके लिए और भी कठिन होता जाएगा। ईएमएस/25/11/2025