नेपाल आने वाले पर्यटकों के लिए जनकपुर एक बेहद खास जगह है।जनकपुर नेपाल के तराई क्षेत्र में स्थित है जो पर्यटकों के साथ तीर्थयात्रियों के लिए एक पसंदीदा जगह है। यह शहर अपने सुखद मौसम, भव्य उत्सव, मंदिरों की आकर्षक वास्तुकला से सभी को आकर्षित करता है। इस शहर में कई तालाब है जो यात्रियों को आकर्षित करते हैं। राजा जनक के नाम पर शहर का नाम जनकपुर रखा गया था। काठमांडू से जनकपुर विभिन्न मार्गों से आसानी से पहुँचा जा सकता है और नेपाली पर्यटन का एक अभिन्न अंग है। काठमांडू से सीधे बस से 400 किलोमीटर का रास्ता है । बस से 7-8 घंटे लगता है । इसके अलावा नेपाल के विभिन्न शहरों से जनकपुर के लिए गाडियां जाती रहती हैं। भारत के अन्य राज्यों से आने वाले लोग जयनगर आएं यह बिहार में हैं, सीमा से करीब है। यहां से बस जनकपुर जाती हैं। दूसरा रास्ता सीतामढ़ी शहर से भिट्ठामोड़ होते हुए जलेश्वर 19 किलोमीटर वहां से जनकपुर धाम 30 किलोमीटर है।नेपाल सरकार ने नया रेल मार्ग का निर्माण कर जनकपुर धाम से जयनगर के लिए रेलवे सेवा प्रदान की है। बिहार राज्य का जयनगर भारत के विभिन्न राज्यों के रेलवे नेटवर्क से कनेक्ट है आप जयनगर आकर रेल द्वारा सीधे जनकपुर धाम पहुंच सकते हैं। जनकपुर नेपाल का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां स्थित जानकी मंदिर की कलाकृति बेहद अद्भुत है। नेपाल स्थित जानकी मंदिर एक ऐतिहासिक स्थल होने के साथ हिंदुओं की आस्था का प्रतीक है।मंदिर का निर्माण हिन्दू-राजपूत वास्तुकला पर आधारित है। यह नेपाल में सबसे महत्वपूर्ण राजपूत स्थापत्यशैली का उदाहरण है।जानकी मंदिर में तीर्थ यात्री न सिर्फ़ भारत से बल्कि विदेशों से भी आते हैं।यहां यूरोप, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया से भी तीर्थ यात्री आते हैं। जनकपुर नेपाल ही नहीं अपितु दुनिया भर के लोगों के लिये अत्यंत पावन तीर्थ है । भगवान राम और माता जानकी का परिणय धनुष भंग के पश्चात जनकपुर में हुआ था । ब्रह्मर्षि राजा जनक अपने युग के प्रख्यात नरेश थे । ’शतपथ ब्राहमण‘, ’तैतिरीय ब्राहमण‘, ’वृहदारण्यक‘ उपनिषद् इत्यादि में उसकी चर्चा अनेक बार आयी है। ’वृहद्विष्पुराण‘ के अनुसार तीर्थाटन की पूर्णाहुति वहीं जाकर होती थी। वैसे तो वहां अनेक मंदिर, मंडप, कुंड इत्यादि हैं परन्तु प्रमुख जानकी मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, विवाह मंडप एवं राम मंदिर हैं। उनमें प्रथम तीन तो एक ही विशाल प्रांगण में अवस्थित हैं। त्रेता युग के बाद मिथिला राज्य के अंतिम नरेश के रूप में कराल जनक का उल्लेख चाणक्य अपने अर्थशास्त्र में करता है । सुश्रुत संहिता के उत्तर तंत्र खंड में नेत्र चिकित्सा अध्याय में भी जनक का उल्लेख नेत्र चिकित्सा के सर्वोत्कृष्ट सर्जन के रूप में किया गया है । ये दो उल्लेख इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिये पर्याप्त हैं कि रामजी की कथा केवल धार्मिक साहित्य नहीं अपितु भारत वर्ष के प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण हैं। माता सीता को समर्पित इस मंदिर को ऐतिहासिक स्थल भी माना जाता है। मिथिला जहां माता सीता का जन्म हुआ और उनके विवाह के बाद यह मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम चंद्र जी का ससुराल बना।आज भी इस मंदिर में ऐसे प्रमाण मौजूद हैं जो रामायणकाल का उल्लेख करते हैं। जानकी मंदिर नेपाल के जनकपुर धाम में स्थित है। विख्यात माता सीता का यह मंदिर 4860 वर्गमीटर में फैला हुआ है। किलानुमा दीवारों से घिरे वहां के सर्वप्रमुख एवं विशाल जानकी मंदिर के निर्माण की कथा है कि विवाहोपरान्त जब सीता राम जनकपुर से प्रस्थान करने लगे तो दुःख से जनक मूर्च्छित हो गये। उन्होंने सीता राम के स्मरणार्थ विश्वकर्मा को मूतियां तैयार करने का अनुरोध किया। कालांतर में वे मूर्तियां भूमिसात् हो गयी। किंवदन्तियों के अनुसार वहां जानकी मंदिर के समक्ष स्थित लक्ष्मण मंदिर का ही निर्माण सर्वप्रथम हुआ। कहा जाता है कि मिथिला में हति के पुत्रा तथा कृति के पिता बहुलाश्व नामक जनकवंशीय अंतिम नरेश के समय भीषण अकाल पड़ा जिससे मुक्ति के लिए उन्होंने स्वयं उत्तराखंड में बारह वर्षों तक जब तपस्या की तो उन्हें शेष भगवान ने एक उपाय बताते हुए कहा कि ’मैं प्रत्येक त्रोतायुग में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के रूप में जन्म ग्रहण करता हूं, इसलिए मेरा एक मंदिर बनवायें। कालक्रम में वह मंदिर जब विनष्ट प्राय होने लगा तो जीर्णोद्धार कराया नजदीक के ही एक नरेश ने। इस मंदिर के निर्माण में करीब 16 साल का समय लगा था यानि मंदिर का निर्माण 1895 ईस्वी में शुरु हुआ और 1911 में संपूर्ण हुआ था। कहते हैं टीकमगढ़ राजवंश की भगवान राम में गहरी आस्था रही है।इन्होंने अयोध्या, ओरछा और जनकपुर में भव्य मंदिरों का निर्माण कराया। इतिहासकार बताते हैं कि त्रेता युगकालीन जनकपुर का वेद पुराणों में जिक्र मिलता है। लेकिन इस जगह की पहचान होना काफी मुश्किल था। 16वीं सदी शताब्दी में ओरछा के शासक मधुकरशाह की महारानी गणेश कुंवर अयोध्या से रामलला को ओरछा ले आईं।इसके 200 साल बाद जनकपुर में जानकी मंदिर बनवाने का जिम्मा टीकमगढ़ राजपरिवार में अगली पीढ़ी की महारानी ने संभाल लिया। 1896 से टीकमगढ़ की महारानी सवाई महेन्द्र प्रताप सिंह बुंदेला की पत्नी वृषभानु कुमारी ने नेपाल के जनकपुर में मंदिर निर्माण शुरू करा दिया, जिसके नौलखा नाम से पहचाने जाने की कहानी भी कहानी कम रोचक नहीं है। टीकमगढ़ महाराज महेन्द्र प्रताप सिंह और महारानी वृषभानु कुमारी के संतान नहीं थी। पुत्र प्राप्ति की कामना करते हुए महारानी वृषभानु कुमारी ने अयोध्या में ‘कनक भवन मंदिर’ का निर्माण करवाया था, लेकिन पुत्र प्राप्त न होने पर अपने गुरु की आज्ञा से 1896 में उन्होंने देवी सीता का मंदिर जनकपुर में बनवाने का संकल्प लिया।1896 ई. में जानकी मंदिर का निर्माण करवाना शुरू कर दिया और इसके एक वर्ष में ही उनको पुत्र की प्राप्ति हो गई। भगवान राम की अर्धांगिनी देवी सीता के जनकपुरी में बन रहे मंदिर का निर्माण कराने के लिए टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी ने नौ लाख रुपए खर्च करने का संकल्प लिया था। इसके लिए पहले जनकपुर गांव को बसाया गया, क्योंकि वह वीरान क्षेत्र था।फिर वहां मंदिर का निर्माण शुरू कराया।नौ लाख खर्च करने के संकल्प पर इस मंदिर का नाम भी ‘नौलखा’ पड़ गया। विश्वजीत सिंह बुंदेला कहते हैं, लेकिन इसके निर्माण पर 18 लाख से भी अधिक की धनराशि खर्च हुई थी और इसका निर्माण भी कई साल चलता रहा। जानकी मंदिर के निर्माण काल में ही वृषभानु कुमारी का निधन हो गया था। उनके निधन के बाद वृषभानु कुमारी की बहन नरेंद्र कुमारी ने मंदिर का निर्माण कार्य पूरा करवाया।बाद में महाराज प्रताप सिंह ने नरेंद्र कुमारी से विवाह कर लिया।जानकी मंदिर 1911 में पूरी तरह बनकर तैयार हो गया।इसमें मूर्ति स्थापना पहले ही कर पूजा प्रारंभ कर दी गई थी।जनकपुर में जानकी जी का भव्य मंदिर तो बनकर खड़ा हो गया था, लेकिन इतने विशाल मंदिर का प्रबंधन बनाए रखना आसान नहीं था। जब मंदिर के खर्च की बात सामने आई तो टीकमगढ़ महाराज ने नेपाल में मंदिर के नाम पर काफी जमीन दे दी और यही जमीन मंदिर की आमदनी का प्रमुख स्रोत बनी रही़। यहां जंगल हुआ करता था, जहां शुरकिशोर दास तपस्या-साधना करने पहुंचे थे।यहां रहने के दौरान उन्हें माता सीता की एक मूर्ति मिली थी, जो सोने की थी।उन्होंने ही इसे वहां स्थापित किया था। इतिहासकारों के मुताबिक 1657 ईस्वी में यहां पर माता सीता की सोने की मूर्ति मिली थी। भगवान राम ने यहीं पर माता सीता से विवाह के लिए स्वयंवर में भगवान शिव का धनुष तोड़ा था। यहां मौजूद पत्थर के टुकड़े को धनुष का अवशेष कहा जाता है। रामायणकाल के अनुसार माता सीता ने धरती मां के गर्भ से जन्म लिया था और निसंतान राजा जनक को खेत में हल चलाते समय मिली थी। कहा जाता है कि जनकपुर धाम में आज भी वह स्थान मौजूद है जहां पर राजा जनक को माता सीता का प्रापत्य हुआ था। सीता जयंती और विवाह पंचमी के अवसर पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पर आते हैं और विधि विधान से माता सीता की पूजा अर्चना करते हैं। मंदिर में 1सालो भर अखंड कीर्तन चलता रहता है. 24 घंटे सीता-राम नाम का जाप यहां लोग करते हैं। साल 1967 से लगातार यहां अखंड कीर्तन चल रहा है।वर्तमान में राम तपेश्वर दास वैष्णव इस मंदिर के महंत हैं. वे जानकी मंदिर के 12वें महंत हैं। परंपरानुसार अगले महंत का चुनाव वर्तमान महंत करते रहे हैं। महंत राम तपेश्वर दास वैष्णव तीसरे महंत हैं, जिनका चुनाव इस प्रकिया के तहत किया गया है। 10वें मंहत से पहले मंदिर के प्रमुख का चुनाव अलग विधि से किया जाता था और धर्मज्ञानी को इस पद पर बिठाया जाता था। राम-जानकी विवाह मार्गशीर्ष के शुक्लैपक्ष की पंचमी तिथि के दिन हुआ था, इस दिन को श्रीराम पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। हर साल धूमधाम से राम-जानकी विवाहोत्साव मनाया जाता है। यहां नेपाल और भारत के अलावा अन्यथ देशों से भी भक्तध दर्शन करने आते हैं। भगवान राम की जन्महभूमि अयोध्याा से हर साल राम बारात जनकपुर के लिए रवाना होती है। विवाह पंचमी के दिन श्री सीताराम विवाह महोत्सव कार्यक्रम को संपन्न कराने तिरुपति बालाजी से लगभग 40 वैदिक ब्राह्मणों की टीम सीधे जनकपुर पहुंचती है। जानकी मंदिर के आसपास 115 सरोवर और कुंड हैं, जिसमें से गंगा सागर, परशुराम सागर एवं धनुष सागर सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। जानकी मंदिर की बायीं ओर अवस्थित नण्य एवं भव्य विवाह मंडप, सीताराम के मूल विवाह मंडप ’मणि मंडप‘ से करीब दो किलोमीटर पर हैं, जिसके निर्माण में महन्थ नवलकिशोरदास जी की प्रेरणा है। वैसे उन्होंने ’मणि-मंडप‘ में ’विवाह मंडप‘ बनाने की तैयारी आरंभ कर दी थी किन्तु उनकी आकस्मिक मृत्यु हो जाने पर महन्थ रामशरणदासजी के प्रयास से नेपाल नरेश ने उस विवाह मंडप को बनवाया।उसमें सीताराम के माता पिता के साथ ही श्रीराम एवं सीता के क्रमशः सहचर चारूशीलाजी तथा चन्द्रकलाजी प्रसादाजी की विशाल और भव्य प्रतिभाएं हैं किन्तु देवी-देवताओं की छोटी-छोटी। मंडप के चारों ओर चार छोटे-छोटे ’कोहबर‘ हैं जिनमें सीता-राम, माण्डवी-भरत, उर्मिला-लक्ष्मण एवं श्रुतिकीर्ति-शत्रुध्न की मूर्तियां हैं। राम मंदिर यहां के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है, जिसे गोरखा जनरल अमर सिंह थापा ने 1700 साल पहले बनवाया था। यहां राम नवमी और दशहरे पर भारी संख्या में भक्तोंर का तांता लगा रहता है।राम-मंदिर के विषय में जनश्रुति है कि अनेक दिनों तक सुरकिशोरदासजी ने जब एक गाय को वहां दूध बहाते देखा तो खुदाई करवायी जिससे श्रीराम की मूर्ति मिली। महंत ने वहां एक कुटिया बनाकर, उसका प्रभार एक संन्यासी को सौंपा, इसलिए अद्यपर्यन्त उसके राम मंदिर के महन्थ संन्यासी ही होते हैं जबकि वहां के अन्य मंदिरों के वैरागी हैं। दोला भीमसेन मंदिर मुख्यी शहर जनकपुर से करीब 107 किमी दूर स्थित है और भीम को समर्पित करते हुए बनाया गया है। महाभारत के पात्रों में से एक पांडवों में भीम युधिष्ठिर से छोटे दूसरे नंबर के पाडंव थे। इस मंदिर की खास बात यह है कि इस पर छत नहीं है। यहां भीम के अलावा मां भगवती, और भगवान शिव की प्रतिमा भी स्था पित हैं। जनकपुर में अनेक कुंड हैं यथा-रत्ना सागर अनुराग सरोवर, सीताकुंड इत्यादि। ’धनुखा‘ जनकरपुर से 40 किमी दूर स्थित है, जिसे धनुष सागर के नाम से जाना जाता है। मान्यदता है कि जब भगवान राम ने शिव जी के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई वह तीन टुकड़ों में टूट गया। इस धनुष का एक हिस्सा उड़कर स्वर्ग पहुंचा। दूसरा हिस्सा पाताल में जा गिरा, जिसके ठीक ऊपर विशाल धनुष सागर है और तीसरा हिस्सा यहां जनकपुर के पास आ गिरा। जिसे आज धनुषधाम मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहां जाता है कि वहां प्रत्येक पचीस तीस वर्षो पर धनुष की एक विशाल आकृति बनती है जो आठ-दस दिनों तक दिखाई देती है।मंदिर से कुछ दूर ’दूधमती‘ नदी के बारे में कहा जाता है कि सीता जुती हुई भूमि की कुंड से उत्पन्न शिशु सीता को दूध पिलाने के उद्देश्य से कामधेनु ने जो धारा बहायी, उसने उक्त नदी का रूप धारण कर लिया। रत्नासागर मंदिर लुम्बिनी में स्थित है। यह मंदिर भगवान और सीता माता को समर्पित है। यह विशाल मंदिर चारों ओर से खूबसूरत बगीचे और एकन पवित्र जलस्रोत रत्नाै सागर से घिरा हुआ है। इसलिए इस मंदिर का नाम रत्नाद सागर मंदिर रखा गया है। लुंबिनी असल में गौतम बुद्ध की जन्म स्थली है। यह स्थान बौद्ध धर्म का प्रमुख स्थल है। गंगासागर विशाल और पवित्र झील है।यह गंगासागर जनकमहल के करीब स्थित है। धनुष सागर और रत्नाह सागर के अलावा यह पवित्र जलस्रोत मानी जाती है। इसके निकट ही 70 साल पुराना पुस्काालय स्थित है। यहां दूर-दूर से लोग आते हैं। सीताराम के संबंध से भारत एवं नेपाल के श्रद्धालुगण एक-दूसरे को अलग अलग देशों के नहीं समझते। जनकपुर तो दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंध का केन्द्रबिन्दु या नाभिस्वरूप है।रामायण सर्किट योजना पहले चरण में अयोध्या से जनकपुर के बीच अंतर्राष्ट्रीय बस सेवा शुरू की गई है जो गोपालगंज के रास्ते एनएच 28 से भारत और नेपाल की पौराणिक रिश्ते को प्रगाढ़ कर रही है। अब माता सीता के मायके और ससुराल की दूरी कम करने की दिशा में राज्य सरकार बैकुंठपुर के सत्तर घाट में गंडक नदी पर 300 करोड़ की लागत से महासेतु का निर्माण करा रही है। पुल निर्माण का काम अंतिम चरण में है। मई तक इसका निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा। केन्द्र सरकार ने दोनों देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय और पौराणिक रिश्ते को और मजबूत करने के लिए राम-जानकी मार्ग के विस्तार के लिए स्वीकृति देते हुए कार्य की शुरूआत कर दी है। इसके तहत जिले में 11 किमी लंबी नई फोरलेन सड़क का निर्माण किया जाएगा। इसके लिए सर्वे और जमीन का अधिग्रहण भी कर लिया गया है। सीवान, गोपालगंज और पूर्वी चंपारण को रामायण सर्किट से जोड़ने वाली 83.24 किमी लंबी सड़क की चौड़ीकरण पर 1285 करोड़ की राशि खर्च हो रही है। ईएमएस/25 नवम्बर2025