दिल्ली में सब लोग रहते हैं। राष्ट्र के अध्यक्ष, नौकरशाह, जनता , जज- सभी। वहीं से देश संचालित होता है और वह दिल्ली प्रदूषण में डूबीं हुई है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता कहती है कि यह प्रदूषण पहले की सरकार की देन है। कितनी भोली है या यह भी कह सकते हैं कि बहुत शातिर हैं। वर्तमान सरकार अपनी समस्याओं को पूर्ववर्ती सरकार पर डाल कर जनता को बेवकूफ बनाती रहती है। वह यह जानती है कि समस्याओं का कारण कोई एक सरकार नहीं है। प्रदूषण कोई एक दिन में दिल्ली को घेर नहीं लिया। वह धीरे-धीरे बढ़ा। इसकी वजह है हमारी नीतियां और विकास का माडल। आजादी के बाद केंद्रीकरण की जो नीतियां अपनाई, उसका कुल नतीजा है भीषण प्रदूषण। हमने देश के संसाधनों को तथाकथित नीतियों के माध्यम से बड़े बड़े शहरों के कल्याण में लग गये और गांव और कस्बों को खाली कर दिया। नतीजा हुआ है कि गांव और कस्बों से लाखों लोग रोजगार, सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य की खोज में महानगर आने लगे। बड़े बड़े शहर अपनी प्राकृतिक क्षमता से अधिक आबादी को झेल रहे हैं।हमलोगों ने बिहार चुनाव में देखा। हजारों लोगों को स्पेशल ट्रेन में भर कर लोगों को बिहार लाया गया और जब चुनाव खत्म हुआ तो ये बिहारवासी पुनः बड़े बड़े महानगर जाने के लिए मारामारी करने लगे। बिहार- चुनाव में ‘ पलायन ‘ को एक मुद्दा बनाया गया, लेकिन इस पर गंभीर चर्चा नहीं हुई। सभी दलों ने दावा किया कि वे पलायन को रोकेंगे, लेकिन पलायन रोकने का खाका प्रस्तुत नहीं किया। जो नीतियां देश में चल रही हैं, उससे पलायन और बढ़ेगा, रूकने का तो कोई सवाल नही है। जिन्होंने देश चलाया , उन्हें लगा देश का विकास ट्रिक्ल डाउन थ्योरी पर होगा। यानी बूंद बूंद कर विकास दिल्ली से नीचे उतरेगा। युवा चिंतक और लेखक सुकांत कुमार ने इन समस्याओं के निदान के लिए पब्लिक पालिका की परिकल्पना की है। उनका कहना है कि देश का वास्तविक विकास ट्रिक्ल डाउन थ्योरी से नहीं, बल्कि ‘ रेनफाल थ्योरी के आधार पर होना चाहिए यानी रिस रिस कर बूंद- बूंद विकास नहीं होगा, बल्कि हर जगह एक तरह से विकास होगा। कोई गैर बराबरी नहीं। उन्होंने लिखा है -” पब्लिक पालिका इस समस्या को एक अनोखे तरीके से हल करती है। इसका मूल सिद्धांत है—स्थानीयकरण। जब गाँवों और छोटे शहरों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, रोज़गार, छोटे उद्योग और नागरिक सेवाएँ स्थानीय स्तर पर संगठित होंगी, तब बड़ी संख्या में लोगों को महानगरों की ओर पलायन करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। इससे शहरों का घनत्व स्वाभाविक रूप से घटेगा, और प्रदूषण का दबाव अपने आप कम हो जाएगा। दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति। आज एक आम नागरिक को साधारण कामों के लिए भी लंबी दूरी तय करनी पड़ती है—बैंक, अस्पताल, कार्यालय, बाज़ार, विद्यालय, सरकारी दफ्तर। पब्लिक पालिका इन सेवाओं को ही स्थानीय बनाती है। जब जीवन के मूलभूत काम पैदल दूरी या छोटी यात्राओं में पूरे होने लगेंगे, तो ट्रैफिक का बोझ 20–30% तक कम हो सकता है। कम ट्रैफिक का मतलब कम धुआँ, कम जाम, और स्वच्छ हवा। इसके अतिरिक्त, पब्लिक पालिका स्थानीय निकायों को वास्तविक निर्णय शक्ति देती है—स्थानीय वायु गुणवत्ता निगरानी, कचरा प्रबंधन, हरित क्षेत्र, जल संरक्षण, और सामुदायिक परिवहन जैसे विषयों पर वे तेज़ी से निर्णय कर सकते हैं। यही वह विकेंद्रीकरण है जो प्रदूषण जैसी मूलभूत समस्याओं को जड़ से संबोधित करता है। संक्षेप में, पब्लिक पालिका केवल एक शासन मॉडल नहीं है—यह भारत के शहरी और ग्रामीण जीवन के संतुलन को पुनर्स्थापित करने का एक शक्तिशाली माध्यम है। जब अवसर और सुविधाएँ छोटे स्थानों में उपलब्ध होंगी, तब बड़े शहर साँस ले सकेंगे, और आने वाली पीढ़ियाँ स्वच्छ भारत का अनुभव कर सकेंगी। ईएमएस/ 26 नवम्बर 25