राष्ट्रीय
28-Nov-2025
...


बेंगलुरु,(ईएमएस)। कर्नाटक में सत्ता के ढाई साल पूरे होने पर मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस के भीतर चल रहा तनिहित संकट अब खुलकर सड़क पर आ गया है। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के समर्थक जातीय संगठन एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं और दोनों पक्ष पार्टी हाईकमान को खुली चेतावनी दे रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक संसद के शीतकालीन सत्र (1 दिसंबर से) शुरू होने से पहले इस विवाद को सुलझाने की कोशिश तेज हो गई है। माना जा रहा है कि मई 2023 में हुई कथित “सीक्रेट डील”(ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला) ही मौजूदा तनाव की जड़ है।कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पहले ही दोनों नेताओं को दिल्ली बुलाकर बैठक करने के संकेत दे चुके हैं। सिद्धारमैया ने कहा, अगर बुलाया जाएगा तो जरूर जाऊंगा। वहीं डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार का बयाना था, सीएम और मैं मिलकर चर्चा करेंगे, फिर जाएंगे। पहले 28-29 नवंबर को दिल्ली में बैठक की चर्चा थी, लेकिन आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। दूसरी तरफ वोक्कलिगा समुदाय के संगठन भी पीछे नहीं हैं। वोक्कलिगा संघ ने पार्टी से अपील की है कि डीके शिवकुमार को तुरंत मुख्यमंत्री बनाया जाए। संघ के अध्यक्ष श्रीनिवास ने कहा, “शिवकुमार दिन-रात बिना थके पार्टी के लिए काम कर रहे हैं, वे इसके हकदार हैं। अगर उन्हें मौका नहीं मिला तो संतों के मार्गदर्शन में पूरे समुदाय के साथ बड़ा आंदोलन करेंगे।” पूर्व अध्यक्ष बी केंचप्पागौड़ा ने और सख्त लहजे में कहा, “अगर शिवकुमार को अनुचित तरीके से दरकिनार किया गया तो अगले चुनाव में कांग्रेस को समुदाय सबक सिखाएगा।” कर्नाटक स्टेट फेडरेशन ऑफ बैकवर्ड क्लास कम्युनिटीज (केएसएफबीसीसी) ने साफ चेतावनी दी है कि अगर सिद्धारमैया को हटाने की कोशिश हुई तो इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा। अध्यक्ष केएम रामचंद्रप्पा ने कहा, “जो लोग जाति जनगणना के खिलाफ हैं, वही सीएम को हटाने पर तुले हैं। अहिंदा (अल्पसंख्यक-ओबीसी-दलित) समुदाय चुप नहीं बैठेगा। धमकियां नई नहीं हैं, आजादी के बाद से चल रही हैं, लेकिन हम डरने वाले नहीं हैं।” गुरुवार को भी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपना सरकारी कामकाज जारी रखा, लेकिन एक दिन पहले बुधवार को उन्होंने अपने विश्वस्त माने जाने वाले वरिष्ठ नेताओं-विधायकों से बंद कमरे में लंबी बैठक की। इसमें गृह मंत्री जी परमेश्वर, पीडब्ल्यूडी मंत्री सतीश जरकिहोली, राजस्व मंत्री कृष्णा बायरे गौड़ा (रिपोर्ट में नाम नहीं लेकिन आमतौर पर शामिल रहते हैं), एचसी महादेवप्पा, के वेंकटेश और पूर्व मंत्री केएन राजन्ना जैसे अहिंदा खेमे के दिग्गज शामिल थे। कुल मिलाकर कर्नाटक कांग्रेस ढाई साल के फॉर्मूले पर बुरी तरह उलझ गई है। दोनों तरफ के जातीय संगठन सड़क पर उतर आए हैं और हाईकमान पर दबाव बना रहे हैं। आने वाले दो-तीन दिन में दिल्ली से जो भी फैसला आएगा, वह न सिर्फ कर्नाटक बल्कि पूरे दक्षिण भारत की कांग्रेस राजनीति की दिशा तय करेगा। वीरेंद्र/ईएमएस/28नवंबर2025