लेख
08-Dec-2025
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भारत में इंडिगो द्वारा पिछले एक सप्ताह में हजारों फ्लाइट कैंसिल कर दी गई। दिल्ली, श्रीनगर, हैदराबाद, बेंगलुरु, अहमदाबाद सहित अन्य एयरपोर्ट में अभी तक हजारों फ्लाइट कैंसिल हो चुकी हैं। एक दिन पहले ही इंडगो एयरलाइन ने 650 से ज्यादा उड़ाने रद्द कर दी थीं। देश के सभी एयरपोर्ट में मारामारी मची हुई है। देसी और विदेशी यात्री एयरपोर्ट पर परेशान हो रहे हैं। उनका सामान उन्हें वापस नहीं मिल रहा है। फ्लाइट कैंसिल होने की सूचना उन्हें समय पर नहीं दी गई। जो यात्री विमानतल के अंदर थे, उनकी सुख-सुविधा का ध्यान भी नियमानुसार इंडिगो ने नहीं रखा। यात्रियों में महिलाएं और बच्चे बुरी तरह से परेशान होते रहे। बच्चों को पीने के लिए दूध नहीं मिला। महिलाओं को सैनिटरी पेड नहीं मिले। 24 घंटे से ज्यादा हवाई यात्री विमानतलों पर कैद रहे। उनको सुनने वाला कोई नहीं था। उन्हें विमानतल पर खाना नहीं मिला। इससे बड़ी अव्यवस्था क्या हो सकती थी। इंडिगो एयरलाइंस अपनी जिम्मेदारी से लगातार भागती रही। अन्य एयरलाइन कंपनियों ने इसका भरपूर फायदा उठाया। 40,000 से लेकर 100000 रूपये तक में टिकट बेची गई। सरकार चुपचाप तमाशा देखती रही। यात्री परेशान होते रहे। पिछले एक सप्ताह से भारत के विमानतलों पर जिस तरह से यात्री परेशान हो रहे हैं, उनका आर्थिक शोषण किया जा रहा है, उन्हें शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना दी जा रही है। इसके बाद भी सरकार और सुप्रीम कोर्ट जिस तरह से विमानन कंपनी इंडिगो के सामने आत्मसमर्पण करते हुए दिख रहे हैं, उसको लेकर यात्रियों में भारी गुस्सा है। हर कोई अपनी जवाबदारी से बच रहा है। हवाई जहाज के यात्रियों को उनके भाग्य भरोसे छोड़ दिया गया है। सरकार ने चार दिन बाद इंडगो एयरलाइन कंपनी से कहा, वह यात्रियों के टिकट के पैसे रविवार की शाम तक वापस कर दे। सरकार ने कारण बताओ नोटिस देकर इति श्री कर ली। हजारों की संख्या में यात्रियों की फ्लाइट कैंसिल हुई थी। कई को विदेश जाने की फ्लाइट नहीं मिली। हवाई यात्रियों को तरह-तरह की परेशानियां अभी भी हो रही हैं। देसी और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर इसका असर पड़ा है। डीजीसीए के अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए हैं। उड्डयन मंत्रालय भी इंडिगो एयरलाइंस के सामने बेबस नजर आ रहा है। जिस तरह की स्थिति भारत में बनी है, उसको लेकर सारी दुनिया के देशों में भारत ओर एयरलाइन कंपनियों की सेवाओं को लेकर तरह-तरह की चर्चा होने लगी है। सारे विश्व में भारत की छवि धूमिल हो गई है। भारत में नियम-कानून और कानून व्यवस्था को लेकर किस तरह की स्थिति है इसे सारी दुनिया के देशों ने जान लिया है। 50000 से ज्यादा देसी और विदेशी यात्री पिछले एक सप्ताह से परेशान होकर यहां से वहां भटक रहे हैं। इतने गंभीर मामले को भी सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनने से मना कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने इस मामले को यह कहते हुए सुनने से मना कर दिया है, भारत सरकार पहले ही एक्शन ले चुकी है। इस मामले की सुनवाई वह 10 दिसंबर को करेंगे। सरकार ने क्या एक्शन लिया है यह भी सुप्रीम कोर्ट ने जानने की जहमत नहीं उठाई। मुख्य न्यायाधीश की यह टिप्पणी, वह एयरलाइन नहीं चला सकते हैं। इससे भारत के लोगों को बड़ी निराशा हुई है। नागरिकों का मानना था, कि सुप्रीम कोर्ट स्वयं संज्ञान लेकर इस मामले की सुनवाई करता। यात्रियों को फौरी तौर पर राहत देने के लिए कोई आदेश करता। वह तो सुप्रीम कोर्ट ने किया नहीं। जब यात्रियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका लगाई गई। इंडिगो की फ्लाइट कैंसिल होने के कारण जिन यात्रियों को परेशानी हो रही है। उन्हें तत्काल राहत देने के निर्देश केंद्र सरकार और विमानन कंपनी को दिए जाएं। नियमों का पालन एयरलाइन कंपनी से कराया जाए। यात्रियों से जिस तरह का मनमाना किराया वसूल किया जा रहा है, उस पर तत्काल रोक लगाई जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने याचिका की तत्काल प्रारंभिक सुनवाई करने से ही इनकार कर दिया। इस कारण यात्रियों को कहीं से भी कोई राहत मिलती हुई दिख नहीं रही है। यात्रियों को तत्काल राहत की आवश्यकता थी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और कंपनियों के भरोसे हजारों यात्रियों को उन्हीं के भरोसे छोड़ दिया, जो उन्हें तकलीफ दे रहे हैं। पिछले एक सप्ताह से यात्री परेशान हैं। उनके साथ छोटे बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं भी हैं। जो बुरी तरह से परेशान हैं। सरकार और विमानन कंपनियां गंभीरता के साथ यात्रियों की परेशानी का निराकरण कर रही होती। यात्रियों को राहत पहुंचाने का कोई प्रयास कर रही होती। तो यात्रियों को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में याचिका लगाने की जरूरत नहीं होती। जिस तरह से न्यायपालिका ने मामले को सुनने से इनकार किया है। इसके बाद यह धारणा बनने लगी है। न्यायपालिका ऐसे किसी भी मामले की सुनवाई नहीं करना चाहती है। जिससे सरकार को कोई परेशानी हो। सुप्रीम कोर्ट जैसी सर्वोच्च संस्था यदि नागरिकों को सरकार और कार्यपालिका के भरोसे छोड़ देगी तो ऐसी स्थिति में न्यायपालिका की साख और न्यायपालिका के ऊपर आम नागरिकों का जो विश्वास होता है वह विश्वास भविष्य में देखने को नहीं मिलेगा। देश में अराजकता की स्थिति बनेगी। कार्यपालिका और विधायिका जिस तरह से अपनी जवाबदेही से बच रही है, न्याय पालिका मे भी जब नागरिकों के अधिकारों की रक्षा नहीं होगी, ऐसी स्थिति में न्याय पालिका की भूमिका भी कोई मायने नहीं रखेगी। वर्तमान स्थिति को देखते हुए यही कहा जा सकता है। आगे चलकर कानून व्यवस्था की स्थिति भी प्रभावित हो सकती है। लोग अपने तरीके से न्याय पाने की कोशिश करेंगे। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को इस तरह के मामले में स्वयं संज्ञान लेकर कार्रवाई करने की आशा की जाती है। हवाई यात्री भारी भरकम किराया देकर यहां से वहाँ यात्रा करते हैं। उनके समय की कीमत होती है। हजारों की संख्या में बूढ़े, बच्चे और महिलाएं यहां से वहां कई दिनों से मारे-मारे फिर रहे हैं। सरकार और विमानन कंपनियां अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रही हैं। न्यायपालिका भी हजारों यात्रियों को उनके ही भरोसे छोड़कर, पल्ला झाड़ लेगी, तो इस स्थिति में भविष्य में क्या हो सकता है। इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। ईएमएस / 08 दिसम्बर 25