हमारे सनातन धर्म के ग्रन्थों में अनेक पतिव्रताओं का उल्लेख प्राप्त होता है। तत्कालीन समाज में उन पतिव्रताओं का महत्वपूर्ण स्थान है और वे नारी समाज में सम्माननीय दृष्टि से पूजनीया हैं। अरुन्धती, अहल्या, अनसूया, माता पार्वती, माता लक्ष्मी, सावित्री आदि अनेक महिलाएँ हैं, जिन्हें उत्तम पतिव्रता का सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। इनमें सर्वश्रेष्ठ कौन है? इस विषय पर बहस चल रही थी। देवताओं ने देवर्षि नारद को इस विवादित विषय के समाधान के लिए नियुक्त किया कि वे इस विषय पर अपना निर्णय दें कि सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता कौन है? अपने इस लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए नारदजी सर्वप्रथम कैलास पर्वत पर पहुँचे। वहाँ शिवजी समाधि में लीन थे। माता पार्वती ने नारदजी का स्वागत किया और उन्हें मोदक का प्रसाद दिया। नारदजी ने मोदक के स्वाद की प्रशंसा की। प्रशंसा सुनकर पार्वतीजी को गर्व हुआ। चर्चारत नारद ने यह भी कहा कि माता अनसूया का स्वागत श्रेष्ठ है। वे महान् पतिव्रता हैं। यह सुनकर पार्वतीजी को मन ही मन ईष्र्या होने लगी। वे शंकरजी के पास गईं और उनसे पूछा कि मैं तो आपकी सेवा में हमेशा लगी रहती हूँ। आपके सम्पूर्ण कार्य बड़ी श्रद्धापूर्वक, प्रेमभाव से करती हूँ। फिर नारदजी ने ऐसा क्यों कहा? इस प्रश्न का उत्तर दीजिए। शिवजी ने पार्वतीजी से कहा कि समय आने पर तुम अनसूयाजी की परीक्षा ले लेना। इसके पश्चात् नारदजी माता लक्ष्मीजी के पास पहुँचे। वहाँ लक्ष्मीजी विष्णुजी की सेवा में रत थीं। उनसे भी नारदजी ने चर्चा की। लक्ष्मीजी ने उनका यथोचित स्वागत किया। नारदजी ने उनके सामने भी अनसूया की प्रशंसा की और उनके पातिव्रत्य को उत्तम बतलाया। स्वाभाविक था कि महिला स्वभाववश लक्ष्मीजी के मन में अनसूया के प्रति ईष्र्याभाव जाग्रत हुआ। वे भी अनसूया जी की प्रशंसा सुनकर विचलित हो गई। वे भी विष्णुजी के पास पहुँची और उन्हें इस विषय में उचित निर्णय लेकर वास्तविकता का पता लगाने का आग्रह करने लगी। अब नारदजी सरस्वतीजी के पास पहुँचे। वहाँ भी उन्होंने अनसूयाजी के आतिथ्य की प्रशंसा की, जिसे सुनकर सरस्वतीजी को भी ईष्र्या होने लगी। एक दिन पार्वतीजी, लक्ष्मीजी और सरस्वतीजी इसी विषय पर चर्चा करने के लिए एक स्थान पर एकत्रित हुईं। उन सभी ने चर्चा कर के यह निर्णय लिया कि हम अपने-अपने पतियों से यह निवेदन करें कि वे सभी अनसूयाजी के पातिव्रत्य की विशेषता की जानकारी प्राप्त करें। वे तीनों घर पहुँची और उन्होंने अपने पतियों महेश, विष्णु और ब्रह्माजी को अनसूयाजी की परीक्षा लेने को कहा। उन तीनों को अपनी पत्नियों की बात मानना पड़ी। ब्रह्मा, विष्णु और महेश अत्रि ऋषि के आश्रम में काश्ीा नगरी के ब्राह्मण का रूप धारण कर पहुँचे। अत्रि ऋषि ध्यानावस्था में थे। अनसूयाजी ने तीनों का स्वागत किया। उन तीनों को भोजन के लिए निमन्त्रित किया। ब्राह्मणों ने कहा कि वे अपने साथ कुछ सामग्री लाए हैं उसी से भोजन बनाकर वे लाएं तो वे तीनों भोजन कर लेंगे। अनसूयाजी ने देखा कि वे कुछ पत्तियाँ और कंकड़ पत्थर भोजन बनाने के लिए लाए हैं। उन्होंने उससे भोजन बनाया और तीनों अतिथियों को परोसा। उन तीनों ब्राह्मणों ने कहा कि वे यह भोजन तभी ग्रहण करेंगे, जब वे (अनसूयाजी) निर्वस्त्र होकर भोजन परोसेंगी। अनसूयाजी ने यह बात अपने पति अत्रिजी को बतलाई तो वे समझ गए कि ये तीनों ब्रह्मा, विष्णु और महेश हमारे यहाँ पधारे हैं। वे हमारे पिता जैसे हैं, पूज्य हैं। उन्होंने अनसूयाजी को पानी का कमंडल दिया और कहा कि जाओ इस जल को उन तीनों पर छिड़क दो और उन्हें भोजन करा दो। जैसे ही अनसूयाजी ने कमंडल से उन तीनों ब्राह्मणों पर जल छिड़का वे तीनों नन्हें शिशु के रूप में परिवर्तित हो गए। यह अनसूयाजी के पतिव्रता धर्म का प्रभाव था। उन्होंने उन तीनों बालकों को स्तनपान करा कर उनकी क्षुधा शान्त की और बड़े स्नेह से उन्हें वस्त्र पहनाकर झूले में सुला दिया। जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश घर पर नहीं पहुँचे तो उनकी पत्नियों को चिन्ता सताने लगी। वे तीनों अपने पतियों को खोजते हुए महर्षि अत्रि के आश्रम पहुँची। माता अनसूया ने कहा कि मेरे यहाँ तीन ब्राह्मण काशी से पधारे थे। वे पालने में सो रहे हैं। यदि वे आपके पति हों तो आप उन्हें पहचान कर ले जाएं। तीनों पत्नियों ने कहा कि वे इन तीनों बालकों में से अपने-पति पति को नहीं पहचान सकेंगी। अनसूयाजी ने उन तीनों बालकों के स्वरूपों को परिवर्तित कर दिया। माता पार्वती, माता लक्ष्मी और माता सरस्वती ने अपने अपने पति को पहचान लिया। जब तीनों ने माता अनसूया के पातिव्रत्य की महानता को स्वीकार किया और अनसूया माता के चरण स्पर्श कर अपने पतियों के साथ विदा ले ली। जाने से पूर्व अनसूयाजी ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश से वर माँगा कि आप मेरे यहाँ पुत्र रूप में जन्म लें। तीनों देवताओं ने दत्तात्रय, दुर्वासा और चन्द्रमा के रूप में पुत्र बनकर जन्म लिया। इस कथा प्रसंग से यह शिक्षा प्राप्त होती है कि वर्तमान समय में महिलाओं तथा बालिकाओं के साथ जो चारित्रिक अत्याचार हो रहा है, वह नितान्त दंडनीय अपराध है। चलचित्रों में सभी नूतन प्रकार के वस्त्र धारण करने वाली महिला पात्र को देखते हैं वो उनके पात्र और कहानी की माँग के अनुसार होते हैं अतरू उन्हें उनको धारण करना अतिआवश्यक हो जाता है। ये सभी कलाकार अपने कत्र्तव्य स्थल से जाने के बाद सामान्य परिधान में ही रहती हैं, जो सभी के लिए अनुकरणीय हैं। फैशन करें पर अपनी-अपनी वय तथा सामाजिक प्रतिष्ठा का ध्यान भी रखें। यह परामर्श कटु अवश्य है किन्तु यदि स्वस्थ मस्तिष्क से सोचे तो शायद महिला वर्ग को अवश्य सार्थक प्रतीत होगा। संसद की महिला सदस्यगण, उच्चपदों पर आसीन महिलाएं, पुलिस और सैन्य अधिकारी, जिलाधीश, सचिव स्तर पर पदस्थ महिलाएँ, शिक्षा क्षेत्र में उच्च पदों पर आसीन महिलाएँ नई पीढ़ी के जीवन में आदर्श हो सकती हैं। ईएमएस/15/12/2025