ढाका,(ईएमएस)। बांग्लादेश की राजधानी ढाका में एक बार फिर हिंसा और अराजकता का माहौल गहराता जा रहा है। मोहम्मद यूनुस की नीतियों और प्रशासनिक कमजोरियों का असर अब साफ तौर पर जमीन पर दिखने लगा है। राजधानी ढाका समेत देश के कई हिस्सों में उपद्रव, हत्याएं और फायरिंग की घटनाएं आम होती जा रही हैं। धानमंडी-32 इलाके में उस्मान हादी की मौत के बाद हालात और तनावपूर्ण हो गए हैं। यह वही इलाका है, जो देश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान के पैतृक आवास के लिए जाना जाता है। गुरुवार रात बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतरे, जिससे माहौल और भड़क उठा। बीते 15 महीनों में करीब 5,000 हत्याओं के मामले दर्ज किए जा चुके हैं, जबकि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक मानी जा रही है। हालात का सबसे ज्यादा असर हिंदू और ईसाई जैसे अल्पसंख्यक समुदायों पर पड़ रहा है, जो लगातार कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं। देश का बड़ा हिस्सा इस समय कट्टरपंथी गुटों और संगठित अपराधी नेटवर्क के कब्जे में जाता दिख रहा है। अवैध हथियारों की भरमार इस कदर है कि अपराधी खुलेआम गोलियां चला रहे हैं। पुलिस और प्रशासन की पकड़ कानून-व्यवस्था पर ढीली पड़ती नजर आ रही है। यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब फरवरी 2026 में राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव कराने का ऐलान किया गया है। लेकिन चुनाव से पहले ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, अगस्त 2024 में कई पुलिस थानों से लूटे गए हथियार आज भी अपराधियों के पास हैं। इसके अलावा सीमावर्ती इलाकों से अवैध तस्करी के जरिए हथियारों की सप्लाई लगातार जारी है, जिससे हिंसा और बढ़ रही है। हाल के महीनों में कई सनसनीखेज घटनाओं ने हालात की गंभीरता को उजागर किया है। पुराने ढाका में एक व्यापारी की हत्या, राजधानी में एक राजनीतिक मंच के प्रवक्ता की गोली मारकर हत्या, पबना में दिनदहाड़े एक नेता की मौत और चटगांव में कारोबारी के घर पर अंधाधुंध फायरिंग ने आम लोगों में दहशत फैला दी है। हालात ऐसे हो गए हैं कि कुछ उम्मीदवारों ने अपनी जान के खतरे का हवाला देकर चुनाव लड़ने से ही इनकार कर दिया है। सरकार और सुरक्षा एजेंसियां लगातार यह दावा कर रही हैं कि स्थिति नियंत्रण में है और अवैध हथियारों के खिलाफ अभियान चलाए जा रहे हैं। बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां और बरामदगी भी दिखाई जा रही हैं, लेकिन पूर्व अधिकारियों और विश्लेषकों का मानना है कि ये प्रयास नाकाफी हैं। अपराधियों के पास अब भी भारी मात्रा में हथियार मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा के लिए हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भले ही मोहम्मद यूनुस की छवि एक उदार और प्रगतिशील नेता की रही हो, लेकिन देश के भीतर हालात उनकी पकड़ से बाहर जाते दिख रहे हैं। बढ़ती हिंसा, कमजोर कानून-व्यवस्था और कट्टरपंथियों का प्रभाव यह सवाल खड़ा कर रहा है कि क्या बांग्लादेश आने वाले चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से करा पाएगा या फिर यह संकट लोकतंत्र के भविष्य के लिए और भी खतरनाक साबित होगा। फिलहाल, पूरा देश डर और अनिश्चितता के साये में खड़ा नजर आ रहा है। वीरेंद्र/ईएमएस 20 दिसंबर 2025