लेख
20-Dec-2025
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राजस्थान में हाल ही में आए एक न्यायिक फैसले ने देशभर में बहस छेड़ दी है। क्या सही न्याय करने पर अब जजों को दंड मिलेगा? एक दर्जन से ज्यादा जजों को लेकर ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिसमें शासन की मंशा के विपरीत यदि किसी जज ने फैसला देने का साहस किया है, तो उसे न्याय करने पर दंड दिया गया है। राजस्थान के एक जज ‎दिनेश गुप्ता ने कानून के दायरे में रहकर राजस्थान सरकार के 1400 करोड़ रूपए का घोटाला उजागर करने वाला फैसला दिया। अदालत के इस फैसले से राजस्थान सरकार नाराज हो गई। रातों-रात जज महोदय का ट्रांसफर जयपुर से व्याबर कर दिया गया। राजस्थान हाईकोर्ट ने जज साहब के फैसले को स्थगित कर देश के सबसे बड़े पूंजीपति को राहत देकर यह साबित कर दिया है, न्यायालय के सामने कौन है, उसको देखकर फैसले दिए जाएंगे। न्याय की देवी की ऑखो से काली पट्टी हटा ली गई है। न्याय एवं समरथ के पक्ष में होगा। भारत में सरकार और पूंजीपतियों के खिलाफ फैसला करने वाले जज अब दंडित होंगे। राजस्थान की सरकार ने छत्तीसगढ़ में कोल खदान को लेकर एक संयुक्त कंपनी बनाई थी। इस कंपनी ने परिवहन के नाम पर अनुबंध के विपरीत राजस्थान सरकार से 1400 करोड़ रुपए की मांग परिवहन के नाम पर की थी। राजस्थान सरकार यह भुगतान करने के लिए तैयार हो गई थी। इसी बीच देश के सबसे बड़े पूंजीपति की कंपनी ने 1400 करोड़ रुपए की राशि का ब्याज भी मांग लिया। कंपनी खुद ही मामले को न्यायालय में ले गई। न्यायालय ने जब सारे एग्रीमेंट का अध्ययन किया, तब न्यायाधीश ने यह सुनिश्चित किया, कि 1400 करोड़ रुपए की जो राशि दी जा रही है, वह अनैतिक और अवैधानिक है। कोर्ट ने राज्य सरकार की मंशा के खिलाफ फैसला सुनाते हुए संयुक्त कंपनी पर 50 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। इससे सरकार और देश के सबसे बडे पूंजीपति दोनों ही नाराज हो गए। खामियाजा जज महोदय को भुगतना पड़ा। यह अकेला मामला नहीं है, बल्कि इसी तरह के कई मामले हाईकोर्ट जजों के साथ पूर्व में हो चुके हैं। ‎जिन जजों ने सरकार की मंशा के विपरीत फैसला देने का साहस किया है, उन जजों को दंड स्वरूप डिमोशन के साथ ट्रांसफर करने के कई मामले सामने आ चुके हैं। जिस जज ने यह साहसिक सही फैसला सुनाया, उसे दंड मिला। जो दोषी था, उसे जजों के ट्रांसफर से न्याय की अनुभूति हुई। सबसे बड़ा सवाल यह है, क्या वर्तमान में जिला कोर्ट और हाईकोर्ट के जज निडर होकर न्याय कर सकते हैं? न्यायपालिका सत्ता के प्रभाव और पूंजीप‎तियों की हैसियत के दबाव में फैसला करेगी। न्यायव्यवस्था लोकतंत्र का वह स्तंभ है जिस पर आम नागरिक का सबसे ज्यादा भरोसा होता है। जब कार्यपालिका और विधायिका पर सवाल उठते हैं, तब जनता की आखिरी उम्मीद अदालत से होती है। राजस्थान के इस मामले में जज ने यह साबित किया। उसने संविधान और दस्तावेजों के आधार पर नियम के अनुसार बिना किसी पक्षपात के, सही निर्णय किया। इसके बाद भी उसे केवल इसलिए दंडित किया गया, कि न्यायालय के निर्णय से राजस्थान सरकार के भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के हितों पर चोट पहुंची। देश के सबसे बड़ी पूंजीपति की कंपनी को जज साहब के फैसले से 1400 करोड़ रुपए का नुकसान होने जा रहा था। जज का आधी रात को ट्रांसफर किए जाने के बाद न्यायपालिका और सरकार की एक कड़वी सच्चाई सामने आई है। ऐसे साहसिक और ईमानदारी वाले फैसले अपवाद क्यों बनते जा रहे हैं? हर न्यायिक निर्णय के बाद जज की सुरक्षा, ट्रांसफर या भविष्य को लेकर चर्चाएं शुरू हो जाती हैं? क्या जज को सरकार और कॉर्पोरेट के हितों के विपरीत न्याय करने की कीमत चुकानी पड़ेगी? अगर हां, तो यह लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक संकेत है। आज देश में कई ऐसे मामले हैं, जहां सालों तक फैसले नहीं आते, फैसले आते हैं तो वह सवालों के घेरे में होते हैं। आम आदमी को लगता है, ताकतवर के लिए न्यायलय में कानून अलग है, कमजोर के लिए अलग न्याय व्यवस्था है। राजस्थान सरकार और हाईकोर्ट का यह फैसला इस धारणा को पुष्ट करता है। वर्तमान में न्यायपालिका की यह तस्वीर अब चिंताजनक है। असल सवाल यह है, ‎जिस जज ने न्याय किया, उसे संरक्षण ‎मिलना था। उसके ‎विप‎रित वर्तमान व्यवस्था क्या जज को न्याय करने दे रही है? क्या राजनीतिक दबाव, मीडिया ट्रायल और सोशल मीडिया का शोर सत्य एवं न्याय के रास्ते में बाधा नहीं बन रहा? अगर न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं होगी, तो संविधान केवल कागज का दस्तावेज बनकर रह जाएगा। जनता स्वयं ‎‎‎निर्णय करने लगेगी। पिछले कुछ वर्षों में न्यायपा‎लिका की भू‎मिका सरकार को संर‎क्षित करने की रही है। न्यायालयों में गरीबों को न्याय के स्थान पर ता‎रीख पर तारीख ‎मिलती है। गरीबों को लूटने का मौका न्याय-व्यवस्था से जुड़े लोग नहीं छोड़ते हैं। सरकार के ‎खिलाफ ‎‎‎निर्णय करने से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज डरने लगे हैं। फैसला करने के स्थान पर टालने और प्रकरणों को कई वर्षो तक लं‎बित रखने का नया चलन न्यायपा‎लिका में शुरु हो गया है। गरीबों एवं मध्यम वर्ग के ‎खिलाफ जो फैसले आ रहें हैं वे उत्पीड़न करने वाले हैं। प‎हले न्याय की देवी की आंखों में काली पट्टी बंधी थी, सुप्रीम कोर्ट ने देवी की ऑंख से काली पट्टी खोल दी है। अब न्यायापा‎लिका से खुली ऑखों से जो फैसले हो रहे है, वह न्यायपा‎लिका को कमजोर कर रहे हैं। न्यायपा‎लिका पर जो‎ विश्वास था वह खत्म होता जा रहा है। अब लोग न्याय पाने के नाम पर डरने लगे हैं। यही वर्तमान का सत्य है। ईएमएस / 20 दिसम्बर 25