(प्रसंगवश आलेख- सुशासन दिवस एवं जन्म दिवस 25 दिसंबर अटल बिहारी वाजपेयी) भारतीय राजनीति के सर्व स्वीकार्य महानायक भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का समग्र व्यक्तित्व और कृतित्व प्रभु श्री राम की मर्यादा, संकल्प शक्ति, कर्म योगी कृष्ण के राजनीतिक कौशल, चातुर्य और आचार्य चाणक्य की दूरदर्शी निश्चयात्मक बुद्धि के आलोक से समन्वित है जिसकी बुनियाद इंसानियत के थर्मामीटर की सर्वोच्च डिग्री तक उनके अंतस में सबके लिए संवेदना, उदात्तता, सहृदयता और राष्ट्रवाद की भाव भूमि पर आधारित है। तेजस्विता के प्रखर सूर्य अटल जी ने सुशासन की आभा से न केवल राष्ट्र का गौरव बढ़ाया वरन विषम से विषम परिस्थितियों में भी आर्थिक विकास और राष्ट्रीय कल्याण की बहुआयामी दीर्घकालीन योजनाएं प्रारंभ की। प्रधानमंत्री के रूप में अटल जी का संपूर्ण कार्यकाल सुशासन के आधार पर अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के उन्नयन के लिए समर्पित था।उनकी दृष्टि में व्यक्ति के सशक्तिकरण का अर्थ है राष्ट्र का सशक्तिकरण और सशक्तिकरण तीव्र सामाजिक बदलाव के साथ तीव्र आर्थिक वृद्धि से किया जा सकता है। भारतीय राजनीति में नए युग का शुभारंभ करने वाले अटल जी के जन्म दिवस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1914 में सुशासन की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए सुशासन दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा करते हुए कहा कि सुशासन किसी भी राष्ट्र की प्रगति की कुंजी है। अटल जी राजनीति में वैचारिक निष्ठा और मूल्यों की पवित्रता के प्रति प्रतिबद्ध थे। इसीलिए उन्होंने सुशासन की बुनियाद रखी ताकि जवाबदेही , उत्तरदायी पारदर्शी, न्याय संगत, कुशल एवं समावेशी शासन की व्यवस्था को साकार किया जा सके। यह व्यवस्था विकासोन्मुखी हो, समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के प्रति समर्पित हो ताकि राष्ट्र की उन्नति में आम आदमी को भी विकास की मुख्य धारा में भागीदारी की अनुभूति का सुखद एहसास हो सके। प्रारंभ से ही हमारी संस्कृति के धवल तत्वों में सुशासन की परिकल्पना का विराट स्वरूप परिलक्षित होता रहा है जो समस्त विश्व को परिवार मानते हुए सबके सुखी, प्रसन्न, स्वस्थ, निरोगी और सबके मंगल की कामना करती है।यहां तक की सभी प्राणियों, पेड़ पौधों, जीव जंतुओं पशु पक्षियों आदि के साथ ही अखिल विश्व के कल्याण की अभिलाषी है। भारतीय ज्ञान परंपरा में आचार्य कौटिल्य ने प्रजा के हित को ही राजा का चरम लक्ष्य निरूपित किया है। प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजा के हित में ही उसका हित समाहित है। अपना हित करने से राजा का हित नहीं होता बल्कि जो प्रजा के लिए हितकर हो उसे करने में ही राजा का हित होता है। अतः प्रजा के लिए राजा की उपलब्धता प्रजा की शिकायतों, समस्याओं के समाधान हेतु बिना किसी बाधा के सहज और सरल होनी चाहिए। मेरे सपनों के भारत में महात्मा गांधी जी जिस राम राज्य की परिकल्पना करते हैं वह सुशासन के बिना अर्थहीन हो जाती है। इसीलिए लोकमान्य तिलक स्वराज्य के साथ सुराज की वकालत करते हैं। वहीं दूसरी ओर सामाजिक क्रांति के अग्रदूत डॉ. आंबेडकर की मान्यता है कि सुशासन की अवधारणा मानवीय गरिमा के सम्मान तथा सामाजिक आर्थिक न्याय की सुरक्षा की सुनिश्चितता के बिना साकार नहीं हो सकती। राज धर्म को सर्वोच्च प्राथमिकता देने एवं उसका पालन करने वाले अटल जी में कभी भी अपने पराये में भेद किए बिना सच कहने का अद्भुत साहस था। वे असहमतियों का सदैव सम्मान करते थे इसीलिए विरोधियों के बीच भी सहज स्वीकार्य थे। अटल जी में सबको साथ लेकर चलने का राजनीतिक कौशल था। उनका विश्वास था कि राजा या शासक के लिए प्रजा प्रजा में भेद नहीं हो सकता। न जन्म के आधार पर, न जाति के आधार पर और न ही संप्रदाय के आधार पर। उनके कार्यकाल में कश्मीर से लेकर पाकिस्तान तक परस्पर संवाद का सिलसिला प्रारंभ हुआ। अलगाववादियों से बातचीत के फैसले पर प्रश्न उठा कि क्या बातचीत संविधान के दायरे में होगी तो उनका जवाब था इंसानियत के दायरे में होगी। अटल जी का विश्वास था कि भारतीय सनातन संस्कृति के आलोक में सुशासन के द्वारा लोक कल्याण को साकार किया जा सकता है। उनका विश्वास था कि यदि दूर दराज के क्षेत्रों में रहने वाले कमजोर, पिछड़े और वंचित वर्ग के लोगों को ज्ञान की रोशनी नहीं मिलती तो देश का विकास अधूरा रह जाएगा। 21वीं सदी ज्ञान की सदी है इसलिए हमें विज्ञान, तकनीकी, चिकित्सा प्रबंधन और मानविकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट शिक्षा केंद्रों की स्थापना कर युवा पीढ़ी को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करना होगा। अतः युवाओं को बौद्धिक ज्ञान के साथ तार्किकता ,राष्ट्रभक्ति, चरित्र निर्माण और मूल्यों की शिक्षा प्रदान करनी होगी। सब पढ़ें सब बड़ें के चमत्कारी उद्घोष वाक्य के साथ सर्व शिक्षा अभियान उनकी सबसे अनोखी पहल थी जिसका उद्देश्य 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना था। अटल जी जानते थे कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है और गांव ही हमारी सभ्यता संस्कृति के सुनहरे अध्याय हैं।इसलिए एक मजबूत और विकसित भारत के निर्माण हेतु भारत की आत्मा को स्पर्श करती हुई प्रत्येक ग्राम पंचायत को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना प्रारंभ की जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सशक्तिकरण हुआ। अटल जी के कुशल नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वर्ण चतुर्भुज मार्ग निर्माण परियोजना समय सीमा में पूर्ण हुई जिससे 8000 करोड रुपए की बचत प्राप्त हुई। अटल जी भविष्य दृष्टा भी थे इसीलिए उन्होंने आम आदमी के कल्याण के लिए अंत्योदय अन्न योजना प्रारंभ की ताकि गरीबों को सस्ता खाद्यान्न उपलब्ध हो सके। हमारे अन्नदाता कृषकों के लिए क्रेडिट कार्ड और फसल बीमा योजना लागू कर हमारी कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में प्राण फूंकने का अद्भुत कार्य किया। देश को सूखा और बाढ़ से मुक्ति दिलाने के लिए राष्ट्र की प्रमुख नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना प्रारंभ की।वरिष्ठ नागरिकों के लिए दादा-दादी बांड योजना,विद्यार्थियों को अध्ययन हेतु सस्ती दरों पर कर्ज के प्रावधान, अमानवीय शोषण के शिकार 37 करोड़ असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना, दुर्घटना एवं स्वास्थ्य बीमा योजना प्रारंभ कर सुशासन के अखिल भारतीय स्वरूप को जनोन्मुखी और सर्वसमावेशी बनाया ताकि विकास के लाभ समाज के सभी वर्गों तक बिना किसी भेदभाव के पहुंच सके। उन्होंने सदैव सामाजिक विषमताओं, विसंगतियों,विद्रूपताओं, अन्याय, अत्याचार और शोषण का प्रबलता से विरोध किया है। वे अपने नाम के अनुरूप अपनी मान्यताओं पर सदैव अटल रहे और बिहारी की तरह दृढ़ता के साथ प्रगतिशील भी। अटल जी ने संस्थागत भ्रष्टाचार के विरुद्ध विधि के राज्य की प्रतिष्ठा की तथा खास और आम के बीच का अंतर समाप्त किया। उन्होंने मर्यादा का उल्लंघन कभी नहीं किया। सत्ता का साकेत पाकर भी बहुत प्रसन्न नहीं हुए और ना ही वनवास प्राप्त होने पर विषादग्रस्त। वे कहते थे कि मैं मृत्यु से नहीं डरता केवल अपयश या बदनामी से डरता हूं। जय विज्ञान का उद्घोष अटल जी के विराट चिंतन और दूरदृष्टि का प्रतीक है जिसे उन्होंने शास्त्री जी के ,जय जवान, जय किसान मंत्र के साथ संयुक्त किया। यह उनकी विज्ञान आधारित समग्र सोच की आवश्यकताओं का दर्शन है। यह संयोग नहीं है कि नित्य नूतन, चिर पुरातन की धारा का विस्तार करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने उसमें एक कदम आगे बढ़कर जय अनुसंधान जोड़ते हुए इस मंत्र की गरिमा का सम्मान और बढ़ाया है। अटल जी ने सामाजिक न्याय मंत्रालय, जनजाति मामलों से संबंधित मंत्रालय और पूर्वोत्तर भारत के विकास हेतु डोनर मंत्रालयों की स्थापना तथा तीन नए राज्यों का निर्माण कर सुशासन और विकास की न्याय संकल्पना को साकार किया है। अटल जी के नेतृत्व में भारत में आर्थिक सुधारों की एक नई श्रृंखला प्रारंभ हुई।उनके कार्यकाल में आर्थिक मंदी के बावजूद भारत में सकल घरेलू उत्पाद की तरह 8% रही। विदेशी मुद्रा का भंडार 1998 में मात्र 12 अरब डालर से बढ़कर 102 अरब डालर हो गया। उन्होंने वित्तीय घाटे को कम करने के उद्देश्य से राजकोषीय उत्तरदायित्व अधिनियम लागू किया। व्यवसाय एवं उद्योगों के संचालन में शासकीय हस्तक्षेप सीमित करने के लिए एक पृथक विनिवेश मंत्रालय गठित किया।उनके कार्यकाल में महंगाई दर मात्र 4% तक ही सीमित रही।उन्होंने आधुनिक दूर संचार प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव करते हुए 1999 में नई दूरसंचार नीति का श्री गणेश किया जिसमें राजस्व हिस्सेदारी व्यवस्था के साथ दूरसंचार कंपनियों के लिए नियत लाइसेंस फीस परिवर्तित करने की नीतिगत पहल थी जिससे उद्योगों को चुनौतियों का सामना करने का आत्मविश्वास प्राप्त हुआ। अटल जी के मानस में सदैव राष्ट्र प्रेम की प्रबल धारा प्रवाहित रहती थी। कारगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन विजय के माध्यम से पाकिस्तानी सेना के घमंड को चूर-चूर कर ऐतिहासिक विजय प्राप्त की वहीं दूसरी ओर विपरीत परिणामों और विकसित राष्ट्रों के आर्थिक बहिष्कार की धमकी की चिंता किए बिना ही परमाणु परीक्षण कर वैश्विक स्तर पर स्वाभिमानी भारत के स्वर्णिम भविष्य की आधारशिला रखी। अटल जी सच्ची राष्ट्रभक्ति के प्रतीक थे।उनका हृदय खंडित भारत का मानचित्र देखकर व्यथित होता था। वे कहते थे आजादी अभी अधूरी है, रावी की शपथ न पूरी है। हमारी एकता अनेकता में ऐसे परिलक्षित होनी चाहिए जैसे दूध में पानी। हमें आपस में मिलकर ही रहना चाहिए इसी में राष्ट्र का कल्याण है। सर पर बरसे यदि ज्वालाएं, निज हाथों से हंसते-हंसते, आग लगाकर चलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा। (पूर्व आई.ए.एस. एवं मोटिवेशनल स्पीकर) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 24 दिसम्बर /2025