लेख
29-Jan-2023
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आजादी बाद भारत के अब तक के 75 सालों में प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं उनकी बेटी स्वर्गीय इंदिरा गांधी के अलावा किसी भी प्रधानमंत्री ने शासनकाल की तीसरी पारी में प्रवेश नहीं किया अब इन दोनों स्वर्गीय कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों के बाद मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी अपने शासनकाल की तीसरी पारी की तैयारी कर रहे हंी और मौजूदा राजनीतिक हालातों को देखते हुए तो यह लग भी रहा कि वे आसानी से अपने शासनकाल की तीसरी पारी मैं प्रवेश कर भी लेंगे आज से करीब 9 साल पहले 2014 में जब पहली बार मोदी जी प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने संसद में नतमस्तक होकर पहली बार प्रवेश किया था इससे पहले वह गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी तीसरी पारी की शुरुआत कर चुके थे उनके सामने उनकी ही पार्टी के लालकृष्ण आडवाणी तथा डॉ मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज नेता विराजमान थे किंतु मोदी जी सब पर भारी पड़े और प्रयोग के बगैर बनाए गए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ज्ञान तथा राजनीतिक कौशल से इस सर्वोच्च सिंहासन पर स्थाई कब्जा कर लिया और वह कबजा अभी भी बरकरार है। ऐसा कतई नहीं है कि भारतीय राजनीति की विसंगतियां मोदी जी के साथ जुड़ी नहीं है उनके 10 साला शासनकाल में लिए गए बहुचर्चित फैसलों को काफी चर्चित व विवादास्पद बनाने के प्रयास किए गए किंतु मोदी जी की सूझबूझ और राजनीतिक पटुता ने उन्हें अंजाम तक नहीं पहुंचने दिया। इन में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति व सीएए जैसे फैसले है जो काफी चर्चित रहे किंतु इनके बाद भी मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 2019 में पहले से भी अधिक बड़ी सफलता प्राप्त की और अब अगले साल होने वाले आम चुनावों में भाजपा पिछले 10 सालों से भी बड़ी जीत की उम्मीद लगाए बैठी है जबकि न्यूज़ चैनलों का पूर्वानुमान इस उम्मीद से थोड़ा उलट है। मोदी जी की इस दिग्विजय उपलब्धि के पीछे सबसे बड़ा श्रेय राजनीतिक हालातों को जाता है जब देश के राजनीतिक क्षितिज पर मोदी के अलावा कोई भी अन्य चमकदार सितारा शेष ही नहीं रहा। पिछले 9 सालों से देश में प्रतिपक्ष का तो सितारा ही अस्त हो गया प्रतिपक्ष में कोई ऐसी राजनीतिक हस्ती रही ही नहीं जो मोदी को किसी भी तरह की चुनौती दे सके? मोदी के स्थायित्व का यह भी एक बड़ा और अहम कारण है करीब 130 साल की उम्रजदा कांग्रेस अब इतनी अधिक बूढ़ी और कुबड़ी हो चुकी है कि वह देश की सत्ता का भार उठाने लायक ही नहीं रही उसके युवा नेता अनुभवहीन और छिछोरे साबित हो रहे हैं इसलिए आज वह प्रति पक्ष दलों की पंक्ति में आप और सपा के बाद तीसरे क्रम पर चली गई है अब यह अपनी इस उम्र मैं भी नित नए भारत जोड़ो जैसे नए-नए प्रयोगों में जुटी हुई है इस पार्टी के जिन वरिष्ठ नेताओं से थोड़ी बहुत उम्मीद थी वह या तो स्वर्ग सिधार गए या फिर हालातों से घबराकर पार्टी छोड़ कर चले गए इस प्रकार यह पार्टी आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के उस परामर्श को याद करने को मजबूर है जिसमें महात्मा गांधी ने आजादी के बाद जवाहरलाल को पार्टी को खत्म करने की सलाह दी थी और नेहरु जी ने उनकी सलाह को अनदेखा कर दिया था आज गांधी जी के उसी श्राप को यह पार्टी झेल रही है और अस्ताचल की ओर मुखातिब है। हां तो हम मोदी जी की तीसरी पारी की बात कर रहे थे आज राजनीतिक हालात यह है कि एक और जहां मोदी जी तीसरी पारी की तैयारी में जुटे हैं तो देश के प्रमुख प्रतिपक्ष दल एकता का राग अलाप कर अगले साल सत्ता हथियाने के रंगीन सपने देख रहे हैं सभी को पता है कि मोदी जी की सत्ता का पिंजरा तब तक ही मजबूत है जब तक कोई बाज रुपी प्रतिपक्षी दल झपट्टा मारने लायक ना हो इसलिए चाहे वे राहुल गांधी हो चाहे नीतीश कुमार हो या कि अरविंद केजरीवाल सभी बाज पक्षी बनने की स्पर्धा में जुटे हैं और हर कोई सत्ता के रंगीन ख्वाब में खोया है। इस प्रकार कुल मिलाकर अगले साल चुनाव में अभी करीब 400 दिन शेष है और इससे पहले 200 दिन वाले विधानसभाओं के चुनाव भी होना है सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी तिकड़म में व्यस्त हो गए हैं और यह तय है कि अब केंद्र में अगले 400 और चुनावी राज्यों में अगले 200 दिनों तक कोई किसी की सुनने वाला नहीं है आम जनता खुद ही अपने बारे में सोचें और फैसला ले। .../ 29 जनवरी 2023