लेख
05-Jun-2023
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अपने पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ जो पहले कभी अपना ही हुआ करता था बाद में अपने से अलग होकर उसने अपनी नई दुकान जमा ली थी, उसमें एक फूड इंस्पेक्टर राजेश विश्वास जी भी हैं। फूड इंस्पेक्टर का जलवा तो बच्चे बच्चे को मालूम है जिस पेट्रोल पंप पर पहुंच जाएं वहीं से दक्षिणा मिल जाती है, जिस व्यापारी के यहां दबिश दे दें वो हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है,होटलों में खाद्य पदार्थ की जांच उनके हाथों में हैं, राशन दुकानों में घपला बाजी चलने के बदले में भी मोटी रकम उनकी जेब भारी करती है यानी फूड इंस्पेक्टर के हाथ में पावर ही पावर है अब जब इतना पावर है तो जाहिर सी बात है कि उनके हाथ में लाख डेढ़ लाख कीमत से कम वाला मोबाइल तो होगा नहीं, लेकिन बुरा हो वक़्त का तफरी करने गए फूड इंस्पेक्टर साहब का मोबाइल एक बांध में गिर गया। बस फिर क्या था मोबाइल तो आजकल हर इंसान की सबसे बड़ी जरूरत और चाहत है। हुजूर ने तत्काल जल संसाधन विभाग से पंप बुलवाए और चार दिन तक लगातार उन पंपों के माध्यम से करीब चालीस लाख लीटर पानी निकलवा कर बांध खाली करवा कर अपना मोबाइल ढूंढ लिया यह जरूरी भी था क्योंकि उस मोबाइल में न जाने कितने राज छिपे हुए थे। गर्मी में बांध सूखने पर और किसी के हाथ लग जाता तो उनके धंधे की पूरी पोल खुल जाती , लेकिन साहब तो साहब होते हैं सो उन्होंने बांध खाली करवा लिया बाद में जब हल्ला मचा तो भाई साहब और जल संसाधन विभाग के दो तीन अफसरों को सस्पेंड कर दिया गया। अपन तो इस बात की खैर मना रहे हैं कि अच्छा हुआ ये हुजूर मुंबई में पोस्टेड नहीं थे ,खुदाना खासता यदि उनका मोबाइल समंदर में गिर जाता तो वे तो उसकी खोज में हजारों पंप लगवा कर समुंदर को खाली करवा देते, मुंबई डूब जाती तो डूब जाती लेकिन साहब जी का मोबाइल तो मिल जाता। अपना तो सरकार से एक ही निवेदन है कि ऐसे साहब को ऐसी जगह पोस्टिंग दो जहां ना नदी हो, ना तलाब हो, ना बावड़ी हो ना बांध हो पानी का एकमात्र साधन नल या हैंड पाइप हो ताकि उनका मोबाइल कहीं गिर ना पाए। उनको खुद की टिकट का भरोसा नहीं राजनीति भी बड़ी अजीब चीज है, कब किस की किस्मत बुलंदी पर पहुंच जाएं कब कौन राजनीति के सबसे निचले पायदान पर जा पहुंचे कोई नहीं जानता। आगामी महीनों में मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं हर पार्टी के नेता टिकट की आस में हाईकमान की तरफ आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं, एक जमाना ये भी था कि जब एक नेता अपने कई कई चेले चपटियों को टिकट दिलवा देता था लेकिन समय की बात है उसी नेता को अपनी टिकट का भरोसा नहीं बचा क्या पता उसे भी टिकट मिल पाए या ना मिल पाए। चेले जब उनके पास आते हैं तो उस बेचारे की हालत ऐसी हो जाती है कि कुछ कह नहीं पाता, और क्या कहे खुद की हालत ऐसी है, जब तक टिकटों की घोषणा नहीं होती तब तक हर पल नेताओं का ब्लड प्रेशर घटता बढ़ता रहता है। सबसे पहले अखबार में यही देखते हैं कि टिकट के लिए कौन सी नई नीति आ गई है और इस नीति मैं वे फिट हो रहे हैं या नहीं ? हालत ये है कि घर वालों तक को ये नहीं बता पा रहे हैं कि टिकिट उनकी झोली में गिरेगी या नहीं, उनकी यह हालत देखकर उनके चेलों ने भी उनसे किनारा कर लिया है और क्यों ना करें जो अपने लिए ही कुछ कर पाने में असमर्थ हो रहा हो वो दूसरों के लिए क्या कर पाएगा यही सोच उनके भीतर आ गई हैऔर वैसे भी राजनीति में कौन किसका हुआ है यही तो राजनीति की रीत है। भोलेनाथ तीसरी आंख न खोल दें उज्जैन के महालोक मंदिर में अपनी सरकार ने करोड़ों रुपया खर्च करके उसको एक भव्य रुप दिया था, लेकिन बुरा हो उस तीस किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवा का जिसने एक ही झटके में वहां हुए भ्रष्टाचार की कलई खोल कर रख दी हवा क्या चली, सप्तर्षियों की मूर्तियां खंड खंड हो गई जब जांच-पड़ताल हुई तब पता लगा कि ये तो प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां थी जिन की मजबूती की दुनिया में कोई गारंटी नहीं ले सकता ,और वही हुआ इधर हवा चली उधर मूर्तियां जमीन पर आ गिरी चूंकि काम सरकारी था इसलिए उसकी क्वालिटी के बात तो सोचना भी नहीं चाहिए। कांग्रेस को तो मौका चाहिए था दाना पानी लेकर बीजेपी सरकार पर चढ़ बैठी कि भ्रष्टाचार हुआ है। ये कोई नई बात तो कही नहीं थी कांग्रेस ने, ऐसा कौन सा निर्माण कार्य होता है जिसमें भ्रष्टाचार ना हो जिन अफसरों के भरोसे करोड़ों के काम होते हैं उनका पेट अकेली तनख्वाह से थोड़ी ना भरता है जब तक कमीशन ना मिले तब तक उनको डकार नहीं आती, ठेकेदार भी इधर कमीशन देता है उधर घटिया माल लगाकर लीप पोत पर उसे खूबसूरत बना देता है जब पोल खुलती है, हल्ला मचता है तो ठेकेदार पर थोड़ी बहुत कार्यवाही हो जाती है ,लेकिन अफसर मूंछ पर ताव देकर अपनी अपनी जगह तैनात रहते हैं लेकिन ये अफसर और ठेकेदार भूल गए कि ये जो मसला है वो बाबा भोलेनाथ का है यदि उनकी तीसरी आंख खुल गई तो ना ठेकेदार बचेगा ना अफसर। जिस दिन भोले बाबा को गुस्सा आ गया उस दिन ऐसा तांडव होगा जिसकी कल्पना सरकार ने भी ना की होगी। सुपर हिट ऑफ़ द वीक श्रीमान जी जंगल में जा रहे थे तभी एक सांप ने उनके पैर पर काट लिया। श्रीमान जी को गुस्सा आया और टांग आगे करके बोले .- ले काट जितना काटना है काट ले सांप ने फिर तीन-चार बार काटा और थक कर बोला .अबे तू इंसान है या भूत? मैं तो इंसान ही हूं लेकिन साले मेरा ये पैर नकली है।श्रीमान जी ने उसे समझाया ईएमएस / 05 जून 23