राष्ट्रीय
06-Jun-2023
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डोंगरगढ़ (ईएमएस)। संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है। आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि कौन सी वस्तु में इस समय मूल्य बढ़ता है और बहुमूल्य वस्तु का मूल्य घटता है। इसके बारे में हमेशा-हमेशा ज्ञानी लोग शास्त्रों के माध्यम से चिंतन करते रहते हैं। बहुमूल्य वस्तुओं का निर्यात हो रहा है। जामन जो होता है जव उसे दूध में डालते हैं तो वह दूध से कहता है कि तेरे अन्दर क्या-क्या है मैं अभी सब बाहर निकलता हूँ। दूध का स्वाद, सुगंध आदि। जामन डालने के बाद दूध को ढांक कर रख दिया जाता है और पर्याप्त समय होने के पश्चात् जब उसके ढक्कन को खोलते हैं तो वह पूरा का पूरा दूध जमकर दही बन जाता है फिर उसका मंथन प्रारंभ कर दिया जाता है और फिर उससे मक्खन और घृत (घी) प्राप्त होता है। यह कैसी रासायनिक प्रक्रिया है जिसमे कम मूल्य कि वस्तु से बहुमूल्य वस्तु बनाई जाती है। आप में यदि योग्यता है तो कभी भी किसी के सामने हाँथ नहीं फैलाना चाहिये। अपने कार्य को स्वयं पुरुषार्थ कर करना चाहिये। हमेशा देने कि सोचना चाहिये तभी देने कि आदत बनेगी। आप लोग हमेशा मांगते रहते हो ये अच्छी बात नहीं है। कुछ बच्चे समूह बनाकर बांटते हैं क्योंकि उनके संस्कार ही ऐसे है। कुछ लोग भगवान के सामने रोते रहते हैं ऐसा नहीं करना चाहिये और अपनी शक्ति अनुसार पुरुषार्थ करना चाहिये एवं अपने भावों को हमेशा स्वच्छ बनाये रखना चाहिये। दूध से घृत (घी) बनकर तैयार हो गया है और अब इसका मूल्य बढ़ गया है इसकी सुगंधी चारो ओर फैल रही है। इससे भगवान कि आरती होने लगी। जामन से कभी आरती नहीं होती है। जामन खट्टा होता है लेकिन वह खुद अपने को खोकर दूध में ऐसे मिल जाता है कि वह दूध का सार घी सबके सामने लाकर रख देता है। यह होती है जामन कि क्षमता “घी सार है दूध का और दूध का सार घी है”| इस विधि को और बढाओ विदेशों में भी फैलाओ। विदेश में घी नहीं मिलता वहाँ बटर होता है। शब्दकोष में इसे मिल्क आयल (दूध का तेल) है। सब मूल्य घटा दिया कहाँ तेल कहाँ घी। तेल कहीं लग जाये तो गन्दा हो जाता है और गंध आने लगती है जबकि घी को कहीं भी रखो उसकी सुगंधी दूर-दूर तक फैलती है। यदि किसी घर में घी बन रहा हो तो उसकी सुगंधी सारे मोहल्ले में फैल जाती है। लोग कहते हैं देशी घी है विदेशी नहीं। जबलपुर में आप लोग विदेशी न बनाओ, देशी ही रहने दो। किसी भी परिवर्तन से विकास होना चाहिये ह्रास नहीं। आप लोगो ने देखा ही होगा जब कोई नई वस्तु बाज़ार में आती है तो व्यापारी उसका विज्ञापन करता है और उसकी छोटी-छोटी पुडिया बनाकर फ्री में बांटता है। हमारे आचार्यों ने ऐसा ही किया, ऐसे कौन से भाव हैं जिसके द्वारा हमारे सारे-सारे मूल्यवान पदार्थ घटिया (खराब) हो जाते हैं उनका मूल्य ही समाप्त हो जाता है। कुछ भाव ऐसे करते हैं जिससे बहुमूल्य कर्म भी भीतर ही भीतर घटिया (खराब) हो जाता है। रावण राम बन सकता था दोनों कि राशि एक थी। राम भारतीय संस्कृति के हैं और रावण अन्य क्षेत्र में रहता है। दोनों कि कर्म भूमि अलग-अलग है। यह राम का देश है यहाँ पुण्य बढ़ानेकि प्रक्रिया आपके पास है। थोडा भाव बढाओ जैसे आप लोग बोलियाँ बढ़ाते जाते हो पता ही नहीं चलता कहाँ से आवाज़ आ रही है और वह कोने में बैठा अपने भावों से बोलियाँ बढ़ाते रहता है। राम के जीवन को देखकर रावण भी उनकी पूजा करने लगता है। अपनी-अपनी भूमि में दोनों ही अपनी प्रजा को सम्बोधीत करते हैं। राम कि प्रसिद्धि आज भी विद्यमान है और रावण को दुर्भाव के लिये जाना जाता है। उच्च भाव से ही राम नारायण हो गए। आप लोगो को अपने को ऊपर उठाना है तो जिस तरह गेंद को धक्का लगा दो तो वह निचे ढुलक जाती है और उसी गेंद को मुट्ठी से मारो तो ऊपर चले जाती है। अपने भावों को कम करना, दुर्भाव लाना या सद्भाव लाना सब आपके हाथ में है। आप जैसा भाव करेंगे वैसे ही बन जायेंगे। मिल्क आयल भूल जाओ जो सार है घी है उसे याद रखो। भगवान से मांगने कि आवश्यकता नहीं है आप लोग जब देखो तब कुछ न कुछ मांगते ही रहते हो- “बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख”। एक दुकानदार के यहाँ जब भीखारी दरवाजे में आता है तो वह उसे आगे जाओ-आगे जाओ ऐसा हाँथ दिखा कर बोलता है और जब कोई मालदार ग्राहक आये तो उससे पूछता है क्या लोगे दूध, काफी, को को आदि। इस प्रकार से जब आपको अविनश्वर्ता प्राप्त हो सकती है तो फिर क्यों मांगे। आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी विद्या दीदी पथरिया निवासी परिवार को प्राप्त हुआ।