लेख
09-Jun-2023
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सरकार, समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पाद के दाम तय करती है। सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य के दाम किसानों को नहीं मिल पाते हैं। किसानों द्वारा समर्थन मूल्य पर गारंटी की मांग पिछले कई वर्षों से की जा रही है। एमएसपी रेट घोषित करके सरकार वाहवाही लूटना चाहती है। सरकार कहती है, उसने दाम बढ़ा दिए। लेकिन किसानों के उत्पाद को सरकार समर्थन मूल्य पर भी नहीं खरीदती है। जिसके कारण यह केवल कागजी घोषणा होती है। इसका लाभ किसानों को नहीं मिलता है।इस साल मंडियों में मसूर समर्थन मूल्य से 400 से 600 रूपये प्रति क्विंटल कम दामों पर बिकी। केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों ने समर्थन मूल्य पर किसानों से मसूर नहीं खरीदी।जिसके कारण किसानों को समर्थन मूल्य से कम कीमत पर,मंडियों में अपनी फसल बेचना पड़ी है। हाल ही में केंद्र सरकार ने किसानों को राहत देते हुए,न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि करने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में समर्थन मूल्य बढ़ाने का निर्णय लिया गया। सरकार ने धान, ज्वार, बाजरा ,रागी, मक्का, तुवर ,मूंग, उड़द, मूंगफली, सूरजमुखी, सोयाबीन, राम तिल,कपास इत्यादि के समर्थन मूल्य में 5 फ़ीसदी से लेकर 10 फ़ीसदी की वृद्धि की है। इसे किसानों के हित में लिया गया बड़ा फैसला बताया गया है। मसूर का उदाहरण ऊपर दे चुके हैं। सूरजमुखी की खरीद हरियाणा में समर्थन मूल्य पर नहीं होने के कारण, किसान धरने पर बैठे हैं। किसानों ने एनएच को जाम किया, किसानों पर लाठीचार्ज हुआ किसानों को गिरफ्तार किया गया।यह समर्थन मूल्य की वास्तविक स्थिति को उजागर करता है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने पत्रकार वार्ता में सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार ने समर्थन मूल्य घोषित करते समय, एग्रीकल्चर कमीशन की रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया। लागत मूल्य पर 50 फ़ीसदी लाभ के आधार पर समर्थन मूल्य घोषित किए जाने का नियम है. उन्होंने दावा किया, कि यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल में समय-समय पर सरकार ने 10 फ़ीसदी से लेकर 44 फ़ीसदी तक समर्थन मूल्य का दाम निर्धारित किया था। उन्होंने कहा मोदी सरकार किसानों की पीठ पर लाठियां और पेट पर लात मार रही है। वहीं हरियाणा पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसानों ने समर्थन मूल्य पर गारंटी की मांग को लेकर पिछले 18 महीने से जो किसान आंदोलन चल रहा है। वह उग्र रूप लेता जा रहा है। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य तो घोषित कर देती है। लेकिन किसानों से उसकी उपज खरीदने की व्यवस्था नहीं करती है। गेहूं और धान की खरीदी बड़े पैमाने पर केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा की जाती है। किसानों की उपज का अधिकतम 40:50 फीसदी से ज्यादा उपज सरकार द्वारा नहीं खरीदने के कारण, किसानों को समर्थन मूल्य से कम मूल्य पर बाजार में उपज बेचना पड़ती है। हाल ही के वर्षों में पेट्रोल, डीजल,रासायनिक खाद, कीटनाशक एवं परिवहन की लागत में भारी वृद्धि हुई है। उसकी तुलना में न्यूनतम समर्थन मूल्य में काफी कम वृद्धि की गई है। किसानों को लागत मूल्य पर 50 फीसदी लाभ के नियम को छोड़ दे अपने उत्पाद की वास्तविक लागत भी नहीं मिल पा रही है। जब नई फसल आती है, तो बाजार तेजी के साथ गिर जाते हैं। उसके बाद तेजी के साथ बढ़ने लगते हैं। विशेष रूप से सब्जी और अन्य सीजनल फसलों में किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। बिचौलियों को सारा फायदा हो रहा है। जिसके कारण किसानों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। देश में दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा बड़े प्रयास किए जा रहे है। जब तक समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं होगी, तब तक किसानों को उत्पादन बढ़ाने में कोई रुचि नहीं है। सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करते समय, यह भी देखना होगा कि किसानों की उत्पादन लागत कितनी बढी है। बढ़ी हुई लागत के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित होता है। सरकार उस उत्पाद को स्वयं खरीदने की गारंटी देगी। तभी जाकर किसानों को लाभ मिलेगा। अन्यथा चुनावी घोषणा की तरह, यह वादे हैं वादों का क्या। एक तरफ सरकार दलहन और तिलहन का बड़े पैमाने पर आयात करती है। बढ़े हुए दामों में उपभोक्ताओं को उत्पाद खरीदना पड़ते हैं।वहीं सरकार को विदेशी मुद्रा खर्च करनी होती है। किसान पिछले कई दशकों से यह सब देखते और सुनते आ रहे हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी उनकी फसलें नहीं बिकती हैं। किसानों को लागत मूल्य और 50 फीसदी का भी लाभ नहीं मिल पाता है। जिसके कारण किसान अपनी खेती की जमीन बेचकर, मजदूर बनने विवश हो रहे हैं। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार का सबसे बड़ा जरिया कृषि उत्पाद हैं। सरकार ने समय रहते, यदि इस पर ध्यान नहीं दिया,तो स्थिति बड़ी भयावह हो सकती है। किसान भी इसी मांग पर अड़े हुए हैं। सरकार जो समर्थन मूल्य घोषित करती है, उसमें किसानों की फसल की खरीदी सरकार सुनिश्चित करे। ईएमएस/09जून2023