राज्य
16-Apr-2024
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-साक्षात कुंदकुंद महाराज की प्रतिकृति थे आचार्य विद्यासागर जी भोपाल /दमोह (ईएमएस) । समादिष्ट आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के आचार्य पद पर 108 श्री समय सागर जी महाराज का आचार्य पद पदारोहण समारोह आज तीर्थ क्षेत्र कुंडलपुर में संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ संचालक मोहन भागवत, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव, मध्य प्रदेश के पंचायत मंत्री पहलाद पटेल, पूर्व मंत्री एवं विधायक जयंत मलैया, पूर्व सांसद प्रदीप जैन आदित्य,सांसद, विधायक इस कार्यक्रम में उपस्थित हुए। - आचार्य पद समय सागर जी को निर्यापक मुनि श्री योग सागर जी महाराज ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा, उन्हें आचार्य महाराज ने आदेशित किया था। आचार्य पद पर श्री समय सागर जी महाराज तथा सभी निर्यापक मुनि राजों को आचार्य संघ को विस्तारित करने के लिए शिक्षा और दीक्षा देने के अधिकार, जिन धर्म और जिन शासन की प्रभावना करने की भावना व्यक्त की थी। आचार्य श्री की इस भावना को योग सागर महाराज ने सभी मुनिसंघ और समाज के सामने रखी । उन्होंने कहा आचार्य भगवान की यह भी इच्छा थी की सभी संघ एक जगह एकत्रित हो, तब सम्पूर्ण संघ की उपस्थिति में आचार्य पद का पदारोहण संपन्न किया जाए। इस कार्यक्रम का संचालन निर्यापक मुनि श्री प्रमाण सागर जी ने किया. निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने ने कहा कि श्रवण संस्कृति की परंपरा साक्षात कुंदकुंद महाराज के समय से चली आ रही है। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज, साक्षात कुंदकुंद महाराज की प्रतिकृति थे. आचार्य महाराज ने कभी गुरु आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया। ज्ञान सागर महाराज की दूर दृष्टि थी। जो उन्होंने बहुत कम उम्र में अपने दीक्षित मुनि विद्यासागर को आचार्य पद दिया। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने इस पंचम काल में भगवान महावीर के स्वरूप को समस्त आर्यावर्त में महावीर कैसे थे। इसको बताने के लिए महावीर के आचरण को अपने भक्तों के सामने रखा। जिन शासन और जिन धर्म के प्रति आस्था और विश्वास आचार्य श्री के आचरण में रहा। विद्यासागर जी आचार्य पद के पर्याय बन गए थे। जहां पर भी आचार्य शब्द का उपयोग होता था, वहां पर विद्यासागर जी महाराज की छवि देखने को मिलती थी । दसवीं शताब्दी के बाद जैन धर्म और तीर्थंकर की परंपरा कुछ शताब्दी से लोप हो गई थी । पिछले 56 सालों में गुरुदेव ने उस महावीर काल की तरह अपनी साधना, त्याग, सत्य एवं शील को धारण करके, जिन धर्म को पुन स्थापित किया है। आचार्य कुंदकुंद महराज की तरह जिन धर्म के लिये महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आचार्य विद्यासागर महाराज का संघ एकजुट कुंडलपुर तीर्थ क्षेत्र में हजारों किलोमीटर की यात्रा करके सारे निर्यापक मुनिराज, आर्यिका संघ सहित 500 से अधिक दीक्षार्थी पहुंचे. उनकी उपस्थिति में नवीन आचार्य पद पदारोहण का आयोजन संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम को निर्यापक मुनि अभय सागर जी महाराज, मुनि प्रमाण सागर जी महाराज ने भी संबोधित किया पदारोहण समारोह की झलकियां समारोह अपने निर्धारित समय के अनुसार दोपहर 2:00 बजे से कार्यक्रम शुरू हो गया था. झंडारोहण जैन समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक पाटनी द्वारा किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ संचालक मोहन भागवत निर्धारित समय पर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। मंगल कार्यक्रम के बाद मुनि संघ, नवीन आचार्य श्री समय सागर जी महाराज को लेकर मंच पर पहुंचे। मोहन भागवत ने आचार्य विद्यासागर जी महाराज के साथ अपनी स्मृतियों को लेकर आचार्य महाराज के गुणगान करते हुए उनके कार्यों से प्रभावित होने की बात कही। इस कार्यक्रम में लाखों लोग शामिल थे. धार्मिक आस्था विश्वास और कोतुहल के कारण पूरे पंडाल में पूरे समय शांति बनी रही। यहां पर जो भी लोग उपस्थित थे, वह बड़ी आस्था और भक्ति के साथ इस कार्यक्रम को देख रहे थे। आचार्य समय सागर जी का प्रथम उद्बोधन आचार्य श्री समय सागर जी महाराज ने अपने पहले उद्बोधन में कहा आर्यावर्त की यह पावन धरती है। जहां युगों युगों से सत्पुरुषों का जन्म होता रहा है। जिन्होंने तत्व को जान लिया । वैसा ही धर्म,ज्ञान के रूप में भारत भूमि में समय-समय पर इसका ज्ञान होता रहा है । आचार्य समय सागर जी ने कहा कि भाव शून्य क्रिया का कोई महत्व नहीं होता है। भगवान और गुरु तब प्रसन्न होते हैं, जब उनकी कही हुई बातों को भक्त अपने आचरण में धारण करता है। गुरु और भगवान की भक्ति करने मात्र से वह प्राप्त नहीं होते हैं। भक्त से भगवान और गुरु तभी प्रसन्न होते हैं। जब वह गुरु आज्ञा का पालन, अपने आचरण में धारण करते हैं। आचार्य श्री ने अपने पहले उद्बोधन में कहा, अंतरंग साधना के माध्यम से ही लक्ष्य की प्राप्ति संभव है। मान और अभिमान को छोड़ोगे, तभी आप अपने लक्ष्य के प्रति सफल होंगे। आचार्य समय सागर जी ने कहा समय-समय पर भक्ति काल की एक अलग गाथा है। केवल भक्ति करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। जब गुरु और भगवान के ज्ञान को आप आचरण में धारण करते हैं। सत्य एवं शील के अनुसार अपना आचरण करते हैं। तभी हमें भगवान और गुरु का आशीर्वाद मिलता है। आचार्य श्री ने कहा प्रभु का दर्शन हमने भी नहीं किया, आपने भी नहीं किया है। हम अपनी आस्था और अपने गुरुओं के कारण आस्था के साथ उन्हें देखते हैं, और मानते हैं। उसी आस्था को हमें अपने आचरण में धारण करने की जरूरत होती है। उन्होंने आज एक बड़ा संदेश दिया, उन्होंने कहा कि भक्ति सच्चे मन और आस्था के साथ होती है तभी गुरु और भगवान प्रसन्न होते हैं।