लेख
26-Apr-2024
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वीवीपेट, ईवीएम मशीन और मतदाता पर्ची की गिनती करने की मांग वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। जो दो याचिकाएं लगाई गईं थीं, उनमें मांग की गई थी, कि वीवीपेट से निकलने वाली सभी पर्चियों की गिनती कराई जाए। जो पर्ची मशीन से निकलती है, उसे मतदाता के हाथ में दी जाए। मतदाता स्वयं पर्ची को बैलट बॉक्स में डाले। यदि यह संभव न हो, तो वीवी पेट में जो काला कांच लगा है, जो लाइट 7 सेकंड के लिए जलती है। उस वीवीपेट मशीन का ग्लास बदल दिया जाए। ताकि मतदाता ने जिसे वोट दिया है, उसे देख पाए। मतदाता के सामने ही पर्ची कटकर वैलिड बॉक्स में गिरी है, या नहीं, यह मतदाता सुनिश्चित कर सकें। तीन बार सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान जिस तरह के संकेत मिल रहे थे। उससे लग रहा था, इस मामले में याचिका कर्ताओं को कोई राहत मिलने वाली नहीं है। इसके पहले भी चुनाव आयोग से संबंधित याचिकाओं को यही बेंच खारिज कर चुकी थी। यह याचिका लंबे समय से सुनवाई के लिए लंबित थी। चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद, इसमें सुनवाई शुरू हुई। याचिकाकर्ता 100 फ़ीसदी मतदाता पर्चियों की गिनती की मांग कर रहे थे। इस मांग को सुप्रीम कोर्ट ने नहीं माना। सभी याचिकाओं को निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 45 दिन तक कंट्रोल मशीन को सील कर सुरक्षित रखने का आदेश दिया है। वहीं 7 दिन के अंदर दूसरे या तीसरे नंबर का उम्मीदवार अपने खर्चे पर कंट्रोल यूनिट की जांच की मांग कर सकता है। इसकी मांग करने वाले उम्मीदवार को उसका खर्च देना पड़ेगा। यदि कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई, तो उम्मीदवार के द्वारा जमा की गई राशि वापस नहीं की जाएगी। गड़-बड़ी पाए जाने पर उम्मीदवार को राशि वापस कर दी जाएगी। पिछले कई महीनों से ईवीएम, वीवीपेट मशीन तथा कंट्रोल यूनिट की कार्यप्रणाली को लेकर आंदोलन किये जा रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के कई अधिवक्ताओं ने भी धरना-प्रदर्शन करके वीवीपेट से निकलने वाली सभी पर्चियां की गिनती कराने की मांग की थी। सारे देश में मतदाताओं द्वारा 100 फ़ीसदी मतदाता पर्ची गिनने की मांग की जा रही थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से लोगों में निराशा है। चुनाव आयोग के आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बदलते हुए, सरकार ने जो कानून बनाया है, उसमें सरकार द्वारा जिन दो चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अधिसूचना जारी होने के 1 दिन पहले की गई है। उस नियुक्ति को लेकर भी लोगों में चुनाव आयोग के प्रति विश्वास कम हुआ है। लोकसभा चुनाव के पहले और दूसरे चरण के मतदान के दौरान चुनाव आयोग की भूमिका को लेकर भी सारे लोग हैरान हैं। विपक्ष द्वारा की गई शिकायतों पर चुनाव आयोग मौन साध कर बैठ जाता है। सत्ता पक्ष की शिकायत पर विपक्ष पर तुरंत कार्रवाई कर दी जाती है। ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सरकार और चुनाव आयोग को राहत देने वाला फैसला माना जा रहा है। आम मतदाताओं की मांग और आशंकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने विचार नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से निष्पक्ष चुनाव होगा। इस पर मतदाताओं का संदेह कम होने की बजाय और बढ़ जाएगा। मतदाताओं में पहले ही निराशा थी। इस फैसले के बाद यह निराशा और भी बढ़ेगी। सत्ता पक्ष द्वारा जब यह दावा किया जाता है, इस बार 400 पार, यह दावा ईवीएम मशीन और वीवीपीएटी की कार्य प्रणाली को लेकर किया जा रहा है? यह बात मतदाता के मन में बैठ चुकी है। चुनाव आयोग जिस तरह से गांधी जी के तीन बंदर बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, और बुरा मत बोलो, की तर्ज पर सरकार के समर्थन में बैठा हुआ है। इसको देखते हुए लोगों को चुनाव पर कितना विश्वास रहेगा, कहा नहीं जा सकता है। वीवीपेट से निकली हुई पर्ची की 100 फीसदी गिनती और वीवी पेट से सही पर्ची प्रिंट हुई है। यह जानने का अधिकार मतदाता का है। सुप्रीम कोर्ट से यह आशा की जा रही थी, कम से कम आमजनता के इस अधिकार को बनाए रखने में, सुप्रीम कोर्ट का फैसला मतदाताओं के पक्ष में आएगा। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से मतदाताओं को निराशा ही मिली है। लोकतंत्र की रीड की हड्डी चुनाव पर यदि मतदाताओं को भरोसा नहीं रहेगा, तो भारतीय लोकतंत्र और संविधान भी सुरक्षित नहीं रहेगा यह लोगों का मानना है। एसजे / 26 अप्रैल 2024