लेख
29-Apr-2024
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पिछले कुछ सालों के चुनावी आंकड़ों से यह स्पष्ट हो रहा है कि देश में होने वाले हर चुनाव में मतदान के प्रतिशत में पिछले चुनाव की अपेक्षा कमी होती जा रही है, यद्यपि इस समस्या को लेकर अलग- अलग स्तरों पर विभिन्न तरह की चर्चाओं का दौर जारी है और इस समस्या के अनेक कारण भी गिनाए जा रहे है, किंतु यह तो कटुसत्य है कि देश के मतदाताओं में अपने इस प्रथम महत्वपूर्ण दायित्व के निर्वहन में अरूचि या लापरवाही स्पष्ट परिलक्षित हो रही है। यद्यपि इस मसले को लेकर विभिन्न स्तरों पर चर्चाओं का दौर जारी है, कोई इसका कारण मतदाताओं का उनकी निजी पारिवारिक समस्याओं में उलझना बता रहा है, तो कोई राजनीति और राजनेताओं की लोकसेवा सम्बंधी रूचि की ओर ईशारा कर रहा है, जो कारण भी हो, किंतु यह सही है कि यह समस्या किसी भी लोकतंत्री देश के लिए उचित नही कही जा सकती। इस समस्या को लेकर मुख्यतः दो मुख्य कारण बताए जाते हैः- पहला- मतदाता की अपनी निजी पारिवारिक समस्या या परेशानी, जिसके कारण मतदान को वह प्राथमिकता नहीं देता। दूसरा- राजनीति और राजनेताओं में सत्ता स्वार्थ की भावना, अब हर पांच साल में सिर्फ एक या दो महीनें ही मतदाताओं की राजनेताओं या कथित लोकसेवकों द्वारा खोज-खबर ली जाती है, शेष चार साल दस महीनें मतदाता पूरी तरह उपेक्षित रहता है, अब सवाल यह उठता है कि हमारे देश को आजाद कराने वाले महान नेताओं महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू आदि ने देश में कभी ऐसी स्थिति की कल्पना की थी? और यदि की होती तो क्या वे देश की आजादी के लिए अपना जीवन न्यौछावर करते? खैर, छोडिए.... फिलहाल इस पर चिंतन जरूरी नहीं है, बल्कि आज के नेताओं की सत्ता लौलूपता और मतदाता की स्थिति पर चिंतन जरूरी है और उसकी कई स्तरों पर तैयारी भी की जा रही है। ....अब सर्वप्रथम तो दिनों-दिन घट रहे मतदान प्रतिशत पर देश को चिंतन या चिंता करना चाहिए.... इसी को लेकर आज यह भी एक उपाय सुझाया जा रहा है कि कानून में संशोधन कर हर मतदाता के लिए मतदान अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए, किंतु यहां यह भी चिंतन का विषय होना चाहिए कि ‘‘क्या हर समस्या का हल कानून है?’’ क्या स्वतंत्र देश के नागरिकों को किसी तरह की निजी स्वतंत्रता नहीं होनी चाहिए? और दुनिया के जिन देशों ने घटते मतदान की समस्या को खत्म करने के लिए ‘मतदान अनिवार्य’ किया, उन देशों की स्थिति क्या है? विश्व में बैल्जियम पहला देश है जिसने सन् 1892 में अनिवार्य मतदान का कानून लागू किया, जबकि आस्टेªलिया में बिना किसी कानून के मतदान का प्रतिशत 90 तक रहता है, सन् 1925 में आस्ट्रेलिया में ‘अनिवार्य’ का नियम लागू किया था, जबकि जर्मनी, इंग्लैण्ड में बिना किसी अनिवर्यता के मतदान का प्रतिशत 60 से 75 फीसदी तक रहता है, फिर हमारे भारत में ही क्यों चुनाव दर चुनाव मतदान प्रतिशत घट रहा है? और वास्तव में इसके लिए दोषी कौन है? और क्या इस समस्या का एकमात्र निदान मतदान की कानूनी अनिवार्यता ही है? अब आज सही वक्त है कि देश में हर स्तर पर इस देशव्यापी समस्या पर गंभीर चिंतन किया जाना चाहिए, क्योंकि मतदान प्रतिशत इसी तरह घटता चला गया तो यह माना जाएगा कि हमारा लोकतंत्रीय व्यवस्था के प्रति विश्वास कम होता जा रहा है, जो देश के लिए घातक है, इसलिए इस राष्ट्रव्यापी समस्या पर राष्ट्रव्यापी चिंतन भी जरूरी है और उसके लिए अभी ही सही वक्त है। ईएमएस / 29 अप्रैल 24