लेख
29-Apr-2024
...


सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं राज्यसभा सांसद पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने एक इंटरव्यू लिया। जो यूट्यूब पर चल रहा है। इस इंटरव्यू में उन्होंने राज्यसभा के सांसद संजय सिंह जो मनी लांड्रिंग के आरोप में 183 दिन जेल में बंद रहे। ईड़ी के आरोपी साकेत गोखले भी 157 दिन तक जेल में बंद रहकर जमानत पर बाहर हैं। इसके अलावा प्रियंका चतुर्वेदी राज्यसभा की सदस्य और शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट की प्रवक्ता हैं। ईडी के अधिकारियों ने संजय सिंह और साकेत गोखले से किस तरह के सवाल जवाब किये। उनके ऊपर क्या आरोप थे। इन्हें इतने लंबे समय तक जमानत क्यों नहीं मिली। ट्रायल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को लेकर भी चर्चा की गई। जेल में किस तरह का व्यवहार किया गया। इस पूरे इंटरव्यू में ईड़ी के अधिकारियों की मनमानी, सबूत जुटाने के नाम से कई महीनों और वर्षों तक जेल में बंद रखने के संबंध में चर्चा की गई। ट्रायल कोर्ट में आरोपियों की बात नहीं सुने जाने, ईड़ी द्वारा पूछताछ के दौरान शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना, जेल में अमानवीय व्यवहार को लेकर इस इंटरव्यू में संजय सिंह और साकेत गोखले ने पूरा सच बताया। सबसे बड़ी बात यह है कि कानून के सबसे बड़े जानकार, कपिल सिब्बल द्वारा यह इंटरव्यू प्रायोजित किया गया था। ईड़ी से संबंधित मामले हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वह अपने मुवक्किल के लिए पैरवी भी कर रहे हैं। जो कई महीनो से जेल में बंद है। ईड़ी गैर कानूनी ढंग से उन्हें हिरासत में रख पा रही है, तो हिरासत से रिहा कराने की जिम्मेदारी अधिवक्ता की ही होती है। संजय सिंह ने अपनी गिरफ्तारी को लेकर कोई बात नहीं की। जमानत की शर्तों में उन्हें अपने केस से संबंधित बात करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। संजय सिंह ने दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लेकर जरूर तथ्य सामने रखे। उन्होंने यह भी कहा, कि सैकड़ों छापे डालने के बाद ईडी की कस्टडी और ज्यूडिशरी कस्टडी में कई माह से बंद होने के बाद भी ईड़ी कोई सबूत नहीं जुटा पाई। किस तरह से ईड़ी के अधिकारी विपक्षी दल के नेता को प्रताड़ित कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से जो जानकारी सामने आई है। उससे भी स्पष्ट हो गया है। जिस व्यक्ति के बयान पर अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को बंद रखा गया है। उसने भाजपा को करोड़ों रुपए का चंदा दिया है। शराब घोटाले का मनी ट्रेल उजागर होने के बाद भी शराब घोटाले की जांच ईड़ी के अधिकारी नहीं कर रहे हैं। ट्रायल कोर्ट में आरोपियों के बयान नहीं सुने जा रहे है। ट्रायल कोर्ट, ईड़ी के आवेदन पर ही ध्यान देकर निर्णय करती है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल द्वारा माननीय जजों के सामने असहाय होने की बात स्वीकार की। साक्षात्कार में कहा गया कि संसद में सांसदों को बोलने का अवसर नहीं दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय सरकार द्वारा बदल दिए जाते हैं। दिल्ली सरकार के बारे में जो फैसला सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने दिया था, उसे सरकार ने अध्यादेश लाकर बदल दिया। मीडिया, सरकार जो कहती है, वही दिखाती है। देश में लोकतंत्र पूरी तरह से खत्म हो गया है। पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ वकील इन मामलों की पैरवी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में स्वयं कर रहे हैं। उसके बाद भी न्याय दिलाने में असमर्थता जताते हुए जिस तरह से अपना पल्ला झाड़तें हैं, यह चिंता का विषय है। संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार बनाए गए नियम और कानूनों के अनुसार काम हो रहा है, या नहीं? संविधान ने इसका दायित्व न्यायपालिका को दिया है। जजों के साथ-साथ अधिवक्ता भी न्याय पालिका के अंग होते हैं। जजों के सामने इन्हें अपनी बात अच्छे तरीके से रखना होती है। यदि कोई जज निष्पक्षता से काम नहीं कर रहा है, उनके कामकाज को लेकर ट्रायल कोर्ट के जजों की शिकायत हाईकोर्ट में प्रशासनिक जज से की जा सकती है। यदि कोई हाईकोर्ट के जज न्यायिक प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में इनकी शिकायत सुप्रीम कोर्ट में भी की जा सकती है। न्यायाधीशों की शिकायतों पर गौर करने का काम प्रशासनिक जज और कॉलेजियम का होता है, लेकिन लगता है, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता भी न्यायालय के सामने अपनी सही बात कहने से डरने लगे हैं। शायद उन्हें ऐसा लगता होगा, यदि न्यायालय ने उनके बारे में गलत धारणा बना ली, तो उनकी प्रैक्टिस पर इसका हो सकता है। शायद यही सबसे बड़ा कारण है, न्यायपालिका के ऊपर, नियम कानून और प्रक्रिया को लेकर जो दबाव होता था, वह डर के मारे खत्म हो चुका है। इस कारण न्यायपालिका पूरी तरह से सरकार के दबाव में काम करती हुई दिख रही है। 80 फ़ीसदी मामले सरकार के खिलाफ होते हैं। जब संसद सदस्य, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को न्यायपालिका से न्याय नहीं मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति में आम आदमी की क्या हालत होती होगी। इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। यूट्यूब में कपिल सिब्बल के इस साक्षात्कार को देखकर ऐसा ही लगता है। भारत से लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था लगभग समाप्त हो चुकी है। सरकार जो चाहती है, न्यायपालिका भी दबाव में एक तरह से उसकी मदद करने का काम कर रही है। अब तो यह भी कहा जाने लगा है कि जिस तरह से रावण-राम युद्ध के समय सभी ग्रह रावण की कैद में थे। रावण को भरोसा था, जब सारे ग्रह मेरी कैद मे हैं, तब वनवासी राम मेरा क्या अहित कर सकता है। लगभग यही स्थिति वर्तमान समय में भारत के संविधान और लोकतंत्र बचाने की लड़ाई में दिख रही है। सारी संवैधानिक संस्थाएं सरकार के नियंत्रण और दबाव में काम कर रही हैं। न्यायपालिका भी उससे अछूती नहीं रही। ऐसी स्थिति में संविधान और लोकतंत्र का भगवान ही मालिक है। डर और भय के इस वातावरण में राहुल गांधी जरूर पिछले 1 वर्ष से लड़ाई लड़ने की कोशिश कर रहे हैं। विपक्षी दलों का गठबंधन भी बना है। लोकसभा का चुनाव एकजुट होकर लड़ रहा है। 2024 का लोकसभा चुनाव तय करेगा। भविष्य में संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं सुरक्षित रहेंगी या नहीं। ईएमएस / 29 अप्रैल 24