दिल्ली की सभी जिला स्तरीय अदालतों के वकीलों ने अपनी बार एशोसिएशन के माध्यम से नए कानूनों को लागू करने के विरोध में एक दिन काम नही किया,वही सुप्रीम कोर्ट में भी उक्त कानून को चुनौती दी गई है।बिना किसी तैयारी के लागू किये गए नए कानूनो को लेकर पुलिस, जज,वकील और वादकारियों सभी को किसी न किसी रूप में परेशानी हो रही है।वास्तव में पुराने कानून को औपनिवेशिक का सिंबल बताकर बदल दिया गया है, जबकि औपनिवेशिक शासन का मुख्य प्रतीक पुलिस व्यवस्था है ,जो ब्रिटिश काल से चली आ रही है। इसमें सुधार किए जाने और उसे लागू किए जाने की आवश्यकता किसी ने नही समझी। भारतीय न्याय संहिता में भारतीय दंड संहिता, 1860 के अधिकांश अपराध व उसके लिए दंड पुनः शामिल किये गए हैं, इसमें सामुदायिक अपराध को सजा के रूप में जोड़ा गया है और राजद्रोह अब अपराध नहीं रह गया।देश की एकता को खतरा अपराध के बजाय इस नए कानून में भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों के लिए एक नया अपराध जोड़ा गया है। भारतीय न्याय संहिता में आतंकवाद को अपराध के रूप में जोड़ा गया है, इसे ऐसे कृत्य के रूप में परिभाषित किया गया है जिसका उद्देश्य देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालना, आम जनता को डराना या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ना है। छोटे-मोटे संगठित अपराध भी अब अपराध हैं, जाति, भाषा या धार्मिक आधार पर पांच या अधिक व्यक्तियों के समूह द्वारा हत्या करना अपराध होगा, जिसके लिए सात साल से लेकर आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक की सजा हो सकती है। संसद में इन विधेयकों को पारित करने में भी अनियमिता व्याप्त रही है, क्योंकि विपक्ष के अधिकांश संसद सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था और विधेयकों को पारित करने में बहुत कम लोगों ने भाग लिया।इस तरह की कार्रवाई के कारण विधेयक पर कोई बहस नहीं हुई और न ही सदन में कोई चुनौती दी गई।नई भारतीय न्याय संहिता में कुल 358 धाराएं हैं। जिसमें 20 नए अपराधों को परिभाषित किया गया है,जबकि 33 अपराधों में सजा बढ़ाई गई है।वही 83 ऐसे अपराध हैं, जिनमें जुर्माने की रकम बढ़ाई गई है। नए कानून में आतंकवाद को परिभाषित किया गया है। इस बदलाव में आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता, सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य संहिता लागू की गई है। तीन नए आपराधिक कानून-भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 25 दिसंबर 2023 को अधिसूचित किए गए थे। ये तीनों कानून 1 जुलाई, 2024 से लागू किये गए हैं। हथकड़ी लगाने के नियम में बदलाव किये गए है। अपराध प्रक्रिया संहिता की जगह लाए गए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 43 (3) में गिरफ्तारी या अदालत में पेश करते समय कैदी को हथकड़ी लगाने का प्रावधान किया गया है। इस नियम के मुताबिक अगर कोई कैदी आदतन अपराधी है या पहले हिरासत से भाग चुका है या आतंकी गतिविधियों में शामिल रहा है, ड्रग्स से जुड़ा अपराधी हो, हत्या, रेप, एसिड अटैक, मानव तस्करी, बच्चों का यौन शोषण में शामिल रहा हो तो ऐसे कैदी को हथकड़ी लगाकर गिरफ्तार किया जा सकता है। अब तक कानून में हथकड़ी लगाने पर उसका कारण बताना जरूरी था और इसके लिए मजिस्ट्रेट से इजाजत भी लेनी होती थी। सन 1980 में प्रेम शंकर शुक्ला बनाम दिल्ली सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हथकड़ी के इस्तेमाल को अनुच्छेद 21 के तहत असंवैधानिक करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अगर हथकड़ी लगाने की जरूरत है तो मजिस्ट्रेट से इसकी इजाजत लेनी होगी। अब भगोड़े अपराधी पर भी मुकदमा चलाया जा सकेगा।जबकि पुराने कानून में किसी अपराधी या आरोपी पर मुकदमे का विचारण तभी शुरू होता था, जब वो अदालत में मौजूद होता था। लेकिन नए कानून के मुताबिक अगर कोई अपराधी फरार है तो भी उसके खिलाफ मुकदमा चल सकता है।आरोप तय होने के 90 दिन के बाद भी अगर आरोपी कोर्ट में पेश नहीं होता है तो विचारण शुरू हो जाएगा। पुराने कानून में मौत की सजा पाए दोषी के सामने आखिरी रास्ता दया याचिका होती थी। सारे कानूनी रास्ते खत्म होने के बाद भी दोषी के पास राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने का अधिकार होता था। दया याचिका दायर करने की कोई समय सीमा नहीं थी। लेकिन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 472(1) के मुताबिक सारे कानूनी विकल्प खत्म होने के बाद अब दोषी व्यक्ति को 30 दिन के भीतर राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर करनी होगी। राष्ट्रपति का दया पर जो भी फैसला होगा, उसकी जानकारी 48 घंटे के भीतर केंद्र सरकार को राज्य सरकार के गृह विभाग और जेल सुपरिंटेंडेंट को देनी होगी।पुराने कानून में आतंकवाद की कोई परिभाषा नहीं थी। लेकिन भारतीय दंड संहिता की जगह लाए गए भारतीय न्याय संहिता में पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया है और इसे दंडनीय अपराध बनाय गया है। अगर कोई देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालने, आम जनता या उसके एक वर्ग को डराने या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के इरादे से भारत या किसी अन्य देश में कोई कृत्य करता है, तो उसे आतंकी कृत्य माना जाएगा। नए कानून में अब पीड़ित को 90 दिन के भीतर जांच की प्रोग्रेस रिपोर्ट उपलब्ध करानी होगी। पुलिस को 90 दिन के अंदर चार्जशीट दाखिल करनी होगी,हालांकि यह व्यवस्था पहले से ही है।नए कानून में कोर्ट हालात को देखते हुए 90 दिन का समय बढ़ा सकती है। किसी भी परिस्थिति में 180 दिन के भीतर जांच पूरी कर विचारण शुरू करना होगा। कोर्ट को 60 दिन के भीतर आरोप तय करने होंगे। सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के भीतर फैसला देना होगा। इसके साथ ही सजा का ऐलान 7 दिन के भीतर करना होगा। गैंगरेप के मामले में दोषी साबित होने पर 20 साल की सजा या आजीवन जेल की सजा का प्रावधान है। अगर पीड़िता नाबालिग है तो आजीवन कारावास या फिर मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। स्नैचिंग के मामले में गंभीर चोट लगने या स्थाई विकलांगता की स्थिति में कठोर सजा दी जाएगी। बच्चों को अपराध में शामिल करने पर कम से कम 7से 10 साल की सजा होगी। हिट एंड रन मामले में मौत होने पर अपराधी घटना का खुलासा करने के लिए पुलिस या फिर मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं होता है तो जुर्माने के अलावा 10 साल तक की जेल की सजा हो सकती है।दिसंबर 2023 में जब से इन कानून की घोषणा की गई है। तब से इस कानून का विरोध भी हो रहा है। वास्तव में इस कानून की कोई जरूरत नहीं थी।कानून में समय-समय पर बदलाव होते रहते हैं।जो कानून नए अधिनियमो में लाए गए है,वे पुराने अधिनियमो में जोड़े जा सकते थे और गैर वाजिब कानून समाप्त किये जा सकते थे।लेकिन अधिनियमो में धाराएं बदलकर पुलिस, जज,वकीलों, वादकारियों तीनो के लिए ही समस्या खड़ी हो गई है।जिससे पार पाना आसान नही होगा। (लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता व साहित्यकार है) ईएमएस / 19 जुलाई 24